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________________ मध्य प्रदेश की प्राचीन जैन-कला (प्रो० कृष्णात वाजपेयो, अध्यक्ष, पुरातत्त्व विभाग, सागर विश्वविद्यालय ) पद्यपि वर्तमान मध्यप्रदेश के क्षेत्र में जैन-ना का खजुराहो के प्राव्यात जन-मन्दिरी का निर्माण ई. उतना प्राचीन रूप नहीं मिलता, जितमा कि उड़ीसा तथा १० वीं शती में हुआ। खजुराहो की विशिष्ट स्थापन्य उत्तर प्रदेश में, तो भी मध्यप्रदेश के विभिन्न स्थानों में शैली के ये मन्दिर उत्कृष्ट उदाहरण हैं। भगवान प्रादिनाथ, उपलब्ध जैन-कलाकृतियों की संख्या को देखते हुये यह पार्श्वनाथ तथा तिनाथ मन्दिर मुग्थ्य है। शा तनाय कहा जा सकता है कि पूर्वमध्यकाल में यह भूभाग जैन के देवालय में कायमग मुद्रा में भगवान का भव्य मून धर्म के विकास का एक प्रमुख क्षेत्र बन गया था। मध्य प्रष्टम्य है । मुम्ब पर अमित तज और शानि विराजमान है। प्रदेश का ऐतिहासिक मर्वेक्षण करने से पता चला है कि जन नीकर प्रतिमा के प्रातरिक्त इन द ल यो मे यहाँ बौद्ध, भागवत तथा शैवधर्मो का प्रादुर्भाव एवं अलंकरण के रूप में प्रयुक्त विविध मनिया तथा भाभदायों विकास बहुत प्राचीन काल में दुभा। साँची और भरहुत का माले बम प्रायन मजाय हुअा है . नारी के रूप में इस प्रदेश के दो मुख्य प्राचीन बीन्द्ध-केन्द्र है। जहां पर मोदय का अभिव्यक्ति यहां के कलाकारों को पि प्रिय हमें बौधर्म के लौकिक पक्ष की परिचायक विशाल था। हम अनिद्य पद की विविध पाकक रूपों में कलाराशि उपलब्ध है। प्राचीन भागवत धर्म का विकास मूत-रूप प्रदान करके उस शाश्वत बना दिया गया है। विदिशा, एरण, पवाया प्रादि अनेक स्थानों में हमा। इन मूर्तियों में अश्लीलता नहीं है । वर्तमान बनाएर इसी प्रकार शवधर्म के केन्द्र नचना, कुटार, भूमग तथा जि में बहार नामक स्थान प्रायः है। कहा पर विशाल मध्यकाल में खजुराहो, मिरपुर, गुग्गी श्रादि मिलते हैं। जैन मूर्तियां देखने को मिलती है । यह स्थान नधर्म का मध्य प्रदेश में गुप्त काल तक जैन मूर्तियों का निर्माण एक तार्थ है । दूगरा एमा ही तीर्थ द्रोणगिरि पर्वत पर नहीं हुया, ऐसी बात नहीं की जा सकती। ग्वालियर तथा तीसरा दतिया के पास मोनागिरि नामक स्थान है। के पुरातत्व संग्रहालय में गुप्त कालीन कई जन कलावशेष इन स्थानों में मध्यकाल में नया उमा पश्चात अनेक सुरक्षित हैं । इनकी निर्माण शैली मथुरा, कौशांबी आदि जैन मन्दिरों का निर्माण हया। टीकमगद के समीप स्थानों में उपलब्ध प्रतिमानों से बहुत मिलती जुलती है। पपौरा नामक स्थान में लगभग दोसी जैन मन्दिरों के भग्नावशेष प्राप्त है। वर्तमान पमा जिले में भी जनधर्म ___ गुप्त काल के बाद पूर्वमध्य काल में वर्तमान मध्यप्रदेश का अरछा प्रमार था। वहां के धर्म पागर नामक तलाच के कई प्राचीन नगर कलाके केन्द्र बने। उनमें अन्य के पास अनेक कलापूर्ण जन प्रतिमाएं रखी हैं । विंध्य प्रदेश कृतियों के साथ जन-मूर्तियों तथा मदिरों का निर्माण बड़ी बड़ा में विभिन्न स्थानों से जन प्रतिमानों को धुला के संग्रहालय संख्या में मिलता है। विध्य प्रदेश के भाग में सराहो, मजुराहा, में सुरक्षित किया गया है। इस संग्रहालय में जैन तीर्थकगे पहार, पपौस द्रोणागिरि, पक्षा, मऊ तथा सानागिरि क की अनेक अभिलिखित कलापूर्ण मूर्तियां है । मुभि सुव्रत माम विशेष रूप में उल्लेखनीय है । मध्यभारत के भूरवंड शत प्रतिमा iTimi भविदिशा, उज्जैन, ग्वालियर, पधावली, नरवर, सुरवाया, एक लेख उस्कार्ण है। लेख पद्य में है उपक अनुमार देश तथा ग्यारसपुर में जैन स्थापत्य और मूर्तिकला सम्हण मामके व्यक्ति द्वारा इस मूर्ति की प्रतिष्ठापना की सम्बधी सामग्री बो परिमाण में उपलब्ध है। महाकोशल गई। संग्रहालय में माम्बका के साथ मोमय, पक्ष की अनेक प्रदेश के प्रायः प्रत्येक जिले में जैन मन्दिरों के भग्नावशेष दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। जो री से प्राप्त हुई है। रीवां मिलते हैं। देवरी, बीना, सिरपुर, कारीतलाई, जांजगीर. तथा मऊ से चक्रेश्वरी की भी कई प्रतिमाएं उपलब्ध हुई रतनपुर प्रादि स्थान विशेष उल्लेखनीय है। हैं। इस संग्रहालय में जैन मन्दिर के दो अत्यन्त कलापूर्ण
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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