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________________ २५२ शुभचन्द:-शुभचन्द भट्टारक थे, उनका मुख्य कार्य प्रसिद्ध हुए तथा उनका साहित्य प्रत्यधिक मौलिक एवं धनी व धार्मिक व्यक्तियों द्वारा निर्मापित मूर्तियों व मंदिरों उच्चकोटि का माना जाता है। की प्रतिष्ठा करना, पूजा विधान उद्यापन कराना, तथा अन्त में अनुवादक की हैसियत ने अनुसंधित्सु पाठकों धार्मिक और सामाजिक मामलों में लोगों को निर्देश देना का ध्यान (Dr. K.L. Bruhn) जर्मनी बालों की निम्नथा। साहित्यिक भट्टारकों में शुभचन्द्र ही एक ऐसे थे पंक्तियों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ, जो उन्होंने जिन्होंने विभिन्न विषयों पर अनेक रचनाएं रचीं। वे डा. उपाध्ये द्वारा संपादित "कार्तिकेयानु प्रेक्षा" की प्रतिभाशाली लेखक एवं अध्येता थे। उनकी टीका में समीक्षा करते हुए ४ जून १९६२ के The Journal of उल्लिखित ग्रंथों से प्रतीत होता है कि उन्होंने दिगम्बर Oriental Research, Baroda के ११ वे अंक में लिखी साहित्य का अच्छा गम्भीर अध्ययन किया था। संस्कृत भाषा पर उन्हें पूर्ण अधिकार था, अन्य भट्टारकों की तरह उन्होंने केवल संस्कृत में ही नहीं अपितु अपने आस-पास की "The Jaina literature then unknown still जनभाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। मराठी, गुज outweighs the known. It is only through such राती, हिन्दी, प्राकृत प्रादि इण्डो-आर्यन भाषामों के शब्द patient work as that of Dr. Upadhey that the उनकी टीका में उपलब्ध होते हैं। शुभचन्द्र एक उच्चकोटि balance can be changed. To achieve this end, के टीकाकार ही न थे अपितु श्रेष्ठ धर्म-प्रचारक थे, वे text have not only to be analysed but must अपनी टीका को स्वामी कुमार जैसा ही विभिन्न धार्मिक be projected as suggested above on the backविषयों का एक संग्रह ग्रन्थ बनाना चाहते थे। अतः उनकी ground of contemporary and earlier literature. सारी टीका में उनकी धर्म-प्रचारकता का रूप स्पष्टतया Dr. Upadhey has treated this and other problems मिलता है। विद्वत्ता की अपेक्षा धर्म-प्रचारक की भावना with exceptional care, and we hope that simiने ही शुभचन्द्र से अनेकों पूजाग्रंथ लिखवाये । भट्टारक Iar contributions will follow soon as a result होने के कारण उन्हें जैन समाज की तत्कालीन आवश्यकता of his researches in Jaina literature." की पूर्ति करनी पड़ी। इस प्रकार भ० सकलकीर्ति की The Journal of Oriental Research भांति भ. शुभचन्द्र जैन साहित्य के इतिहास में अत्यधिक 2 June 1962 Baroda (XI) अनेकान्त की पुरानी फाइलें अनेकान्त की कुछ पुरानी फाइलें प्रवशिष्ट हैं जिनमें इतिहास पुरातत्व, दर्शन और साहित्य के सम्बन्ध में खोजपूर्ण लेख लिखे गए हैं। जो पठनीय तथा संग्रहणीय है। फाइलें अनेकान्त के लागत मूल्य पर दी जावेंगी, पोस्टेज खर्च अलग होगा। फाइलें वर्ष ४, ५, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५ की हैं अगर आपने अभी तक नहीं मंगाई हैं तो शीघ्र ही मंगवा लीजिये, क्योंकि प्रतियां थोड़ी ही अवशिष्ट हैं। मैनेजर 'अनेकान्त' बोर सेवामन्दिर, २१ दरियागंज, बिल्ली
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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