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________________ अनेकान्त छत्र तीनों राजित जिनेश तर पीस पर मुरनर नागेंद्र जु भाइकै चढाइयो । प्रापन लोक की महिमामयि फुनिंद-मर चौह चक जाति की गढाइयो । मुर पुर हु की शोभा सुर निमलि रची देवतानि नोनी लगड़-यो। धनुदाम मनौ शशि सूरकी मंडलु दिगननि समीप मोती पंकनि पढाइयौ ॥३॥ गंभीर गहरी धुनि बाजत निशान तेरै ताकी मुझ तीनो लोक दमौ दिशि पूगे है। जैम नी बादल गाजि कहै महा मेघु आयो तैमै यो कहन त्रिभूवनपति झरी है । मा धर्मराज के गुन घोपत मानी कधी जगत में जाकी जसु सब ही थेमू है। धनुदाम प्रभु के जयतबादी जोधा कुवादी मरण मानु महा चक सूरी है ॥३॥ म.........'पारिजात श्रादि पुष्य जन सुगन्ध दल पुनीन प्राकास थे परौ । ववता सकल आई महा प्रीति लाई..... सह दंप शोभा नननि के परपै ॥ गधोदिक विष्टि कर जनमु सफलु धरै प्रापन श्रा........"हर। कह धनराज वैठि बैटिक विवान मुर महज मुभाइ मैं परम प्रीति पर ॥३३॥ .........नि शोभा भामंडल नर नाथ कोटि व मानी एक ठौर की है। काच मनि श्रादि दै पदारथ......निनका मकल मोभा करी जिहि होनी है ॥ तुम्हारी यो शोभा मानी दपीय द्रपन माह प्रा......नाथ तो उपमा दीनी है। धनदाम नाही कछु तप तन्य गुनु तामै शशि कमी मीतलता नवल है ॥३४॥ तुम्हारी की य महिमा महा हो नाथ म्बर्ग को मागुरू मार्ग मुकति है। जितने कितन जीव जैमी ज..... . . नमी नाकी परिनबंति उति है। नाव वांनी उछलनी जीव क्रम भिन्न भाउ यह पुन्य पाप"....'मुगति है। धनदाम प्रभु चतुरानन जु चारी मुप बंद चर्व नाम सबह उकनि है ॥३॥ ......"पक....."चरणा हम अष्टोत्तम मांडने मनोहर में प्राई के पचित है। जहा जहा पद धरै तहा गा...."नए की मयूपा में सति है ।। समवसरण में थे बिहार मर्म के वि विविध वियुध प्रेम....."है। कहे धनुदाम राजु मुरराज कर पद एजनारिरीन के वृन्द नाना अपने नचन है ॥३६॥ ..........ई तहा जिनराज रे........ लब्धिमई कंवल ज्ञान के........। क्वल ज्ञान नहीं और के विश....कर विभृनि होह ममाम के प्रान की । अनन्त दरिस ज्ञान पउपबल बल अनन्त अनन्त चतुष्टय..... जानकी । धनुदास जहा विभाकर जोति जगमग गननि मयूषा केस कहीय प्रमान की ॥३७॥ .....'होइ पागु है श्रावन प्रभु नगै नाम लीग हु चलि मकै मुन ठौर थे। मद के....."गलितु दुनीद....."घात की काया मानौ बायो...."काल दौर थे। चवन कपोल पटें गुंजनु गरूर ठट क्रोध कियौ सुर भौर थे। कहै धनुदाप जाकै तुम्हारे नांव को अर तुमको सम्हारि मौयौ हरे ॥३८॥ ...."मीम भू जार भूपीयत श्रोन सौ मनित मोती भुज मम जानीयौ। जाक वधाटाटो नर....'फर जाकौ देह द मुप पावै नहीं बानीयौ ।। जाकै डर पर गैरि जहा समुदाई दौरी जार्क केवल ये....."न प्रमानीयौ। धनुदाम म मृगराजु रूप नाम मंत्र मृग के समान क्यो न कानु गहिमा......३६॥
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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