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________________ २८ अनेकान्त किसी तरह भी बाहुबली को मानते न देख कर भरत जय पराजय का निर्णय करने के लिए तीन बड़े राजाओं चितामग्न हो गया। अंत में उसने कहा, 'इम मागर में की एक मंडली चुनी गई, रणभेरी फिर एक बार बजी, दोनों अब और बूदे नहीं गिरेंगी, बाहुबली । जो गिर चुकी हैं भाई एक साथ अपने २ सिंहासनों से उठे और बीच मैदान उन्हीं में हम इब गए हैं। हमने सोचा कि दिग्विजय से में पा गए । फिर एक बार जयघोष के नारों से आकाश रोज रोज के रक्त पात बन्द हो जाएंगे, किन्तु स्वयं तुम ही गूंज उठा, दोनों महाबलियों ने अपनी २ तलवारें खींच हमारा विरोध करोगे इसकी प्राशा तो स्वप्न में भी न थी।' लीं एक साथ आकाश में दो बिजलियां सी तड़क उठीं, और बाहुबली अविश्वास के कारण चुप रहा, कुछ क्षण लोहे पर लोहे का प्रहार हुअा। फिर निरंतर प्राक्रमणों का बाद भरत मे विचार पूर्वक प्रस्ताव किया। 'हम चाहते हैं एक तांता बंधा, यहां तक तलवारों का आकार तक दिवाई कि इच्वाकु वंश को जो गौरव मिला है वह इच्वाकु वंश देना बंद हो गया। सूर्य प्रकाश में और ऊंचे चढ़ता गया में ही रहे और रक्त भी न बहे।' ताकि ठीक बीच में पाकर वह अपूर्व मंघष को देख सके । 'इसका अर्थ क्या है, भैया ? में नहीं समझा।' भरत और बाहुबली पसीने पीने हो गए कब किसका सिर पृथ्वी पर प्रा गिरेगा कुछ पता नहीं लगता था, चारों 'यह झगड़ा हमारा प्रापस का है।' भरत ने उन्नत दिशाएं स्तंभित हो गई थीं। मस्तक हो कर कहा । 'हम आपस में भी लड़ कर उसकी हार जीत का निर्णय कर लें।' सूर्य ने फिर एक बार मुकना प्रारम्भ कर दिया था। इतनी देर के युद्ध के बाद भी जब हार जीत का कुछ निर्णय 'और उस चतुरंगिनी का क्या होगा ? बाहुबली ने असीम आश्चर्य से पूछा ।' नहीं हुआ, तो पंचों ने एकमत होकर दोनों वीरों को बराबर ठहराया। चतुरंगिनी तुम्हारे ऊपर प्रहार नहीं करेगी। वह हम दोनों भाइयों की लड़ाई का तमाशा देखेगी, और हम में युद्ध बंद करने का डंका बजा और दोनों भाईयों ने तलवारें म्यानों में कर ली, भरत और बाहुबली एक दूसरे से जो जीतेगा वही उसका स्वामी होगा, वही चक्रवर्ती से कुछ दूरी पर खड़े हांफने लगे सहन्या बाहुबली ने दृष्टि होगा । पराजित भाई विजेता भाई को उसका मान देगा।" _ 'भैया ।' बाहुबली हर्ष और विस्मय से लगभग चीग्व उठाई । भरत उमकी ओर प्रेममयी दृष्टि से देख रहा था। उठा । मन ही मन उसने भरत की उच्चता की सराहना भरत अपने हाथ बना कर स्वयं दो पग भागे श्राया और की। भाई भाई के गले से लिपट गया। दोनों की बाहों के जब दोनों ओर की सेनाओं ने उपयुक्त निर्णय सुना, यत्र तत्र बिखरे घावों के रक्त मे दो पतली मी धाराएं तो वे हर्ष और उल्लास में डूब गई । चक्रवर्ती भरत का निकलीं और एक दूसरे से मिल कर पृथ्वी पर चू गई। जय, महाराज बाहुबली की जय के नारों से प्राकाश गूंज कुछ समय बाद दृष्टि युन्द्र का प्रारम्भ हवा । सूर्य को उठा। बाएं रुख कर दो बराबर ऊंचाई की स्वर्ण चौकियों पर भरत द्वद्व युद्ध तीन प्रकार से होना निश्चत हुश्रा : और बाहुबली प्रामीन हो गए। धीरे-धीरे दोनों भाइयों और बाहुबली भापनि हा दृष्टि युद्ध, मल युद्ध, और खड़ग युद्ध । सेनानों में इसकी की दृष्टियां उठी और एक दूसरे में उलझ गई, सूर्य मुकता घोषणा हो गई । एक छोटे से मैदान को घेर कर दोनों गया, मुकता गया, किन्तु पलकें जो एक बार उठीं, तो फिर भोर की सेनामों का जमघट लग गया। सामने ही चक्रवर्ती नहीं झुकी। देखते देखते भरत की शांवों में पानी भागया, का सिंहासन था, जिसके दोनों ओर आमंत्रित राजाओं को दो बूंद प्रांसू उसकी अांखों से गालों पर दुलक गये। भासन देकर सम्मानित किया गया था, दूसरी ओर बाह. भरत इस बार हार गया। बली का सिंहासन ठीक चक्रवर्ती के सिंहासन के सामने था, पंचों ने इशारा किया, युन्द्र समाप्त होने का डंका बजा और उसके समीप ही महाराज वज्रबाहु का प्रासन रखा और भरत पलक झपका कर उठ गया। किन्तु बाहुबली, हुना था। वाहुबली अब भी दृष्टि सीधी किए ज्यों का त्यों स्थिर बैठा
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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