________________
कविवर रइधू रचित-सावय चरित
तृतीय सन्धि प्रान्ते पत्र ३१ A पत्ता-कुरुराय बगिद अग्वंडु मह तइया दंसगुजायउ
रइ धूणउ सुणिवि तं मह पियहि सेग मुणहु चिरु प्रायड ।। २६ ।। सिरि पंडिय रइधू वरिणए मिरिमहा भब्य मेऊ पाहु सुय कुपराज मंबाहिवइ अणुमण्णिए अहिगमण सम्मत्त स्वाण वण्णणं नाम तीउ सन्धि परिच्छेद ।। सन्धि ३ ।।
चतुर्थ सन्धि प्रान्ते पत्र ३८ B धत्ता सम्मत कहंतर हिय मुणिवि भावं तजि ध रजई
हेलय मामय पउ पाविजइ जिं भबिउ बहित्तरिजइ ॥ १६ ॥ इय मिरि सावयचरित महसण पमुह सुन्द्र गुण भरिण पिरिमहायाधु सेउ मुय संघाहिवइ कुसराज अणुमगिणए अधिगम सम्मन वनणणे तुरिउ संधि परिच्छेट ।। संधि ।। ४ ।। पंचम सन्धि प्रान्ते पत्र ४५ B घत्ता-इय पत्तापराह, मुणि विन चिनह, जो कुसुगउ दाण करइ
___ यो दंपणु रहध . मणि वि परमपरु, भवसागर ला लई तग्इ ॥ १६ ॥ इयमिरि यात्रय चरित महसण पमुह सुद्ध गुण भरिप पिरिपंडिय रइधू वगिणप पिरि महा भव्य सेऊ साहू सुय संघाहिवइ कुसराज अणुमण्णिा पोम्पह पडिमावराणो णाम पंचमी मंघि परिच्छो सम्मत्तो ।। संधि ॥ ५ ॥ अन्त्य प्रशस्ति :घा-तहि अधम्म व्यायहु, मुन्द्र महायहु, ठिदि पायप्पिणु सिद्ध वरु
गिणवरूइ इधू हुउ, अप्पमिद गुण जुउ. कुपगजहु संपत्तियरु ।। २४ ।। इय धण कण रयण गुणोह पुग्गु
तहु णंदणु जिण पय पयय भाग्नु विजयच्छ गिरि व जिणहर वरण
विहडिय जणाण अधार ठाणु बहु विबुहासिउ एंतिय सवामु
लडऊहिहाण पालिय मधम्म गोवगिरि दुग्गु महीपयासु
रूपापिय यम तुहु हब सम्म नहि महिवइ णाम कितिसिंधु
नह जि मुश्रो विम्मुत्रो मुवावयारि अरि वर गय वड णि हलण मिधु
इगरणिव भंडाराहियारि तम्सेव राज पाय१ वणिदु
पिरि सेऊसाहु पसिद्ध माहु गोलाराडिय बल कुमय चन्दु
मजाउ जासु वर धम्मलाहु चिरु हवउ महरू णाम साहु
मुहग्ग सहु पिययम मुह पवित्ति गण मंदिर सीया भज णाहु
मल हारिणि णं जियाणा कित्ति धना-टुय चारि पिदण, जय प्रागंदगा. धम्मकज धुर धरण वर
भवियण मन्दर, पुज पुरंदर मग्गरण जग दालिद्द हरु ॥ २५ ॥ गुणहि गरिछु, जेठु मुहभवणु
तहु णंदणु चउक् गुणभृपिउ सुहि महयरू अरियण मनावग्गु
पढम वणु कइ पणहि पमंसिउ मिरिमाणिक्करगहू विक्वायर
हरिसिंधु हरिसु पायगु अण्णो तिय लवणमिरि सुह अणुरायउ
पहरू रूप पहाण्य मरणो