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________________ दिग्विजय २६ था, भरत उसके पास तक पाया, उपके कंधे पर हाथ रखा सारा आधार और जिनके द्वारा कमाई माल संपदा सब और दूसरे हाथ की हथेली उसके मुंह पर फेर उसकी इसी दुनिया में छूट जाएगी। पलकें बन्द कर दी। बाहुबली भरत को लिए अखाड़े से बाहर आया चारों बाहुबली की सेना ने 'महाराज बाहबली की जै' का और 'महाराज बाहुबली की जे' का स्वर मुखरित हो उठा, घोष किया, किन्तु भरत की चतुरंगिनी चुप थी । भरत ने भने किन्तु बाहुबली इस से विचलित नहीं हुया । उसने चक्रकहा, 'हमारी सेना चुप क्यों है ? कहो' महाराज बाहु वर्ती के सिंहासन के पास जाकर भरत को उस पर प्रतिबिंबत बली की जय' और महाराज बाहबली की जय के घोष से करते हुए प्रतिष्ठित कर दिया । बाहुबली के जयघोस से मानों समस्त वायुमंडल व्याप्त हो गया। फिर वातावरण ध्वनित हो गया। मल्लबल युद्ध का समय आ गया अखाड़ा तैयार था। भरत तुरन्त सिंहासन से उतर पाया। 'अब यह सिंहाभरत और बाहुबली लंगोट कसं अखाड़े में खड़े थे, मारू सन हमारा नहीं रहा । बाहुबली, तुम जीते हो इस बाजा बजना प्रारम्भ हश्रा और दो मस्त गजों की तरह वे तुम्हारा अधिकार है।' एक दूसरे से भिड़गए दोनों मल्ल युद्ध की कला में पारंगत 'बाहुबली तो उसी समय हार गया था, जब भैया ने ये । दाव चल रहे थे, लेकिन लग कोई नही रहा था। चतुरंगिनी के बढ़ते हुए कदम रोक दिए थे। बाहुबली ने शरीरों से स्वेद कण फूटने लगे थे और मिट्टी उन से चिपट शांत वाणी में उत्तर दिया। गई थी। भरत ने कहा । 'हार को जीत कहने से हार जीत नहीं अचानक बाहुबली ने पैतरा बदला, और उसने फरती हो जाती । अब पाओ, बाहुबली, यह राज्यलक्ष्मी तुम्हारी से भरत को अपनी हथेलियों पर रख कर ऊँचे प्राकार में है, इसे सम्भालो।' उठा लिया। बम, भरत पृथ्वी पर गिग और सब कुछ 'जो तुम्हें छोड़ कर मुझ से लिपटना चाहती है उसे समाप्त हो जाएगा। किन्तु कितनी ही देर तक भरत बाहु- मैं संभालू, ना भैया, यह वश्या तुम्हें ही मुबारक हो।' बली के हाथों पर रहा, लेकिन बाहुबली ने उसे भूमि पर बाहुबली ने रद स्वर में कहा। नहीं पटका । इस बीच में बाहुबली के सामने विचारों की भरत द्रवित हो गया । 'बाहुबली, इससे तो दुनिया बस गई। अच्छा था कि तुम मुझे भूमि पर ही पटक दते । तुमने इस जिस भाई ने उसे पकह २ कर चलना सिखाया, जिस सिंहासन पर बैठा कर मुझे भूमि के भी नीचे गाढ़ दिया है, भाई की गोदी में पल कर वह बड़ा हुआ, जिस भाई ने अब मुझे उबारी, बाहुबली, प्रायो, अपनी चीज ले लो।' उसके प्रेम के वश होकर अपनी अजेय और विशाल मना 'भैया' बाहुबला ने एक और महत्वपूर्ण और चौंका को एक श्रोर खडे होकर तमाशा देखने के लिए छोड़ दिया देने वाली घोषणा की, 'मुझे अब अपना ही राज्य नहीं क्या वह उसी भाई को पृथ्वी पर पटकेगा? चाहिए, तुम्हारा ले कर मैं क्या करूंगा? मैंने अपना भूला कितनी चंचला है यह लक्ष्मी । भरत ने इसके लिए पथ पकड़ने का निश्चय किया है, भैया, मैंने पिता जी का लाखों का खून बहाया, लाखों को चे घर बार किया. वो पथ पकडने का निश्चय किया है। गर्मी सर्दी मही, किन्तु अभी उसके उपभोग करने का बाहुबली की बात सुन कर भरत चौंक पड़ा, वैराग्य समय भी नहीं पाया था कि वह उसे नगर नारी की तरह यही वह शब्द था, जिसने उसके प्रत्येक इरादे के साथ, छोड़ कर चला जाने के लिए तैयार है। धिक्कार है ऐसी बाहुबली के सम्बन्ध में प्रत्येक विचार के साथ, और उसकी धन सम्पदा पर, एक दिन आएगा, जब न भरत रहेगान भावनाओं के साथ भीषण द्वद्व किया था। बाहबली बाहुबली, केवल उनकी अस्थिरता और निःसारता पर हंसनी अपनी भावनाओं में मग्न होते हुए चल रहा था। हुई यह दुनिया रह जाएगी और उनके किए हुए कमों का यह कुटुम्ब एक वृक्ष है । संध्या होते ही इस पर तरह एक ऐसा लेखा उनके साथ बंधा चला जाएगा, जिसका तरह के पक्षी पाकर बैठ जाते हैं । रात भर वे एक दूसरे
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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