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अनेकान्त
कुमय चंदु चंदु व सुकलालउ
संऊ साहु हु णंदणु तीयउ जिण पय पुरउ णमिय णियभालउ
सिरि कुम्पराजु पयम्मि विणीयड पुणु बीयउ णंदणु सकियस्थे
तस्य पिया मुणिदाणकयायर रज-कज-धुर-धरण-समत्थे
लोहट णामें सुह-भावणपर संघाहिर असपति असंकिउ
वीई वीरा जिणगुण मरणइ ससि पहकर णिम्मल जस अंकित
रूवे रई मिलेणं जाणइ णिरसिय-पाव-पडल णिरु भइ जेण पइटाविय जिणबिंबह
णंदणु णेमिदासु सुह पासणु तहु थिरुमा संजाया भज्जा
परउवयार रयण-गुण भरिउ जिण मपहावणंग सुमणेजा
पावणु परियणु जण मण नोसणु तहु सुय माघउ अरियण गंजणु
पुणु संऊ मातहु सुह तुरि संजाया चे पुत्त वियक्खणु
जुजिय ज लाज त वियागे उबरण देवचन्द सल्लवण
णाम जे जिम हिम जिण यारो धत्ता-जो जिहु पियरइ सो पाण पिय सुय मंडण मंडिय श्रणह
शंदउ सिरि सुक्ख अडखंजु या इय चर भायर वंस कहा ।। २६ ।। इय चिरु णंदउ सुह लच्छि गेहु
जय जि उवण्णु कुमगज हंसु सिरि वीयराय जिण समउ हु
जमुमति वमें मह पंडयेण णंदर णिग्गंथ रिसिंद विंद
सकहत्त महा गुण मंडिाण ये दुविह महातव पह दिणिद
मिरि कमलकिति रिसि सीमाण शंदउ महिवइ मिरि कित्तिसिंधु
हरिसिंह साहुसंघाहियेण समरंगण पंगण परि अलंधु
सुय उदयारय जणेण पहु जे धम्म कम्म णिरु मावहाण
कइणा वि रइउ सुह सद्दहेहु सम्ममण--भावण--पहाण
सावय चरित्त जं अस्थवंतु गोवालय--वासिय सावयावि
मत्ता विहिति वज्जिउ पुगुत्तु णंदउ चिरु त अणएवि सयावि
नं बुहयण मोहिवि करहु सुद्ध णंदर गोलाराडयहुवंसु
फेडिप्पिणु पउ श्रायम विकद्ध घसा-महु सरमइ जणणी हिय पिय भणणी पयलु ग्वमिज्जउ दोसु परा
पढियंतु लिहंतउ रवि वरिजंतर णंदउ मत्थु पसुत्थ धरा ।। २७ ।। इयमिरि सावयचरिए, सद्दमण पमुह सुद्ध गुण भरिए सिरि पंडित रयधू वण्णिए. सिरि महाभब्व सुय साहु संघाहिव कुपराज अणुमरिणए । सम्मत्त कौमई नाम छटो मंधि परिछेप्रो सम्मत्तो ।
शुभं भवत् संवत् १६१४ वर्षे प्राषाढ वदि ३ प्रतिः- गुलाबकुमारी नायवेरी पत्र ५८ पंक्ति १० अक्षर ४. प्रति पनि प्रादि पत्र १ और सरिक अंतिम ॥
पंक्ति, नं.२ १८७ ।