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________________ अहिंसा के पुजारी एल्बर्ट स्वाइटज़र लेखक-६० बनारसीदास चतुर्वेदी एम. पी. "सुबह हम दोनों स्टेशन की ओर रवाना हुए। रास्ते में १८९६ में दर्सनशास्त्र की डिग्री ली। इस प्रकार धर्ममैंने उनकी अहिंसा का प्रत्यक्ष उदाहरण देखा। हम दोनों विज्ञान और दर्शन-शास्त्र में उन्होंने ऊंची-से-ऊंची परीक्षाएं मिलकर उनका एक भारी बंडल और एक छड़ी लिये हुए पास कर लीं। थे बंडल का एक-एक सिरा दोनों जने पकड़े थे। बर्फ की उनकी बाल्यावस्था की कई मधर घटना प्रसिद्ध है। वजह से सड़क बहुत .फिसलनी हो रही थी। हम दोनों एक बार उनकी माताजी ने उनके लिए प्रोवरकोट सिलवा झपटते हुए चले जा रहे थे। एकाएक वह रुक गये। झटके की वजह से मैं प्रायः गिर-सा पड़ा। उन्होंने इसके । गया था और उनसे कहा, "देखो एल्बर्ट, मैंने तुम्हारे लिए लिए मुझसे माफ़ी मांगी और सड़क से एक कीड़े को एक प्रोवरकोट बनाया है और वह बिल्कुल नया मालूम उठाया। कीड़ा सर्दी और बर्फ से अधमरा हो रहा था। सोता " के गाल लाल हो गये और उन्होंने कहा उन्होंने उसे उठाकर सड़क के किनारे, एक झाड़ी के नीचे "माताजी, अाज तो ज्यादा सदी नहीं है, मुझे प्रोवरकोट सूखी भूमि में रख दिया और बोले, " यहां यह हिफाजत की जरूरत नहीं।" माताजी ने कहा, "देखो, काफी कोहस से रहेगा। सड़क पर पड़ा रहेगा तो मर जायगा।" ।। पड़ा हुआ है, तुम इसे पहन लो।" एल्बर्ट ने कहा, "माता उपर्युक्त घटना सन् १६२३ में घटी थी और यह दीन- जी, और किसी बच्चे के पास तो प्रोवरकोट है ही नहीं, बन्धु सी. एफ. ऐण्डू ज द्वारा अहिंसा के पुजारी एल्बर्ट फिर भला अकेला मैं उसे क्यों पहनू ?" माताजी ने कहा, स्वाइटज़र के विषय में लिखी गई है। स्वाइटज़र का जन्म "अच्छा, इसकी चर्चा कल हम फिर करेंगे।' दूसरे दिन १४ जनवरी सन् १८७५ को हुआ था और इस समय वह इसी सवाल पर अपने पादरी पिता जी से उनका झगड़ा ८७ वर्ष के युवक हैं । भिन्न-भिन्न विषयों के ज्ञाता होने हो गया ! पिताजी ने उन्हें काफी डाट बताई और कहा के कारण उनकी गणना संसार के अद्भुत महापुरुषों में की "तुम जिद क्यों करते हो? देखो, तुम्हारी माताजी कितना जाती है। जिस प्रकार दक्षिण अफ्रीका के जनरल स्मट्स परिश्रम करके तुम्हारे लिए कपड़े तैयार कराती है। बड़े भारी सेनाध्यक्ष और फौजी विज्ञान के प्राचार्य थे, तुम्हारा फर्ज है कि उन्हें खुश करने के लिए कम-से-कम और साथ-ही-साथ बड़े राजनीतिज्ञ और दार्शनिक भी, पहन तो लो !" पर एल्बर्ट इस बात से राजी नहीं हुए, और जिस तरह पायरलैण्ड के जार्ज रसल (ए. ई.) क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि ऐसी कोई चीज पहनें, जो उत्कृष्ट कवि होने के साथ-साथ बड़े अच्छे चित्रकार और दूसरे विद्यार्थियों को मुअस्सर नही। दूसरे दिन उनके समाज-सेवक भी थे, उसी प्रकार एल्बर्ट स्वाइटजर भी पिताजी ने उन्हें धक्का देकर घर से निकाल दिया और पियानो बजाने में दुनियां के सर्वक्षेष्ठ कलाकार होने के कहा, "जाग्रो, बाहर जाओ और जबतक तुम अपनी यह साथ-ही-साथ अति उच्चकोटि के समाजसेवक और धर्म- जिद नहीं छोड़ते, बाहर रहो । एल्बर्ट घर के बाहर बैठे शास्त्र तथा दर्शनशास्त्र के विश्वविख्यात प्राचार्य भी हैं। हुए अपने घुटनों पर हाथ रख कर रोते रहे ! यह घटना जब एल्बर्ट स्वाइटजर पांच बरस के थे तभी से उनके उनके समस्त जीवन पर प्रकाश डालती है। पिताजी ने उनको गान-विद्या की शिक्षा देनी शुरू कर दी एल्बर्ट स्वाइटज़र अहिंसा के समर्थक के नाम से मशथी। आठ बरस की उम्र में वह पियानो बजाने लगे थे। हूर है। सत्याग्रह- सिद्धान्त की खूबी उन्हें कैसे ज्ञात हुई, १८६३ में उन्होंने स्कूल लीविंग परीक्षा पास करली। वह भी सुन लीजिये । एक दिन उन्होंने देखा कि सड़क पर १८१८ में उन्होंने धर्म-विज्ञान की परीक्षा पास की और एक अपमानित यहूदी जा रहा था। गांव के लड़के उसके
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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