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________________ अनेकान्त पास बंकापुर गये। उसी समय महाराज ने मसन नामक लक्ष्य में भट्टारक जी को 'बल्लाल जीवरक्षक' की उपाधि शत्रु को वषकर उसका देश प्राप्त किया था और उनकी भी दी गई थी जो कि शिलालेखों में भी इस बात का रानी लक्ष्मी महादेवी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। उल्लेख पाया जाता है । अगर विष्णुवर्धन को जैनधर्म एवं नरेश ने उन पुजारियों की वन्दना की और भक्ति से जैन गुरु पर भक्ति नहीं होती तो वह चारुकीर्ति जी के गन्धोदक एवं शेषाक्षत अपने मस्तक में लगाये। उस समय इलाज के लिये प्राग्रह ही क्यों करते ? विष्णुवर्धन ने कहा कि "इन भगवान की प्रतिष्ठा के पुण्य सारांश यह है कि महाराज विष्णुवर्धन कारणात से से ही मैंने विजय एवं पुत्र का जन्म पाया। इसलिए मैं वैष्णव होने पर भी जैनधर्म पर उन्हें प्रेम तथा अभिमान इन भगवान् को 'विजयपार्श्वनाथ' नाम से पुकारूँगा। कम नही हुमा था। इस बात को स्पष्ट करने के लिये मौर मैं अपने पुत्र का नाम 'विजय नरसिहदेव' रक्खूगा। उपर्युक्त प्रमाण पर्याप्त है । हाँ, एक किंवदन्ती है कि द्वारसाथ ही साथ महाराज ने मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए समुद्र माहलेबीडु मे विष्णुवर्धन के समय मे लगभग ७५० 'जावगल्लु' नामक ग्राम भेट किया था। न० १२४ सन् विशाल एव मनोज जैन मन्दिर थे और वैष्णव होने के ११३३ का यह लेख बस्तिहल्ल (हलेबाड़) मे पाश्र्वनाथ उपरान्त विष्णुवर्धन ने ही उन सब मन्दिरो को नाश मन्दिर के बाहरी भीत पर एक पाषाण में अकित है। कराया। प्राज हलेबीडु मे दृष्टिगोचर होने वाले मन्दिरो छठी बात है कि जिस समय विष्णुवर्धन के बड़े भाई के भग्नावशेषो से भी मन्दिरो के विनाश की बात यथार्थ बल्लाल एक असाध्य रोग से विशेष पीड़ित थे तब विष्णु- मालूम होती है। पर यह विनाश-कार्य कब और किससे वर्षन के प्राग्रह से ही श्रवणबेल्गोल के तत्कालीन मठा- हुआ यह बात अनिश्चित है। इस विषय मे अनुसन्धान धीश श्री चारुकीति जी का इलाज किया गया और उस की मावश्यकता है । तब ही इस बात को सच्चाई प्रकट इलाज से बल्लाल स्वस्थ हो गये थे। बल्कि इसी के उप- हो सकती है। 'अनेकान्त' के स्वामित्व तथा अन्य ब्योरे के विषय मेंप्रकाशन का स्थान वीर सेवा मन्दिर भवन, २१ दरियागज, दिल्ली प्रकाशन की अवधि द्विमासिक मुद्रक का नाम प्रेमचन्द राष्ट्रीयता भारतीय पता २१, दरियागज, दिल्ली प्रकाशक का नाम प्रेमचन्द, मन्त्री वीर सेवा मन्दिर राष्ट्रीयता भारतीय पता २१, दरियागज, दिल्ली सम्पादकका नाम डा० मा. ने. उपाध्ये एम. ए. डी. लिट्, कोल्हापुर डा. प्रेमसागर, बडौत यशपाल जैन, दिल्ली राष्ट्रीयता भारतीय पता मार्फत वीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, दिल्ली स्वामिनी संस्था बीर सेवा मन्दिर २१, दरियागंज, दिल्ली मैं, प्रेमचन्द घोषित करता है कि उपरोक्त विवरग मेरी जानकारी और विश्वास के अनुसार सही है। १७-२-६४ ह.प्रेमचन्द (प्रेमचन्द)
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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