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भनेकान्त
राजकुमार पार्श्वनाथ अपने साथियों के साथ वन के लिए कथा से दूसरी कथा निकलती गई है और इस भाँति रस भी जाया करता था। एक बार वे वन केलि से लौट रहे की गति अवरुद्ध होकर मृतप्रायः सी हो गई है। पावथे कि एक साधु को अग्नि कुण्ड में डालने के लिए लकड़ी पुराण मे एक भव के लिए एक ही कथा है। कोई-कोई चीरते हुए देखा। उन्होंने कहा कि इस लकड़ी में एक नाग कथा तो एक चित्रसी प्रतिभासित होती है। यद्यपि मुख्य जोड़ा है इसे मत चोरो, किन्तु वह न माना और नाग कथानक में पार्श्वनाथ के पंच कल्याणकों का विवेचन रूढि दम्पत्ति के प्राण समाप्त हो गये । वह साधु पार्श्वनाथ का बद्ध ही है, किन्तु धरणेन्द्र और पद्मावती की कथा के नाना राजा महीपाल था, जिसने अपनी पत्नी की मृत्यु से संयोग से उसमें रुचिरता उत्पन्न हुई है। कथा के परम्पराबैराग्य धारण कर लिया था और बनारस के समीपस्थ वन नुगत होने पर भी, प्रस्तुत करने के ढग और विशेषकर में तप कर रहा था । पार्श्वनाथ को देखते ही उसका पूर्व चित्रमयता तथा दृष्टातों की छटा ने ग्रन्थ को मौलिक वैर उदित हो पाया और वह क्रोध में भरकर लकड़ी चीर बना दिया है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर उठा। क्रोधवशात् ही उसने राजकुमार के कथन को नहीं के नाटकों में कथानक किसी न किसी प्राचीन कथा से लिए माना। नागदम्पत्ति मरकर धरणेन्द्र और पद्मावती हए गये हैं। किन्तु नायकों के केवल स्वगत कथनों ने उन नाटको जो नागलोक के राजा और रानी थे। कालान्तर मे साधु को मौलिकता प्रदान की है। पावपुराण की घटनामों मरकर ज्योतिषी देव हुआ।
का चित्रवत् प्रस्तुतीकरण दृष्टान्तों की सहायता से विस्तार समय पाकर पार्श्वनाथ में वैराग्य का भाव उदित
का परिहार, भाषा की सरलता और प्रवाहमयता ही
उसकी नवीनता है। हमा । लौकातिक देवों ने उसे और भी पुष्ट किया। वे चार निकायों के इन्द्रों के द्वारा मनाये गये महोत्सवों के
चित्रांकनसाथ जिन दीक्षाधारण कर, वन में तप करने चले गये।
मरुभूति का जीव सल्लकी वन में वज्रघोष नाम का एक बार पाना योगदानामा परि हस्ती हुपा। उधर राजा अरविन्द वैराग्य धारण कर
। उधर से कमठाजीव सानी दिगम्बर मुनि बन गये। एक बार वे 'सारथ वाही' के संग निकला। पूर्वभव के बैरस्मरण से उसने घोर उपसर्ग
शिखर सुमेरु की वंदना के लिए चले। सल्लकी वन में किया । फणीश धरणेन्द्र का पासन कापा। वह पद्मावती पहुंचे और कुछ समय के लिए संघ सहित ठहर गये । को लेकर रक्षा करने प्राया। ज्योतिषी देव भाग गया।
गजराज वज्रघोष ने गर्जना करते हुए संघ पर आक्रमण
" भगवान् को केवल ज्ञान उत्पन्न हुना। धनपति ने समोसरण ।
कर दिया। काल के समान क्रोधित हाथी को देखकर संघ की रचना की । भगवान् ने दिव्य उपदेश दिया और फिर
में खलबली मच गई। लोग भागने लगे। गज का जिसे विहार किया। अन्त में प्रायुकर्म के क्षीण हो जाने पर
भी धक्का लग गया, वह परलोक पहुँच गया। मार्ग के थके उनका निर्वाण हो गया।
हुए घोडे, बल और गधों को उसने मार डाला। इस
प्रकार संहार करता हुआ वह हाथी विकराल रोष विष इस महाकाव्य की कथा में पार्श्वनाथ के जन्म से ही से भरा हा मुनि के सम्मुख पाया। उसने ज्यों ही सुदनहीं, अपितु नौ भवपूब से निर्वाण पर्यन्त का वर्णन है। र्शन मेरु के समान और वृक्ष है चिह्न जिसके वक्षस्थल में नोभवों की कथानों में से प्रत्येक कथा सरस है। इन ऐसे मनिराज को देखा और शान्त हो गया। मुनि के उपदेश कथानों को ही प्रवान्तर कथा कहा जा सकता है । उनके से उसने प्रणवत धारण किये । संयोग से मुख्य कथानक में और अधिक सरलता पाई है। - पं० रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार अवान्तर कथायें रस की
1. Shakespeare in almost every instance -
derived his plots from Somebody else's पिचकारियाँ होती हैं । इन कथानों ने भी रस की वर्षा की
work. DAVID DAICHES A critical है। संस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी के अनेक महापुराणों में
His story of English Literature Valume 1 ये प्रवान्तर कथायें एक जटिल जालसा बन गई हैं। एक Ed. 1960-Page 249.