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________________ दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा में महाव्रत, प्रणुव्रत, समिति और भावना का स्वरूप इस प्रकार दिया है१ हिंसा महाव्रत – वचन-गुप्ति, मनो-गुप्ति, ईर्षा - समिति, सुदान- निक्षेप र अवलोकित-पान-भोजन । सत्य महावत प्रक्रोम, अभय, ग्रहास्य, प्रलोभ, श्रमोह । परधनुवीच भावण के स्थान पर समोह-भावना का उल्लेख हुआ है। टीकाकार ने भगवान गौतम का एक श्लोक उद्धृत करते हुए इसका धयं भी अनुवोचि भापण कुलता ही किया है२ अवीचि भाषणता से तात्पर्य हैबीची बाग्लहरी तामनुस्य या भाषा वर्तते सानुवीचि भाषा, जिन सूत्राणुसारिणी भाषा, अनुवीचि भाषा पूर्वाचार्य-सूत्र-परिपाटी मनुल्लन्ध्य भाषणीय मित्यर्थः । पूर्वाचार्य और सूषानुसारिणी भाषा श्वेताम्बर परम्परा में वीचि भाषणता का अर्थ प्रायः अनु विचिन्त्य भाषणं विचार पूर्वक बोलना ही किया गया है। प्राचार्य उमास्वाति ने तस्वार्थ मे दोनों वर्षो का ग्रहण किया है। प्राची महाव्रतन्यावार निवास, विमोचितावास पर उपरोध न करना, एपणा शुद्धि, साधर्मी-संविसंवाद, सामिकों के साथ विसंवाद न करना । ये पांचों भावनाएं श्वेताम्बर परम्परा से सर्वथा भिन्न मिलती है- ब्रह्मचर्य महाव्रत, महिला अवलोकन विरति, पूर्वभुक्त का का स्मरण न करना, संसक्त वसति विरति, स्त्री-राग कया विरति और पौष्टिक रस विरति । धाचार्य उमास्वाति ने ब्रह्मचर्य की पांच भावनामों का उल्लेख इस प्रकार किया है१. स्त्री-राग-कथावर्जन, २. मनोहर अगनिरीक्षण-विरह, ३. पूर्वरतानुस्मरण परित्याग ४. वेष्ट-रस-परित्याग और ५. स्व शरीर-संस्कार-याग ॥४ १ २. चारित्र प्राभृत- ३२ : भूरिप्रभूतके ३१-३५ कोहो अलोहोय, भय-हस्स - विवज्जिदो । प्रणुवीचि भास कुसलो य, विदयं वद मस्सिदो ॥ ३. स्वार्थ ७५ ४. सरचार्य ७६ अपरिग्रह महाव्रत - मनोज्ञ और अमनोश शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श में राग द्वेष का वर्जन । समिति उत्तराध्ययन में पाँच समितियों का विधान इस प्रकार मिलता है ईय समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, प्रदान निक्षेप समिति और उच्चार व्युत्सर्ग समिति १ । - आचार्य कुन्दकुन्द ने उच्चार-व्युत्सर्ग समिति का उल्लेख नहीं किया है। उनके अनुसार पाँच समितियां ये है ईर्ष्या, भाषा, एषणा, बादान और निक्षेप २ धरन ही निक्षेप का अर्थ उच्चारपरित्याग ही किया है। किन्तु प्राचार्य उमास्वाति और वट्टकेर कुन्दकुन्द का अनुसरण करते दिखलाई नहीं पड़ते। उन्होंने उत्सर्गसमिति का मन से विधान दिया है ।३ संभव है इन पर श्वेताम्बर परम्परा का प्रभाव रहा हो । प्रणुव्रत ११३ उपासक दशाग प्रथम अध्ययन में हमें गृहस्थ धर्म के बारह प्रकारों का उल्लेख मिलता है। मानन्द उन बारह व्रतों को स्वीकार कर भगवान् महावीर का उपासक बनता है। वे व्रत इस प्रकार है-१. स्थूल प्राणातिपात प्रत्याख्यान, २. स्थूल मृषावाद प्रत्याख्यान, ३. स्थूल अदत्तादान प्रत्याख्यान, ४. स्वदार संतोप परिमाण, इच्छा विधि परिमाण, ६. दिग् देश विरति, ७ उपभोगपरिभोग विरति, ८ अनर्थ दण्ड विरति ६. सामायिक, १०. देशाकाशिक संवर, ११ पौषधोपवास, १२ अतिथि संविभाग व्रत । ५. इनमें प्रथम पांच अणुव्रत तीन गुणवत, और शेप चार शिक्षा के रूप में विहित किए गए है। सन को बारह व्रतों से ऊपर अलग से स्थान दिया गया है ।४ दिगम्बर परम्परा में भी श्रावक के बारह व्रतों का १. उत्तरा० २४/२ २. ३. पारिव प्रात ३६ स्वार्थ २४ भाषेपणादान निक्षेपोत्सर्गाः समितयः मूलाचारे मूलगुणाधिकारः १० : इरिया भासा एसरणा णिक्खेवदाणमेव समिदियो । पदियावणिया य वहा उच्चारादोण पंचविहा ॥ ४. उपासक दशा, अध्ययन १
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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