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'मोह विवेक युद्ध' : एक परीक्षण
डा० रवीन्द्रकुमार जैन, तिरुपति
'बनारसी नाममाला', 'बनारसी विलास', 'समयसार उन्हें रूपक में रूपान्तरित करने की परम्परा ऋग्वेद से एवं अर्धकथानक के अतिरिक्त 'बनारसी' नामावली कुछ अद्यावधिक साहित्य में किसी न किसी रूप में प्रचलित
और भी रचनाएँ बताई जाती हैं। इन रचनामों के विषय रही है । यद्यपि हृद्गत अमूर्त भावों को मूर्त पात्रों के रूप में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् इन्हें प्रसिद्ध कवि में प्रस्तुत करना, उनमें एक दृश्य काव्य की योजना भरना बनारसीदास कृत मानते हैं और अन्य विचारक इस मत और सम्बादों को श्रुतिमधुर झड़ी लगा देना बहुत ही का विरोध करते हैं। 'मोह विवेक युद्ध', कुछ स्फुट पद कठिन है, परन्तु प्रौढ-प्रतिभा और अनोखी संयोजनाऔर 'माझा' (१३ पद्यों की एक रचना) में तीन रच- पटुता से हमारे वरेण्य कवियों ने यह भी अत्यन्त सफलता नाएँ विवादास्पद हैं।
पूर्वक कर ही दिखाया है। ऋग्वेद मे देवासुर संग्राम, ___ 'मोह विवेक युद्ध' नामक रचना २२० दोहा चौपा- पुरुरवा-उर्वशी पाख्यान, श्रीमद् भागवत के चतुर्थ स्कन्ध इयों में वरिणत एक छोटा सा सम्बादमय काव्य है। यह में पुरजनोपाख्यान अपनी रूपक रचना के लिए प्रसिद्ध ही एक लघु खण्ड काव्य भी कहा जा सकता है। इसमें मोह हैं। जैन ग्रन्थों में कविवर सिद्धषि की 'उपमिति भवप्रपञ्च प्रतिनायक और विवेक नायक है। दोनों में विवाद हो कथा' विश्व साहित्य की अनुपम निधि है। आदि से अन्त जाता है। अपनी-अपनी काम क्रोध, लोभादि तथा सरलता तक इस ग्रंथ में रूपक का असाधारण ढंग से निर्वाह किया दया, क्षमा एवं प्रेमादि की सेनाएँ लेकर दोनों में संग्राम गया है। होता है और अन्त में विवेक विजयी होता है। इस कृति हिन्दी में इन संवाद-रूपकों का प्रचलन श्री कृष्ण के प्रारम्भ मे कहा गया है
मिश्र (भद्र) द्वारा संस्कृत में रचे गये 'प्रबोध चन्द्रोदय' बपु मैं बरणि बनारसी, विवेक मोह को सेन। नाटक के अनुकरण से प्रारम्भ हुआ । इसकी रचना बारताहि सुनत स्रोता सबै, मन में मानहि चैन । हवीं शताब्दी में हुई। हिन्दी में कविवर मल्ल ने मर्व पूरब भये सुकवि मल्ल, लाल दास, गोपाल । प्रथम (१६हवीं शती में) इसका भावानुवाद प्रस्तुत मोह विवेक किये सु तिन्ह, वाणी बचन रसाल॥ किया । 'ज्ञान सूर्योदय नाटक' भी इसी समय का कुछ तिन तीनहु ग्रन्यनि महा, सुलभ सुलभ संषि देख। इसी प्रकार का प्रसिद्ध नाटक है। मल्ल कवि ने अनुवाद सारभूत सक्षेप अब, साधि लेत हों सेष ॥ का नाम 'प्रबोध चन्द्रोदय मोहविवेक युद्ध' रखा। यह
अर्थात् मेरे पूर्ववर्ती कवि मल्ल, लालदास और गोपाल अनुवाद इतना लोकप्रिय सिद्ध हुग्रा कि इसके पश्चात् द्वारा पृथक् पृथक् रचे गये मोह विवेक युद्ध के माधार पर कविवर लालदास और गोपालदास ने भी इसी के माधार उनका सार लेकर इस ग्रन्थ की संक्षेप में रचना करता पर 'मोह विवेक युद्ध' नामक रचनाएँ की । कहा जाता है है। उक्त तीनों ही कवियों की रचनाओं के मध्ययन के आगे चलकर प्रसिद्ध जैन कवि बनारसीदास ने भी उक्त लिए, हमें ऐसी भावात्मक रचनामों की एक विस्तृत तीनों कवियों (मल्ल, लालदास और गोपाल) की रचपरम्परा जो ऋग्वेद से ही प्रारम्भ होती है समझनी होगी, नामों के माधार पर 'मोह विवेक युद्ध' की रचना की। तभी हम इस 'मोह विवेक युद्ध के कर्ता का निर्णय भी जहाँ तक इन रूपकों की कथा वस्तु की बात है, वह इन समुचित रूप से कर सकेंगे।
___ सभी में प्रायः एकसी है, उसके संयोजन में अवश्य ही कहीं गभीर भावों को सरल एवं जनग्राह्य बनाने के लिए कहीं नाम मात्र का स्थानान्तरण हो गया है।