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________________ महिंसा के पुजारी एल्वर्ट स्वाइटवर ४५ पीछे पीछे उसपर आवाजे कसते हुए उसे और तंग करते मना किया और जब वह मेडिकल कालेज में दाखिल होने हुए पा रहे थे, मगर वह उनके तानों के उत्तर में मन्द-मन्द के लिए गए तो वहां के आचार्य ने उनकी इस बात पर मुस्करा रहा था। उसके चेहरे पर एक विचित्र प्रकार की यकीन ही नहीं किया कि उनके विश्वविद्यालय का एक उदारता और शराफत के भाव थे। महान शिक्षक मामूली विद्यार्थियों के साथ डाक्टरी के प्रथम स्वाइटजर ने अपने संस्मरणों में लिखा है-"उसकी वर्ष में दाखिल होने पा रहा है ! उन्होने समझा कि स्वाइस मुस्कराहट ने मुझे वश में कर लिया। मैंने उसी यहूदी इटजर विक्षिप्त हो गए हैं और उन्होंने स्वाइटजरसाहब से से पहले-पहल यह बात सीखी कि दूसरों के उत्पीड़न को कहा, "मालूम होता है कि आप बहुत परिश्रम करते रहे हैं, किस तरह शांतिपूर्वक बर्दाश्त किया जाता है। वह यहूदी आप छुट्टी क्यों नहीं ले लेते ? अगर आप चाहें तो इस बारे ही मेरा सबसे बड़ा गुरु है। में मनोवैज्ञानिक डाक्टर से कुछ बातचीत कर लें।" यह उनकी अहिंसा का एक उदाहरण और भी सुन लीजिये सुनकर स्वाइटजर साहब बड़े जोर के साथ हंसे और बोले एक बार वसंत ऋतु में वह अपने एक साथी विद्यार्थी हेनरी "नहीं-नहीं में कोई पागल थोड़ा ही हो गया हूँ। मैं सचके साथ वन-यात्रा के लिए गए हुए थे। वहां एक पेड़ पर मुच डाक्टरी पढ़ना चाहता हूँ।" और तीस बरस की उम्र बहुत सी चिड़ियां उन्होंने देखीं । हेनरी ने कहा, देखो कैसी में वह डाक्टरी के प्रथम वर्ष में दाखिल हो गए। छः बरस सुन्दर चिड़ियां इस वृक्ष पर हैं, जिनकी चोटी लाल है, पर तक वह घोर परिश्रम करते रहे और इस प्रकार उन्होंने पीले । और एक चिड़िया को तो मै अभी-अभी गिरा डाक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उसके बाद वह साल सकता हूँ।" भर तक अस्पतालों में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते रहे। ज्योंही हेनरी ने अपनी गुलेल के लिए एक पत्थर उठाया सन १९१३ में वह अफीका के लिए रवाना हो गये और और एल्बर्ट से कहा कि तुम भी एक पत्थर उठायो, उसी तबसे लेकर अब तक उनन्चास वर्ष तक वहीं निरन्तर समय गिरिजाघर के घन्टे बजने लगे। एल्बर्ट के दिमाग में काम करते रहे है। दीनबन्धु ऐण्ड्रज ने उनके बारे में बिजली की तरह एक विचार कौंध गया। बाइबिल में लिखा लिखा है। है--"तुम किसी की हत्या मत करो।" बस तुरन्त ही वह बड़े "इस प्रकार तीस वर्ष की अवस्था में इस व्यक्ति के जोर से चिल्लाये और हाथ से तालियां भी बजाई ? इस परों पर सारा संसार दिखाई देता था, परन्तु शोर-गुल को सुनते ही तमाम चिड़ियां पेड़ पर से उड़ गई उसी समय स्वाइटजर ने एकाएक यह निर्णय किया कि वह और उनका साथी हेनरी भौंचक्का-सा रह गया । हेनरी ने समस्त ख्याति और ऐश्वर्य को त्याग कर, अफ्रीका की उन्हें बहुत फटकारा, पर एल्बर्ट ने उसका कोई भी जवाब जगली जातियों में रहकर, उनका इलाज करके उनकी नहीं दिया। उस दिन से एल्बर्ट ने यह सबक सीख लिया सेवा करेगे और अपना सारा जीवन उनकी सहायता करने कि चाहे कोई कुछ भी कहता रहे, मैं उसकी परवा न करके और उन्हे भाराम पहुंचाने में लगायेंगे। गत सत्ताईस अपनी बात पर दृढ़ रहूंगा। उस दिन के बाद वह किसी वर्षों से वह अकथनीय कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मछली पकड़ने या शिकार करने की पार्टी में शामिल कांगों नदी के तट पर रहते है और जंगली जातियों की नहीं हुए और न किसी ऐसे खेल में, जिसमें किसी जीव की सेवा में निरत हैं। उनकी वीर और विदुपी पत्नी उनके हिसा हो। इस कार्य में उनकी सहायता करती है । उन्होंने सब प्रकार धर्म-विज्ञान और दर्शनशास्त्र में ऊंची से-उची डिग्री की विपत्तियां झेली हैं और अनेक बार उनका स्वास्थ्य पाने पर भी उन्होंने यह निश्चय किया कि मै डाक्टर बन- भंग हुअा है । उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का भी कुछ कम कर अफ्रीका के नीग्रो लोगों के बीच में काम करूंगा, और सामना नही करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने यह ठान रक्खा उन्होंने एक मेडिकल कालेज में शिक्षा प्राप्त करने का है कि सरकार या किसी सोसाइटी से पैसा नहीं लेंगे, बल्कि निश्चय कर लिया। उनके संगी-साथियों ने उन्हें बहुत-कुछ स्वयं अपने परिश्रम पर निर्भर रहेंगे। उन्होंने अफ्रीका की
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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