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________________ साहित्य-समीक्षा १. जैन भारती-(समन्वयांक) सम्पादक बच्छराज दिया गया है। उन दर्शनीय वस्तुओं मे से वोटेनिकल मंचेती प्रकाशक-श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, ३ गार्डन, नेशनल लायब्ररी, चिड़िया खाना, प्रादि हैं जनतो. पोर्चगीज चर्च स्ट्रीट कलकत्ता-१ वार्षिक मूल्य १२) पयोगी चीजों में पोस्ट आफिस, हस्पताल, मुख्य ट्राम रास्ते रु०, इस प्रक का मूल्य ७५ पंसा। आवश्यक बसे, आदि का दिग्दर्शन कराया गया है। पुस्तक प्रस्तुत अंक महावीर जयन्ती के उपलक्ष में "विशेषांक' यात्रियों के लिए उपयोगी है, प्रत्येक यात्री को उसे पास में रूप में प्रकाशित किया गया है। समन्वय की दिशा में यह रखना चाहिए जिमसे उमे कलकत्ता में कोई असुविधा यास है, परन्तु समन्वय का कान नहीं चाहता, सभा नहीं हो। पुस्तक की भापा मुगम और मुहावरेदार है। विरोध मे डरते है, हिताभिलाषी है, फिर भी उनमे विरोध हो जाता है यह आश्चर्य है । समन्वय के लिए युक्ति परीक्षा ३. दस वेवालियं [बीमो भागो]--दश वैकालिक और मध्यस्थ भाव आवश्यक है। इनके होने पर समन्वय दूमरा भाग वाचना प्रमुख प्राचार्य तुलसी, प्रकाशक श्री होना सुलभ है, विचार वैषम्य दूर होकर ही समता ओर जैन श्वेताम्बर तेरा पथी महासभा, ३ पोर्चुगीज चर्च सह-अस्तित्व बन सकते है। जैन समाज के नेतागण यदि स्ट्रीट कलकत्ता-१, पृष्ठ ८००, बड़ा साइज, मूल्य सजिल्द जीवन में अनेकान्त को अपना लें, तो समन्वय दष्टि सफल प्रति का २५ रुपया। हो सकती है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दश अध्ययन हैं और वह विकाल में प्रस्तुन अंक में ३३ लेख दिये गये है, जिनमें समन्वय रचा गया है इसलिए इसका नाम दश वैकालिक है इसके एवं एकता के विषय में चर्चा की गई है तथा उदार दृष्टि- कर्ता शय्यभव है, कहा जाता है कि उन्होने अपने शिष्य कोण अपनाने की भी प्रेरणा दी गई है। जैन मस्कृति मनक के लिये इसकी रचना की थी। दश वकालिक अग को उज्जीवित रखने के लिए ममन्वय की अत्यन्त आवश्य- बाह्य पागम ग्रन्थ है इसमें आचार और गोचर विधि का कता है। परन्तु जब तक साम्प्रदायिक व्यामोह कम नहीं वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ पर नियुक्ति चुरिणया और हो जाता, नब तक अनेकान्त की ममुदार दृष्टि जाग्रत नहीं हारिभद्रीय वृत्ति उपलब्ध है। श्वेताम्बर परम्परा में इस हो मकती। विद्वानों और ममाज-सेवकों को विचार कर ग्रन्थ का बड़ा महत्व है । ममन्वय को जीवन का अंग बनाने का प्रयत्न करना प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन और हिन्दी अनुवाद मूल्य चाहिए। आचार्य तुलसी गणी का यह प्रयास बहुत ही के अनुरूप करने का प्रयत्न किया गया है और विषय को मून्दर और समयानुकूल है। प्राशा है ममाज इस पर गहरा स्पष्ट करने के लिए जहा तहा टिप्पणियां दी गई है। विचार कर मनेकान्त को जीवन में लाने का यत्न करेगी। एक पृष्ठ के नीन कालम करके प्रथम कालम मे मूल, दूसर २. यह कलकत्ता है-लेखक धर्मचन्द्र मगवगी कल- में उमकी मस्कृत छाया और तीसरे में हिन्दी अनुवाद कना । प्रकाशक, एक्मे एण्ड कम्पनी पुस्तकालय विभाग, जैन दिया गया है । एक अध्ययन के बाद उसके प्रत्येक श्लोक हाउम ११ एस्प्लेनेड रोड, ईष्ट कलकत्ता-१ । पृष्ठ ६४ के शब्दों पर टिप्पणिया दी हुई है, जो अध्ययन पूर्ण है मूल्य १) रुपया। और उनके नीचे पाद टिप्पण में ग्रन्थों के उद्धरण आदि प्रस्तुत पुस्तक में कलकत्ता का सजीव परिचय कराया का निर्देश है इसी क्रम से सम्पूर्ण ग्रन्थ का विवेचन दिया गया है । कलकत्ता को कब और किसने बसाया है और हमा है। इस ग्रन्थ के सम्पादन में प्राचार्य तुलमी के उसकी क्या-क्या प्रगति हुई। उसके क्या दर्शनीय स्थान प्रमुख शिष्य मुनि नथमल जी और अन्य सहायक साधुप्रो हैं, कहा हैं, उनकी क्या-क्या महत्ता है, इसका विवरण ने ग्रन्थ को पठनीय एवं संग्रहणीय बनाने में खूब श्रम
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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