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________________ २६ के हिंसा का परिहार कैसे हो सकता है ? अर्थात् दीपक दोनों ही के अलग भी बताया है। जला लेने पर भी रात्रिभोजी के सूक्ष्म जीवों की हिंसा का मेरा पाठकों से निवेदन है कि वे मुख्तार सा० के निराकरण नहीं बन सकता। ट्रेक्ट के एतद् विषयक प्रकरण को माद्योपान्त पढ़ें उन्हें शायद 'महाहिंसा का त्याग महाव्रत में और अल्पहिंसा मालूम हो जायगा कि-उक्त समीक्षा कितनी उपयोगी का त्याग अणुव्रत में होता,-समझकर अहिंसाणुव्रत में आवश्यक और समुचित है। इसी सरह की गलतियां इस रात्रिभोजन का त्याग असंभव बताया जाता हो तो यह विषय में अनेक विद्वानों ने की है और करते जाते हैं उनके भी ठीक नहीं है । महाव्रत में तो लघु से लघु हिंसा का प्रतीकार के लिए ही मैंने प्राशाधर के इस रहस्योद्घाटन त्याग होता है और अणुव्रत में महाहिंसा का त्याग अहिंसा- को प्रकट किया है किसी की व्यक्तिगत पालोचना या मानणुव्रत में समाविष्ट हो जाता है अहिंसाणुव्रत में उसका प्रतिष्ठा को गिराने की दृष्टि से नहीं। समावेश किसी तरह अंसंभव नहीं है। मुख्तार सा. मेरे प्रादरणीय हैं। मैं यह मानता हूँ ___ इस तरह यह संक्षिप्त समीक्षा है । इस लेख का सार कि उन जैसे युक्ति-युक्त और प्रामणिक लि वने वाले जैन यह है कि रात्रिभोजन त्याग के विकासाशनवर्जन, समाज में बहुत कम हैं उन्होंने बहुत-सा साहित्य प्रणयन अनस्तमित, दिवाभोजन, छट्ठा अणुव्रत, आलोकित पान- कर हमारे युगों के अज्ञानांधकार और अन्धश्रद्धा को मेटा भोजन आदि अनेक नामान्तर हैं वैदिकों में जो सूर्य दर्शन है उन जैसे साहित्य तपस्वी पर समाज को गर्व है किन्तु करके भोजन करने का व्रत है वह भी इसी का एक प्रकार को न विमुह्यति शास्त्र समुद्र" अर्थात् शास्त्र समुद्र है। यह रात्रि भोजनत्याग : छठा अणुव्रत मुनि और श्रावक अथाह है उसमें कौन नहीं चूकता। दोनों के होता है इसे "अणुव्रत सिर्फ रात्रि में ही भोजन अन्त में मैं एक बात और कहना चाहता हूँ किके त्याग की अपेक्षा से अर्थात् कालकृत लघुता की दृष्टि" । वीर सेवा मन्दिर से "जैनल मणावली" के प्रकाशन का से कहा है। इसका अन्तर्भाव अहिंसाणुव्रत - पालोकित प्रयत्न हो रहा है उसमें-अणुव्रत या पष्ठ अणुव्रत शब्द पानभोजन भावना में हो जाता है । यह मुनि और श्रावक के लक्षण में आशाधर के इस रहस्योद्घाटन का अवश्य २. आदि पुराण पर्व २० श्लोक १६० संग्रह किया जाय। . 'अनेकान्त' के स्वामित्व तथा अन्य ब्योरे के विषय मेंप्रकाशन का स्थान वीर सेवा मन्दिर भवन, २१ दरियागंज दिल्ली प्रकाशन की अवधि द्विमासिक मुद्रक का नाम प्रेमचन्द राष्ट्रीयता भारतीय पता २१ दरियागंज, दिल्ली प्रकाशक का नाम प्रेमचन्द मंत्री वीर सेवा मन्दिर राष्ट्रीयता भारतीय पता २१ दरियागंज दिल्ली सम्पादक का नाम प्रा० ने० उपाध्ये M. A. D. Litt. कोल्हापुर रतनलाल कटारिया, केकड़ी (अजमेर) राष्ट्रीयता भारतीय पता c/o वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज दिल्ली स्वामिनी संस्था वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज दिल्ली मैं, प्रेमचन्द घोषित करता हूँ कि उपरोक्त विवरण मेरी पूरी जानकारी और विश्वास के अनुसार सही है । १७-४-६२ ह०प्रेमचन्द प्रकाशक
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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