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________________ अनेकान्त ६६ द्वार स्तम्भ रखे हैं जिनका प्रलंकरण दर्शनीय है। यहां प्राकर्षक है । द्वार स्तम्भों पर गंगा यमुना की मूर्तियां गुरगी से प्राप्त यक्षिणियो की भी कई मूर्तियो प्रदशित हैं। मी है । जैन मंदिर समा के पीछे शिव, सूर्य, लक्ष्मी, मध्यभारत के पूर्वोक्त स्थानों से मिली हुई बहुत सी भरव, नवग्रह श्रादि का अनेक मूर्तियां लगी है। विदिशा प्रतिमाएं ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में सुरक्षित है। जिले का दूसरा महत्वपूर्ण म्धान ग्यारसपुर है। यहां पहारी इनमें तीथंकरों की प्रतिमानों के अतिरिक्त प्रम्य जैन क ऊर अनेक हिन्दू मंदिर बने हैं। मलादेवी मंदिर देवी-देवतानों की भी मृतियां हैं। पांचवी शती की जन । मे या क्षणी अम्बिका तथा तीर्थकरो की कई प्रभावोत्पादक तीर्थकर की एक प्रतिमा के सिर के पीछे अलंकृत प्रभा प्रतिमा है। मंडल है। इस प्रतिमा की ऊंचाई मादे वह फुट और यह महाकौशल नन में अनेक जैन मंदिरों का निर्माया कायोत्पर्ग-मुद्रा में है। यह मूर्ति विदिशा से प्राप्त हुई है। प्रा। रामपुर जिला में सिरपुर नाम स्थान से पार्श्वनाथ भगवान ऋषभनाथ की उत्तरगत कालीन एक अत्यंत तथा पन्ध तीर्थकरों की प्रतिमाएं मिली है। जबलपुर भावपूर्ण प्रतिमा इम मंग्रहालय में हैं। वे ध्यानमुद्रा में निना में कारीतलाई म्यान से दसवी-ग्यारहवीं शती में स्थिर चित्त मामान हैं। चौकी पर विकसित अर्ध कमल निर्मिन नाथंकर प्रतिमाएं बड़ी संख्या में उपलब्ध हां है। और सिंहासन के दोनों सिंह उत्कीर्ण हैं । मागों तथा यन. यहा महम्न कूट जिन-चैत्यालय भी प्राप्त हुभा है। यक्षियों की गुप्त एवं प्राग गुप्त कालीन अनेक प्रतिमाण प्राकर्षक भाव में बहाई अम्बिका दवा की कई मूर्तियां विदिशा, पवाया (प्राचीन पद्मावती) मंदसौर, तुमन भादि। भी यहा मिली है। सनपुर (जिला बिलासपुर) सं म्थानों से प्राप्त हुई हैं । मध्य भारत से प्राप्त मध्यकालीन बारहवी शती का तीर्थकर मूर्तियां प्राय: पान मुद्रा में जन कलावशेषों की संख्या बहुत अधिक है। ग्याजियर बटा दुई उपलब्ध हुई है। इनमें से चन्द्रगुप्त तथा प्राचीन दुर्ग में जैन तीर्थकरी की विशालकाय प्रतिमाओं ऋषभनाथ प्राति की मृतियां रायपुर के संग्रहालय में का निर्माण इस काल में हुअा। इनमें से कुछ कायोरमग मुनिन है । सागर जिला की रहनी नहमाल में बाना, मुद्रा में हैं तथा अन्य पनामन पर ध्याय मुद्र में। यहां देवग प्रादि स्थानों से कई मन्दर जन कलावशेष मिले अनेक सर्वतोभद्र प्रतिमाएं भी मिली है । पधावली, हैं। यार मध्यकाल में महाकोशल प्रदेश के राजवंशों में नरवर, चंदरी, उज्जैन प्रादि से भी मक्काबीन जैन संकाई जैन धर्मानुयाया नहीं था, तो भी इसकाल में अवशेष बड़ी संख्या में मिले हैं। विदिशा जिले में बरो जैन माग तथा प्रतिमानों का निमांग बड़े रूप में हमा। या (बड़ नगर ) नामक स्थान पर जैन मंदिरों का एक यह न कालान जनता का धार्मिक वृत्ति का सूचक है। समूह दर्शनीय है। इस मंदिर-समूह के बाहर नेमिनाथ की अभी तक मध्य प्रदेश सभी प्राचीन स्थानों में यक्षिणी अम्बिका की एक छह फुट ऊंची मूर्ति रखी है। विकायम जैन कला का पूरा सर्वेक्षण नहीं किया जा सका। मंदिर शिम्बर रानी के हैं और इनका निर्माण परमारों के र्याद पूरे प्रदेश में बिम्वरी हुई कला-नाशिका अनुपधान शासन काल में हुअा। तीर्थकरों की अनेक प्रतिमाएं यहां किया जाय तो बदुत मा नवीन कलाकृतियों की जानकारी बाद में रखी गई। कुछ मन्दिरों के प्रवेश द्वार प्रत्यंत हो सकी । पादमी से पाप कराने वाली दोही चीजें हैं और वहीमार में जीव की दुश्मन है। वे : हैं काम और क्रोध, जिस तरह धुमां भाग को हक दना है और गर्द शाम को अन्धा कर देता है उसी तरह दोनों मानव की बुद्धि पर पर्दा डाल देती है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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