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________________ भगवान महावीर का जीवन-चरित महत्वपूर्ण पत्र [हिन्दी के सुविख्यात लेखक तथा प्रोजस्वी पत्रकार श्रद्धेय बनारसीदास चतुर्वेदी उन व्यक्तियों में से है, जो लोकोपयोगी विचारों के बीज बराबर भूमि में डालते रहे हैं उनके बहुत-से बीज अंकुरित ही नहीं, पल्लवित भी हुए हैं । जैन समाज तो उनका विशेषरूप से ऋरणी है। बड़े आकार में साढ़े आठ सौ पृष्ठों के प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ की कल्पना उन्होंने ही दी थी, उसकी तैयारी में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा; वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ के बुन्देलखण्ड विभाग का उन्होंने स्वयं सम्पादन किया; जनसमाज के महान कवि स्व० बनारसीदास के श्रात्मचरित 'अर्द्ध कथानक' तथा कविवर छत्रपति रचित 'श्री ब्रह्मगुलाल-चरित' की सारगर्भित भूमिकाएँ लिखीं; अतिशय तीर्थ प्रहार और पपौरा पर पुस्तिकाएं तैयार कराई है; श्रहार की ऐतिहासिक मूर्तियों के संरक्षरण के लिए वहाँ एक विशाल संग्रहालय के निर्मारण में सहायता दी और 'महावीर-डायरी' का प्रकाशन कराया और भी बहुत से काम उनकी प्रेरणा से हुए हैं और श्राज भी हो रहे हैं, यह सारा कार्य उन्होंने निस्वार्थ सेवा भावना से किया है। चतुर्वेदी जी की बड़ी इच्छा है कि भगवान महावीर का एक ऐसा विस्तृत जीवन-चरित लिखा जाय, जो सरल-सुबोध होने के साथ-साथ सबके लिए सुपाठ्य और उपादेय हो, इस कार्य को उन्होंने स्वयं प्रारम्भ कर दिया था, लेकिन वह पूरा नहीं हो सका। नीचे हम उनका एक पत्र दे रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपनी उसी भावना को व्यक्त किया है। हम आशा करते हैं कि चतुर्वेदी जी के विचारों पर पाठक मनन करेंगे और ऐसे साधक सामने श्रावेंगे, जो उनकी इच्छा की पूर्ति कर सकें। ६ नार्थ एवेन्यू, नई दिल्ली । - यशपाल जैन ] नहीं हो सका और अब ऐसे श्रमसाध्य कार्य को हाथ में लेने की सम्भावना ही नही रही। फिर भी उस पुण्य कार्य के बारे में अपने विचार में ग्रापको लिख देना चाहता हूँ । ३-४-३२ प्रिय यशपालजी, आप जानते ही हैं कि मैं भी कभी हिन्दी में भगवान महावीर का जीवनचरित लिखना चाहता था और उसके लिए साहू शान्तिप्रसादजी ने ६०) मासिक पर एक सहायक - साहित्याचार्य श्री राजकुमारजी का प्रबन्ध भी कर दिया था । पर वह क्रम छः-सात महीने से अधिक न चला और यद्यपि उस बीच में कुछ कार्य तो हुआ ही । श्री राजकुमारजी ने 'महावीर डायरी' तैयार की, पपोरा क्षेत्र पर पुस्तिका लिखी गई और उस क्षेत्र के परीक्षार्थी विद्यार्थियों की शिक्षा भी चलती रही । तथापि मुख्य कार्य में अधिक प्रगति नहीं हुई। उसमें मैं मुख्यतया अपना ही दोष मानता हूँ । अव्यवस्था, असंयम और प्रमाद - ये तीनों मेरे पुराने मित्र है और इन्हीं के कारण वह यज्ञ पूर्ण मैं जानता हूँ कि भगवान के अनेक जीवनचरित मौजूद है और वे अपनी-अपनी योग्यता तथा श्रद्धा के द्वारा लिखे गए हैं। पर महापुरुषों तथा जगत् की विभूतियों में अनन्त गुण होते हैं और उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने का अधिकार भी सभी को है। रिसर्च या अन्वेषण करने की कोई योग्यता मुझ में नहीं और मेरे द्वारा किसी महत्वपूर्ण ग्रंथ के लिखे जाने की सम्भावना भी नही थी। हां मेरी कार्यपद्धति में शायद कोई विशेषता हो सकती है । मेरा यह विश्वास है कि जो भी व्यक्ति भगवान महावीर का जीवनचरित लिखना चाहे, उसे कम-से-कम उतने • वर्षों या महीनों तक, जब तक कि वह इस यज्ञ में भाग ले संयमपूर्वक रहना ही चाहिए। भगवान के पवित्र
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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