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________________ होयसल मरेश विष्णुवर्षन मोर जनधर्म धर्म पर अचल थद्धा रही। तलकाड के गग-नरेशो की माता माचिकब्जे कट्टर जिनभक्ता रही। उन्होंने प्रत समय परम्पग मे जन्म लेने वाले स्वाभिमानी तथा राष्ट्रप्रेमी मे प्रभाचन्द्र, वर्धमान और रविचन्द्र के तत्वावधान में गंगराज शक्ति, माहस, युद्धनैपुण्य, देशनिष्ठा प्रादि सदगुणो विधिवत् सल्लेखना स्वीकार कर एक माह के उपरान्त के मूर्तस्वरूप थे। श्रवणबेल्गोल मे शरीर त्याग किया। शातला के मातृगृह गगराज शौर्य निधि एवं उत्तुग पराक्रमी होने के काण वाले भी शुद्ध जैनधर्मानुयायी ही रहे। उनके समय मे होयसलों को मर्वत्र विजय ही विजय प्राप्त शातलादेवी पादर्श गृहिणी थी। साथ ही साथ वीरहुई। साथ ही माथ पर्याप्त कीति भी। पुनीश, भरत पत्नी भी। महाराज विष्णुवर्धन के राज्य-कार्यों में भी आदि अन्य जैन सेनानायकों को भी गंगगज पर बडा शातला बराबर भाग लेती थी। एक बार प्रधान सेनाअभिमान था । खासकर तलकाड और चोलों के युद्ध मे नायक गगगज को भी उन्होने ललकारा था। हाँ, बाद में गगगज को इन मेनानायको ने सकल महयोग प्रदान उन्हे इसके लिए पश्चाताप अवश्य हुमा । यो तो जातलाकिया था । गगगज धर्मात्मा थे। अत विजित गज्यो की देवी गगगज को बहुत मानती थी। एक बार गंगगज के एजाग्रो को किमी भी प्रकार का कष्ट नही देते थे। द्वारा गनी 'माता' के नाम से पुकारी जान पर वह 'शरणागतवत्सल' उनकी यह अघि सार्थक थी। अपने सविनय कहने लगी कि "अमात्य जी, भविष्य में कभी भी मेनापट्टाभिषेक के शुभावसर पर गगगज नरेश के द्वारा मुझे माप इस नाम मे मम्बाधित न करे। मै आपकी महपं प्रदत्त 'बिडिगेन विले' ग्राम को अपने उतराधिका- बेटी हूँ, माता नहीं है । शातला वाद्य, गीत और नृत्य इन रियो को न मौर कर तुरन्त श्रद्धेय स्वगुरु शुभचन्द्रदेव के तीनो मे बडी विदुपी थी। इस प्रकार रानी अनुकूल पत्नी, चरणों मे समर्पित करते है । देग्विथे गगराज की निस्वार्थ प्रादर्श राजकारिणी, प्रजावत्मला एवं उत्तमकुलपरिशुद्धा धामिक बुद्धि ! वस्तुत गगगज आदर्श मन्त्री, प्रतापी होने के कारण भारतीय श्रेष्ठ नाग-मणियो की पहली मेनानायक, अनन्य स्वामिभक्त, असीम प्रजानृगगी एव पक्ति में शामिल होने की योग्यता रखती थी। अप्रतिम देशभक्त थे। ऐसे महान व्यक्तियो पर जैनधर्म अन्त मे शांतलादेवी ने शक १०५० मे बेगलुर मे आज भी गर्व कर रहा है। करीब ३० मील दूरी पर स्थित 'शिवगंगे' में समाधिचौथी बात है कि प्रधान महिपी गातला का अन तक मरणपूर्वक शरीर त्याग किया था । बंगलूर के के.बी. जैनधर्म पर अचल रहना भी एक विचारणीय गम्भीर अय्यर नामक लेखक ने 'शातला' नामक अपनी रचना में बान है। अगर विष्णुवर्धन जैनधर्म के कट्टर विरोधी होते शातला की इम मृत्यु को 'प्रात्महत्या' लिम्व माग है। नो यातलादेवी जैनधर्म को पवको अनुमायिनी नही हो मैने उसका विरोध किया था। बल्कि हाल ही में मैमूर मकती थी। नरेश गतिला के जैनधर्म मम्बन्धी किसी भी विश्वविद्यालय के कन्नड प्राध्यापक डा. चिदानन्दमूति ने धार्मिक कार्य में बाधक नही बने है। बल्कि शातला के अपने महाप्रबन्ध में मेरे ही मन का समर्थन किया है। प्रत्येक धार्मिक कार्य में सहायक हो रहे है। शातलादेवी ने उनका भी कहना है कि शिलालेख में स्पष्ट "मुडिवि श्रवण बेल्गोल में 'सनिगन्धवाराणवस्ति' के नाम से एक स्वर्गले या दलु-मरकर स्वर्गामीन हुई।" लिखा है। मुन्दर जिनालय निर्माण करा कर उममें स्वनामानुकूल ऐमी विवेकशीला एव धर्मात्मा महिला की मृत्यू को शातिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित की थी। 'मति- आत्महत्या कहना निरी भूल है। शॉतला वस्तुत. एक गन्धवारण' शातलादेवी की अन्यतम उपाधि थी। प्रादर्श महिला थी। रानी शातला के श्रदय गुरु प्रभाचन्द्र एव प्रगुरु नेमि- पाँचवी बात है कि गगगज के पुत्र बोप्पदव ने अपने चन्द्र विद्यदेव उस समय के प्रमुख भाचार्यों में से थे। पूज्य पिता की स्मृति मे द्वारममुद्र पर जो विशाल एव शातला रूप, शील, दया, भक्ति आदि मानवोनित सभी मुन्दर जिन-मन्दिर निर्माण कराया था, उसकी प्रतिष्ठा के गुणों से अलकृत थी । रानी के पिता शंब होने पर भी बाद पुजारी लोग शेषाक्षत लेकर महाराजा विष्णुवर्धन के
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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