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________________ मंदिरों का नगर-मड़ई नीरज जैन सतना (म० प्र०) सतना जिला पुरानव की दृष्टि से भारत वर्ष का एक पूर्ण स्थान होते हुए भी इस स्थान को पुरानत्व के किसी अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है, ईसा पूर्व दुसरा शती का भी विद्वान द्वारा अभी तक प्रकाश में नहीं लाया गया । हो भरहुन का बौद्ध स्तूप, दश का सर्वाधिक प्राचीन भुमरा का सकता है कि इस स्थान की दुर्गमता और पथ की दुरूहता शिव मंदिर, गुप्त काल की अनन्य कृति नचना का ही इसका कारण रही हो। चतुमुम्ब शिव पार्वती मदिर तथा इसी काल की गौरव जैन मंदिरों का समूह शव-समूह के उत्तर में स्थित था। शाली कृतियां मारा पहाडकी जैन गुफाएं आदि अनेक उस समूह का मारी ममृद्धि भूगर्भ में विलीन पडी है, कुछ एक-प.क बढ़कर शिल्प-अवशेष इस जिले में आस-पाप जो उपर थी वह नष्ट-भ्रष्ट हो गई या यत्र-तत्र चली गई बिम्बर पड़े है। है, पर अभी तक हम मम टील का सरसरी देख भाल मे मध्य काल में भी इस भुभाग पर अनेक मुन्दर-सुन्दर जो अनुमान हुवा है, उसके अनुसार यहां पर पंचायतन कलाकन्द्रों का निर्माण हया है, जिनमें पतियान दाई, बाबू- शैली के कम-से-कम पांच विशाल, शिखर बन्द जिन मंदिर पुर और मडई का स्थान प्रमुख है। विद्यमान रह है। इन मंदिरों की कला ग्वजुगहों की सममई नी कभी ग्वजुराहो की तरह मंदिरों का ही कालीन और ची ही चैविध्य पूर्ण सज्जा-महिन तथा नगर रहा होगा। ऐसा लगता है कि कालान्तर में भूकम्प मृत्तियों के परिकर सहित मुन्दर तथा अन्यंत प्रचुर मात्रा में आदि के नैविक प्रकोप से इन मंदिरों का विनाश हो गया विराज मान रही है। और उन्होंने टीला का रूप धारण कर लिया। यह स्थान पर्व प्रथम इस टीले को दम्वने पर मुझे जो अनुभूति न जाने कितनी शनादियों नक उजड पडा रहा, अभी सी- हुई उसका वर्णन मभव नहीं है । अचानक पता लगाना इम इंद मौ साल पूर्व यहां एक छोटी मी बम्ती बम गई है। टीले पर पहुंच गया और मैंने यहां पुरातन का कल्पनातीत यहां भी दजुराहो की ही तरह जैन, वणन और शैव वैभव बिम्बरा हुआ पाया । जिम पन्थर को पलटना वही सम्प्रदायों के अलग-अलग मंदिर समूह थे उनमें से केवल एक-न-एक नीर्थकर प्रतिमा निकलनी । हर पत्थर पर पांव जन भग्नावशेपों की चर्चा इस लंम्ब में की जायगी। रग्बन में प्राशंका होती कि ना जाने उमक नाच पद्मावती, यह नगर एक बड़े तालाब के किनार बमा हवा था। चक्रेश्वरी, अम्बिका अथवा कौन से नीर्थकर विराजमान हो। तालाब से लगा हुवा ही पहाड़ है। मध्यकाल में यह पहाड़ रामवन संग्रहालय के लिए मैंने हम टीले की कुल कलचुरियो की त्रिपुरी शाग्वा की राज्य मीमा पर था और सामग्री अभी कुछ समय पूर्व संकलित की है। इनमें अधिमडई का तालाब तथा मंदिर ममृह चन्दल राजाओं की कांश नो पद्मासन और बड़गामन तीर्थकर प्रतिमाएं ही कलाकृति थे, इस प्रकार यह स्थान मध्य कालीन मूनि कला है, पर कुछक बहुन मुन्दर शासन देवी मनियाँ भी प्राप्त का संगम रहा है, यह आश्चर्य की बात है कि इतना महत्व हुई है। इस मामग्री के अतिरिक्त कुछ विशान नीर्थकर शिष पृ० ११६ का] मूर्तियों तथा देवी मूर्तियों और द्वार तारण, देहरी, वेदिका, देखता है, उनको देवता हुआ अनदामक भी तदात्मक की म्तम्भ प्रादि विविध सामग्री वहाँ अभी भी बिग्वरी पड़ी है। तरह प्रतिभामित होता है। यह टीले के ऊपर की कहानी है। टील के नीचे भुगर्भ में इस प्रकार लगता है, दोनों दर्शन अपनो गहराई में जिप कला वैभव के पाये जाने की प्राशा है वह तो निश्चित और भी अनेक दृष्टियों से विचित्र साम्य लिए हए है। ही कल्पनातीत है। अनुमान है, कभी ये दोनों धाराएँ बहुत पार्श्ववर्तिनी रही प्राप्त सामग्री के आधार पर यह पहज अनुमान होना हैं और इन्होंने परस्पर एक दूसरे को अवश्य प्रभावित है कि यहाँ एक फुट श्राकार से लेकर मात-पाठ फुट उंची किया है। तक अनेक प्रतिमाएं थी, नथा याद तीन फुट ऊंची बगा
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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