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________________ भूधरदास का पार्श्वपुराण : एक महाकाव्य श्री सलेकचन्द जैन एम० ए०, बड़ौत कविवर भूधरदास ने पार्श्व पुराण की रचना वि० मुनि जिनविजय जी का भी ऐसा ही कथन है। इसमें प्रेम सं० १७८९ आषाढ़ सुदी ५ को आगरा में की थी। की गम्भीरता और विनय की महत्ता, रस और भाव की, भूधरदास आगरा के रहने वाले थे । उनका जन्म खण्डेल- सौन्दर्य के साथ, अभिव्यक्ति हुई है। वाल नाम की एक जैन उपजाति में हुआ था। वे मध्य इसी भाँति अपभ्रश की 'भविसयत्त कहा' (धनपाल), कालीन हिन्दी के सिद्धहस्त कवि थे। उनकी रचनायें 'णायकुमार चरिउ' (पुफ्फयंत), 'सुदंसण चरिउ' (नयनंदि) प्रसाद गुण की साक्षात् प्रतीक हैं। उनमें हृदय की गहरी आदि रचनाये भी रोमांचक शैली में ही लिखी गई है। अनुभूति है। उनकी अनेकानेक मुक्तक कृतियां उपलब्ध आगे चलकर जायसी का पद्मावत, रायचन्द का सीता हुई हैं, जिनका संकलन 'जैन शतक' और 'भूधरविलास' चरित और लालचन्द लब्धोदय का पानी चरित्र इसी के नाम से बहुत पहले ही प्रकाशित हो चुका हैं। उन्होंने होली की देन है। 'पार्श्वपुराण' नाम का केवल एक ही महाकाव्य लिखा है। पौराणिक शैली में लिखे गये जन महाकाव्य दो यह चरित काव्य है. इसकी प्रशंसा करते हुए पण्डित भागों में विभक्त किये जा सकते है-एक तो वे जिनमें ६३ नाथूराम प्रेमी ने लिखा था, "हिन्दी के जैन साहित्य में शलाका महापुरुपों का जीवनचरित पूर्वभवों के साथ यह ही एक चरित ग्रन्थ है, जिसकी रचना उच्च श्रेणी प्रस्तुत किया गया है । एक ही महापुरुप के जीवन चरित की है और जो वास्तव में पढ़ने योग्य है।"२ अब तो को रखने के भी दो ढग थे--एक तो गमायण और महाअन्वेषण के फलस्वरूप मध्यकालीन जैन हिन्दी के अनेक भारत-जैसा और दूसग रघुवंश-मरीखा । रामायण और महाकाव्य प्राप्त हुए है। वे उनम काव्य के निदर्शन है, महाभारत में महाकाव्यों का विकसनशील रूप दृष्टिगोचर किन्तु उनमें 'पार्श्वपुराण' जैसी मग्नता नहीं है। होता है, उनमें अलकृत रूढिबद्ध काव्यात्मक शैली के पूर्व परम्परा और शैली दर्शन नहीं होते। राम और कृष्ण को लेकर लिखे गये प्राकृत और अपभ्रंश के जैन महाकाव्यों में दो प्रकार जैन महाकाव्यों में अनेक काव्यरूढ़ियाँ प्राकृत और सस्कृत की शैली अपनाई गई है-गेमाचक और पौराणिक । की देन हैं, फिर भी स्वयभू के 'पउमचरिउ' और पुप्पदत गेमांचक शैली के महाकाव्यों में युद्ध और प्रेम को विविध के महापुराण में अनेक ऐसी प्रवृत्तियों ने जन्म लिया, जिनमें प्रवृत्तियों का वर्णन हुमा है। डा० आदिनाथ नेमिनाथ हिन्दी के महाकाव्य, यहाँ तक कि तुलमी का मानस भी उपाध्ये ने 'ऐनसाईक्लोपीडिया ग्राफ लिटरेचर' में 'लीला प्रभावित है। राहुल माकृत्यायन ने 'मानस' को 'पउमवईकहा' को प्राकृत का पहला रोमांचक काव्य कहा है३ । चरिउ' ने प्रभावित माना है ।* मूरसागर के अनेक प्रय १. मंवत् सतरह मै समय, और नवासी लीय । मुदी भाषाढ़ तिथि पचमी, अथ समापत कीय ॥ "तुलमी बाबा ने स्वयंभू रामायण को देखा था, मेरी (पाश्वपुराण, अन्तिम दोहा) इस बात पर आपत्ति हो सकती है, लेकिन मैं नम२. पं० नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, झता हूँ कि तुलमी बाबा ने 'क्वचिदन्यतोपि' से जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, जनवरी १९१७, स्वयंभू रामायण की ओर ही संकेत किया है।" पृ०५६ । राहुल साकृत्यायन-हिन्दी काव्यधारा, प्रथम संस्करण 3. Encyclopaedia of Literature, Vol. 1. P-489 १९४५-प्रकाशक किताब महल, इलाहाबाद, पृ० ५२
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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