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________________ कलकना में महावीर जयन्ती अशोकन ने महावीर जयन्ती के अवसर पर जैन-फला प्रदर्शनी के आयोजन के लिए भारत जैन महामडल कार्य तयों को बधाई देते हुए अपने भाषण में भगवान महावीर की जैनधर्म का ही नहीं, अपितु समम्न मानपा और अखिल विश्व का महान नेता बताया । माननीय श्रीमन ने अपने मर्मस्पर्शी भाषण के धन्न गंत कहा जैनधर्म के आदर्श मारे देश में पनवे के लिए ही नहीं किन्तु मारे जगत के कला, सभ्यता और संस्कृति की बहु गये । लिए धर्म, दर्शन. मूल्य विरासत उन्होंने कहा भारत का कोई भाग जैनधर्म की विगमन मे अकृता नहीं है। जहां भी हम जाते हैं, हमें सुन्दर जैन मन्दिरों, गुफाओं और कलाकृतियों के दर्शन होते है । पारा मन्दिर और एलोरा की गुफाएं आदि ऐसे अवरोप हैं, जो सदैव अमर है । इस सजीव समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे माननीय श्री के बनु नगरप विधान सभा के वर्तमान अध्यक्ष । श्री चम् महोदय ने कहा, युगों से धर्म के इर्द-गिर्द जिस कला का विकास हुआ है, उसमें हमें विभिन्न कालों क समाज का प्रतिबिंब मिलता है I बारे में अपने हृदय भव्य उदगार व्वत्र करते हुए उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति और fernet के निर्माण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। भारत जन मण्डल की ओर से पू शाखा के अध्यक्ष रचितसेही श्री रतन नाल रा. रिया ने नागत भाषण में महावार जयन्ती सप्ताह कम पर प्रकाश डालते हुए कहा. महावीर का हिया और अपरिग्रह का महत्व प्रात के अणु-परमाणु युग में अत्यधिक बढ गया है." श्री रामपुरिया ने कहा, अणु परमाणु अस्त्र-शस्त्रों ने मानव जाति के भविष्य को भयातुर बना दिया है और इस संदर्भ में हम स्वर्गीय राष्ट्रपति कैनेडी का इस चेतावनी को भुला नहीं सकते कि हमारी मंनाने केवल गणित के प्रश्न नहीं है, जिनके भविष्य के प्रति उदासीन रहे । कला के बारे में उन्होंने कहा कि कभी कभी यह कहा जाता है कि आत्म-शुद्धि एवं सामारिक वस्तुओं के त्याग को महत्व देने के कारण जैनधर्म कला को माहित नहीं करत| | लेकिन यह बात सच नहीं है । भारत जैन महामण्डल को पूर्वाचल शाम के मं मंत्री कुमार चन्द्र धोरिया ने अपने भाषण कहा कि हम महावीर भस्मरण, उनकी पूजा आराधना इसलिए करते है कि उन्होंन श्राचरण द्वारा हमें आत्म का मार्ग बतलाया है। उन्हें जिन तथा श्रामा का विजेता कहा गया है, उन्हें अरिहन्त कहा गया है और महावीर के नाम से भी पुकारा गया है। महावीर से दूसरी चीज जो हम ग्रहण करने हैं यह है समभाव अर्थात दमक प्रति रागद्वेप रहिन व्यवहार । कुमार दुधोरिया ने कहा महावीर के समकालीन युग का प्रत्ययन करने पर यह बात सामने आती है कि उस समय समाज में भारी विक्षोभ व्याप्त था। महावीर स्वामी ने अपनी साधना, तपस्या और ग्राचररण द्वारा हिसक कान्ति की मनावनाओं से परिजन को दिया और अपरिग्रह की युग प्रवर्तक क्रान्ति में बदल गया ।" मारिया ने कहा, विश्व पुनः कब है। धन सम्पत्ति और सत्ता की चाह भयानक रूप बट गया है। हम यह विश्वास करने लगे है कि आर्थिक कल्याण जी जीवन का परम लक्ष्य है। भौतिक सुखसमृद्धि पाये हम इतने जिग्न हो गये है कि जीवन के यस प्रश्न गोण हो गये है नैतिक जीवन का जड़े ही हिट हैप्राधुनिक भौतिक सम्पदा में मानवीय मूल्यों का महत्व बस हो गया है। परमाणु परीक्षण संधियों के कारी अस्त्र-शस्त्रों के साथ परमाणु मोकामा जति लिए मार्ग सकट का कारणा गया है। आज संसार से समत प्रश्न यह है कि क्या को करें अथवा अपना ही विनाश हम करे । ६३ T जी को अस्त्र-शस्त्रों की लेकिन याने नष्ट करना ही नहीं है। हमें जरूरत को ही समाप्त कर देना चाहिए। जाति को एक नया वातावरण तैयार करना होगा और इसके लिए मानव
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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