SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त विधान हमें पांच अणुव्रत, तीन गुणवत और चार शिक्षा २-तत्वार्थ सूत्र में गुणत्रत पोर शिक्षाबत ये भेद न व्रत के रूप में मिलता है। किन्तु व्रतों के क्रम और करके सात शील बतलाए हैं-दिग विरति, देश विरति, नामों में पर्याप्त मतभेद हैं । बारह व्रतों में सर्वप्रथम अणु अनर्थदण्डविरति, सामयिक, प्रोषधोपवाम, उपभोग-परिव्रत पाते हैं। इनमें उल्लेखनीय नाम-भेद इस प्रकार हैं- भोग परिमाण और अतिथि संविभाग । श्वेताम्बर परंपरा १-प्राचार्य कुन्दकुन्द ने चारित्र प्राभूत पाँचवें अणु- की तरह सल्लेखना को इसमें बारह बतों से अलग बताया व्रत का नाम परिग्गहारंभ परिमाण रखा है। जिसका गया है। सर्वार्थ सिद्धि टीका में शुरू के तीन व्रतों का तात्पर्य है परिग्रह और प्रारंभ दोनों का परिमाण करना। नाम गुणव्रत दिया है, किन्तु शेष चार का कोई नामोल्लेख चतुर्थ अणुव्रत का नाम रखा है परपिम्म परिहार-इसका नहीं किया। अर्थ टीकाकार श्रुतसागर सूरि ने पर-स्त्री त्याग किया ३-रत्न करण्ड श्रावकाचार में दिग्वत, अनर्थ दण्ड है। तथा प्रथम अणुव्रत का नाम उन्होंने स्थल त्रसकाय अत और भोगोपभोगपरिमाण अत ये तीन गुणव्रत बतपरिहार रखा है।२ लाये है और देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास २-स्वामी समन्तभद्र ने चतुर्थ अणुव्रत का नाम और वयावृत्य-ये चार शिक्षाबत बतलाए है, सल्लेखना परदार निवृत्ति और संतोष रखा है। पांचवें प्रणवत का का पृथक उल्लेख है। नाम परिग्रह पग्मिाण के साथ इच्छा परिमाण भी रखा ४-पद्म चरित में अनर्थ दण्ड व्रत, दिग् विदिक् त्याग, भोगोपभोग संख्यान, ये तीन गुणव्रत और सामा३-प्राचार्य रविषेण ने चतुर्थ व्रत का नाम परदार- यिक, प्रोषधोपवास, प्रांतथि संविभाग और मलेखना ये समागम विरति तथा पांचवें का नाम अनन्त गर्दा विरति- चार शिक्षाव्रत बतलाए है। (अनन्त तष्णा विरति) रखा है।४ ५-प्रादि पुराण में दिग्नत, देश अत और अनर्थ दण्ड ४--हरिवंशपुराण में पहले व्रत का नाम दया है। व्रत को गुणवन तथा मामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि ५-पादि पुराण में पांचवे व्रत का नाम तृष्णा सविभाग और मल्लेखना को शिक्षा व्रत बतलाया गया है।४ प्रकर्ष निवृत्ति और चौथे का नाम पर-स्त्री सेवन-निवृत्ति ६-वसुनन्दि श्रावकाचार में गुणव्रत तो तत्वार्थ के रखा है।५ अनुसार है और शिक्षा व्रत इस प्रकार हैं-भोग-विरति. --40 आशाधर जी ने चौथे व्रत का नाम स्वदार परिभोग-विरति. अतिथि-संविभाग और मल्लेखना । संतोप रखा है। इन सबका वर्गीकरण हम इस प्रकार कर सकते हैंअणवत और शिक्षाव्रतों में नाम-भेद इस प्रकार १-दिग्व्रत और अनर्थ दण्ड व्रत को गुण व्रत सबने मिलता है माना है। सामायिक, प्रोषधोपवास और अतिथि सविभाग ५-प्राचार्य कुन्दकुन्द ने दिशा-विदिशा, अनर्थ दण्ड । को वसुनन्दि के सिवाय सबने शिक्षा व्रत में स्वीकार किया त्याग और भोगोपभोग परिमाण ये तीन गुणत और है। वसुनन्दि सामायिक और प्रोषधीपवास के स्थान में सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथि पूजा और सल्लेखना ये भोग विरति और परिभोग विरति पढ़ते है। तो चार शिक्षाबत बतलाए हैं।१ २-शेष रह जाते है-देशवत (देशावकाशिक). भोगोपभोग-परिमाण और सल्लेखना । २. चारित्र प्राभृत २३ १. अध्ययन ७, सूत्र २१ ३. रत्नकरण्ड, श्लोक १३, १४ २. श्लोक ६७, ६१ ४. पाचरित्र प० १४ श्लोक १८४, १८५ ३. पर्व १४, पृ० १९८, १६९ ५. मादि पुराण पर्व १०, श्लोक ६३ ४. पर्व १०, पृष्ठ ६५, ६६ ६. चारित्र प्राभूत, गा० २४,२५ ५. गाथा २१३ मादि
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy