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________________ मराठी में जैन साहित्य म० विद्याधर जोहरापुरकर, गवर्नमेंट डिग्री कालेज, जावरा १. प्रास्ताविक ३. गुरण कीर्ति जैन साहित्य कई भाषाओं में है। इनमें से प्राकृत, प्राचीनतम मराठी जैन लेखकों में एक गुणकीति हैं। संस्कृत, तमिल, कन्नड, हिन्दी तथा गुजराती भाषामों के ये मूलसंघ-बलात्कारगण के भट्टारक सकलकीति के शिष्य जैन साहित्य का काफ़ी विवरण प्रकाशित हुआ है। किन्तु भट्टारक भुवनकीति के शिष्य थे। इससे पन्द्रहवीं सदी का आधुनिक भारतीय भाषाओं में एक प्रमुख भाषा मराठी उत्तरार्ध उनका समय निश्चित होता है। इनका उल्लेखमें जो जैन साहित्य है उसका भी इधर पांच-छ: वर्षों में नीय ग्रन्थ धर्मामृत है। यह गद्य में है तथा इसमें गृहस्थों काफी अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के परिणाम के प्राचारधर्म का वर्णन है। इसके विभिन्न सामाजिक, अब तक मराठी पत्रिकाओं में ही प्रसिद्ध हुए हैं । मराठी से साम्प्रदायिक, साहित्यिक, तथा पौराणिक उल्लेख बड़े ही अनभिज्ञ जैन विद्वानों को भी इसका कुछ परिचय हो इस महत्व पूर्ण हैं तथा महाराष्ट्र के जैन जन जीवन की अच्छी उद्देश्य से यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं। झांकी इसमें मिलती है। पद्मपुराण' यह गुणकीति का २. प्रारम्भ विस्तृत ग्रन्थ रामकथा का वर्णन करता है। इसे वे पूर्ण __ महाराष्ट्र में जैन समाज का इतिहास काफी प्राचीन नहीं कर पाये । इसका द्वादशानुप्रेक्षा यह प्रकरण स्वतन्त्र है। स्वामी समन्तभद्र ने जिस बाद में विजय पाया था। रूप से भी प्रसिद्ध है । नेमिनाथ के जीवनकथा पर गुणवह करहाटक नगर (वर्तमान कराड, जिला सतारा), कीर्ति ने तीन गीत लिखे हैं तथा रुकमणि स्वयंबर नामक महबलि प्राचार्य ने यहां साधु संघ का सम्मेलन बुलाया एक अन्य गीत भी लिखा है। था वह महिमा नगर' (वर्तमान महिमान गढ़, जिला ४. गुरगदास सतारा), काष्ठा संघ की जहाँ शुरुवात हुई वह नन्दीतट नगर (वर्तमान नान्देड), तथा अपभ्रंश धर्म परीक्षा का भट्टारक सकलकीति तथा भुवनकीति के शिष्य ब्रह्म जिनदास ये गुणदास के गुरु थे । अतः ये भी पन्द्रहवीं सदी रचना स्थान प्रचलपुर ये सब महाराष्ट्र में ही हैं। महा के उत्तरार्ध में हुए थे । इनका श्रेणिक चरित्र' काव्य की राष्ट्री प्राकृत तथा महाराष्ट्री अपभ्रंश में पर्याप्त जैन साहित्य है । तथापि मराठी भाषा में साहित्य रचना शुरू दृष्टि से बड़ा रोचक तथा रस पूर्ण है । श्रेणिक तथा उनके होने से पहली तीन सदियों तक मराठी में किसी जैन पुत्र अभयकुमार की चातुर्य कथायें इसमें बड़े सुन्दर रीति ग्रन्थ का अब तक पता नहीं चला है। उपलब्ध मराठी से वर्णन की हैं। रामचन्द्र के विवाह पर एक छोटा-सा गीत तथा जिनदेव से प्रार्थना के रूप में एक अन्य गीत जैन साहित्य पन्द्रहवीं सदी से प्रारम्भ होता है तथा इसके प्रारम्भिक ग्रन्थकार गुजरात के भट्टारकपीठों से सम्बद्ध भी गुणदास ने लिखा है। ज्ञात हुए हैं। १. जीवराज जैन ग्रन्थमाला, सोलापुर द्वारा १९६० १. महिमा नगर महिमानगढ़ है। यह बात अभी में प्रकाशित । निश्चित नहीं है। धवला में उल्लिखित 'महिमाएं २. जयचन्द्र श्रावणे, वर्धा द्वारा १८०८ में प्रकाशित । मिलियाणं" का अर्थ महिमा नगर न होकर महो- ३. ये धर्मामृत के परिशिष्ट में प्रकाशित हैं। त्सव या महा पूजा में सम्मिलित हुए है, प्रतः ४. जीवराज ग्रन्थमाला में छप रहा है। उस पर से महिमा नगरी का अर्थ घोषित नहीं होता । महिमा नगरी का अन्वेषण होना चाहिये । ५. ये दोनों गीत सन्मति मासिक वर्ष १९५६ में प्रका-सम्पादक शित हुए हैं।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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