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________________ ६४ अनेकान्त घे लोग समीप ही निवास करते हुए मुनि उमाम्बामी, लोहाचार्य, विद्यानन्द, रामसेन ब नेमसेन की शरण में पहुचे, उनके मन्त्रजल से रोग शान्त हुआ, तब वे सब लोग जैनधर्म में दीक्षित हुए तथा रामदास के वंशजों को उनका कुल वृत्तान्त संग्रहीत करने का काम सौंपा गया। कुछ और अनुश्रतियां काष्ठासंघ के विभिन्न भट्टारकां की प्रशंसा में समय समय पर लिम्वे गये कई छप्पयों का संग्रह हमार संग्रह के एक हस्तलिखित गुटके में है। इसमें बघेरबालों के सम्बन्ध में भी पांच पद्य हैं जो इस प्रकार हैं५ काष्टासंघ तप तेज नयर बडेली माहे । बघेरबाल बर न्यात गोत बागडिया त्याहे ॥ साह सदाफल सरम नारि कनकादे सुन्दर । करे धर्म प्रालोच जिनेश्वर पृज पुरंदर ॥ गंबत बार इक्कावने बिंव प्रनिष्टा यय तिलक । पार्चनाय जी थापया जय जय जय बोलइ खलक ॥ काष्टासंघ विशाल लाइबागड गच्छ जागो । वघेरबाल वर न्यात गोत बोरखंडया बखाणो॥ पापसाह कुलतिलक नाम मोहन वर मंडन । संवत ऋण पचीस धर्मध्वज रची अम्बंडन ॥ वेई पुर पाटन सरस पार्श्वनाथ जिन थम्पयन । वृषभदाम कवियण कह। मों जय जय जस अप्पयन । काष्टासंघ सुजाण न्यात बघेरबाल बिराजित । खटबड गोत गयंद पुरणमल साह सुसोभित ॥ नयर बघेरा मोह सरस अनि कीधी प्रतिष्ठा। शान्तिदेव पधराय भोजन बहु दिया मिष्ठा ॥ संबत प्रण इक्कावने माघ मास दशमी शुकल । वृषभदास कवियण कही धरणायुत गुण तो प्रकल ॥ ४ काष्ठासंघ उदार लाडबागड गच्छ सोहे । वघेरवाल वर न्यात गोत बोरखंढया मोहे ॥ उग्रसेन वड वीर पामसुत देश विख्यातह । पट् दर्शन माहि कीर्ति कनकदे सुन्दर मातह॥ संबत त्रण पंचाबने पाटन माहि झलमल किया। सुमतिदेव इम उच्चरे मुनि सुग्रत जिन थप्पयो। काष्ठासंघ गच्छ सफल नाम माथुर मनमोहन । न्यात बघेरबान गोत पितलिया मोहन । साह नाम श्रीपाल नगर उजेणी माही। कियो प्रतिष्ठारम्भ देवता विक्रम माही ॥ संबन श्रण पैताम मे सुरनरखेचर नुतचरण । जयउ अबन्ती पास लोहसूरिमंगलकरण । अनुश्रुतियों का विचार भाटी की अनुश्र नियों में तथा ऊपर के पद्यों में इस जाति के व्यक्रियां की जो प्रचीन तिथियां दी हैं व कल्पित ही मालूम पड़ती हैं। क्योंकि अन्य साधनों से उनका कोई समर्थन नहीं होता। सं० १४२ में काष्ठासंघ का अस्ति-ब इस में बतलाया है वह तो स्पष्ट रूप से इतिहास के विरुद्ध है। क्योकि काष्ठामंध की स्थापना पं. ७५३ में हुई ऐसा दर्शनग्नार में वर्णन है तथा इसके शिला लेखीय उल्लेख तो बारहवीं शदी में ही मिलते है। किन्तु इन अनु. श्रुतियों में कुछ बारा वारक भी हैं । बंधेरगाल जानि के १२ गात्रों में २५ मूलमंघ के तथा २७ काप्टासंघ के अनुयायी थे बम बात का समर्थन बिक्रम की अठारहवी पदी के लेग्बक नरेन्द्रकानि के एक पद्य से होता है (भद्दारक सम्प्रदाय पृ. २८४) श्री काप्टासंघ नाम प्रथम गोत्र पंचबीम । मुलमंघ उपदेश गोत्र अंने सत्ताबीस ॥ बघेरवाल ब्रड ज्ञाति गोत्र बावण गुण पृरा । धर्म धुरंधर धीर परम जिन मारग सूग ॥ महाघ्रतधारक महारक श्री लक्षमीमेनय जानिये । गुरु इन्द्रभूषण गंगसम सुगुण नरेन्द्रकीति बग्वाणिये॥ इस जाति के लोग मूलतः राजपूत क्षत्रिय थे तथा बाद में जैनधर्म में दीक्षित हुये थे इसका भी एक समर्थक प्रमाण है। इस जाति में प्रतिवर्ष चैत्र शु. ८ तथा प्राश्विन शु. ८ को कुल देवी का पूजन किया जाता है (उत्तरी प्रदेशों में तेरापंथ के प्रभाव से यह रीति लुप्त हुई है किन्तु दक्षिण में अभी रूढ़ है) जिसे दिन्हाडी पूजन कहते हैं। इस समय यद्यपि साधारण बघेरवाल अपने कुलदेवता को पद्मावती, चक्रेश्वरी या अम्बिका यह नाम देता है तथापि भाटों के कथनानुसार इन देवियों के नाम अलग अलग है
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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