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________________ वघेरवाल जाति (डा० विद्याधर जोहरापुरकर, जावग) प्रस्ताविक-- गजा बलिभद, उसका बेटा बरणकुयर और इक्यावन दिगम्बर जैन समाज की जानिपों में बघेरवान जानि गांव के इक्यायन टाकृर को उपदेश देकर बधेरवाल जाति का भी विशिष्ट स्थान है। इस जाति के लोग राजस्थान १२ गोत्र की स्थापना करी । संवत 19 माह बदी । नया मयप्र में और मदागार में भी निवास करने है। रविवार को । मह कारन कर कुछ घर केलागढ़ देश तरफ इन की साध्या ५ हजार र श्रापपास है। इस जाति का श्राया मो उनका धरम टूट गया। वहाँ बिहार करते करते नाम राजधान में बैंक के निकट थिन बघेग नामक लोहाचार्य जी काष्ठासंध बाले प्राये सो उनने उपदेश ग्राम में लिया गया है । इस ग्राम में इस समय बंदलवाल दर धर्म में स्थापना करी, मो मत्ताबीय गोत्र काष्ठासंधी नथा अगरबानी 4 घर जिनमें बारहवीं-तरहवीं सदीय संबन 1४. श्रामोज मुदि १४ मंगलवार को । संवत की कई मनियां है। जैन साहित्य और इतिहास पृ० ३४४)। १२४१ अलिबदन पातम्याह के समय में चित्तौड़ में राणा भाटों की अनुथति-- रतनसिंह चौहान का कामदार पुनाजी म्बटोड था उसने ___ बघेन्याल जाति के प्रत्येक परिवार के सदस्यों में ३५. घर लेकर दक्षिण में प्राया।' (इस वर्णन का हस्तनामों की मृवी जयार करने का काम भाटा कर लिन मार संग्रह में है। वि०सं० १E७ म भाट परिबार वंश परम्पग कर श्राय हैं। वि० सं० १८७३ रूमबदाम नागपुर आये थे, उन्होंने इस बारे में थोड़ा में भाट हीगनन्द और कालगम कारंजा में थे उस व भिन्न बर्णन किया था-बलिभद्र राजा का पिता बाग उन्होंने बघेरवाल जाति की स्थापना के बारे में इन शब्दों में वर्गान कि.पापा-'प्रथम दृढाड दश में गजा विक्रम के नामक था तथा बालभद्र के पुत्र बरुणकुबर के ५२ पुरों बम और कन्दकन्दाचार्य जी के अम्नाय में जम्प में १२ गोत्र स्थापित हये, बघेरा गांव के पास इनकी सेना म्नामापा । ये बघेग गांव में आये । उस गांव का में मर्ग का प्रकोप हुश्रा, नब रामदाम भाट की सलाह से शाषांश सं० १९८३ के नाम छुपे हैं यदि रचनात्री घोर रचयिता दिगम्बर शास्त्र भगदारी में कई श्वेताम्बर रचनाय भी के नाम गलत नहीं छपे हों तो तो षट नेम्या चाल-हर्ष काति मिलन: है अतः नेणवे के गुट के से जिप नेमि राजिमती वेल और पंचन्द्रिय बलि छ।हल ये २ नाम उमंगक 12 नामों को नकल मने प्राप्त की है यह श्वे. सीहा कवि की रचना में और बढ़ जायेगे। जिन बलियों के निमितानी के नाम लगना । हमको २ प्रतिया ११ वीं और १६ वीं शताब्दी सूचियों में नहीं है उनकी अच्छी तरह जांच कर लेना की . भगदारों में मुझे प्राप्त हुई है। सम्भवतः बलिचाहिए । यदि उनमें कोई अज्ञात मिले तो टीक। मंजक रचनाओं में यह सबसे प्राचीन है। कुछ महीने पहले मैंने छापर के स्व. मोहननाल और भी कोई दिग. लि डा. कस्तूरनन्द कासलीवाल दुधेडिया के पास एक महत्वपूर्ण दिग. गुटका देवा था परमानन्दर्जन, कुन्दनलाल जैन प्रादि को जात हो तो उस उसमें गुगाठाणा बेलि में भिन्न होना ही सम्भव हैं। वैसे की जानकारी शीघ्र ही प्रकाश में लाने का अनुरोध है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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