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________________ २५४ अनेकात ५. जिनवास कथा तथा शक १५३८ में अनन्त व्रत कथा' की रचना ये मूल संघ-बलात्कारगण के उज्जंतकीति भाचार्य की है। शिष्य थे। सकलकीर्ति तथा भुवनकीर्ति का इन्होंने भी ११. वीरवास गुरुरूप में उल्लेख किया है। अतः ये भी पन्द्रहवीं सदी के ये कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द्र के शिष्य ये। इनका उत्तरार्ध के हैं। इन्होंने देवगिरि (वर्तमान दौलताबाद दीक्षा के बाद का नाम पार्श्वकीर्ति था । इन्होंने शक किला, जिला औरंगाबाद) में हरिवंशपुराण की रचना १५४६ में 'सुदर्शन चरित' लिखा । नेमिनाथ विषयक एक की। यह ग्रन्थ वे पूरा नहीं कर पाये। गीत तथा अक्षर बावनी की शैली का बहुतरी यह छोटा ६. मेघराज प्रकरण' ये इनकी अन्य रचनाएं हैं। ये ब्रह्म जिनदास के शिष्य ब्रह्म शान्ति दास के शिष्य थे। अतः सोलहवीं सदी के प्रारम्भ में इनका समय ये भी कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द्र (उपर्युक्त धर्मनिश्चित है । इन्होंने जसोधर रास' नाम का सुन्दर काव्य चन्द्र के प्रशिष्य) के शिष्य थे। इन्होंने शक १६१२ में लिखा है। पार्श्वनाथ भवांतर यह इनकी अन्य छोटी पार्श्वनाथ भवान्तर यह गीत लिखा है। इनकी गुजराती रचना है। इन्होंने गुजराती में एक तीर्थ वन्दना भी रचना आदितवारखत कथा शक १६१५ की रचना है लिखी है। ७. सूरिजन १३. महीचन्द्र ये मेघराज के गुरु बन्धु थे। इन्होंने परम हंस कथा ये मूलसंघ-बलात्कारगण के भट्रारक थे। इन्होंने नामक रूपक काव्य गद्य पद्य मिश्रित चम्पू शैली में लिखा शक १६१८ में प्रादिनाथ पुराण की रचना की। नेमिनाथ है। दान शील तप भावना रास यह इनकी अन्य रचना भवांतर, आदिनाथ भारती' अष्टान्हिका व्रत कथा आदि रचना है। छोटी-छोटी कई रचनाएं भी महीचन्द्र ने लिखी हैं। ८.कामराज १४. महाकोति ये भी मेघराज के गुरु बन्धु थे। इनका 'सुदर्शन चरित' ये महीचन्द्र भट्टारक के शिष्य थे । इन्होंने ज्ञीलसुन्दर काव्य है । साथ ही उसमें गृहस्थों के प्राचार धर्म पताका नामक काव्य लिखा है। पति द्वारा उपेक्षित एक का भी अच्छा वर्णन है। तन्य फाग' यह कामराज का तरुणी अपनी चतुराई, सौन्दर्य तथा पति भक्ति द्वारा पुनः छोटा-सा गीत है। पति का स्नेह प्राप्त करती है ऐसी इसकी कथा है। ९. नागो प्राया १५. पुण्य सागर ये कारंजा के भट्टारक माणिकसेन के शिष्य थे अतः ये भट्टारक अजितकीर्ति के शिष्य थे। सत्रहवीं सदी सोलहवीं सदी के मध्य में इनका समय निश्चित है। इन्होंने के उत्तरार्ध में इनका समय निश्चित है। गुणकीर्ति का यशोधर महाराज चरित्र लिखा है। अपूर्ण ग्रन्थ पद्मपुराण तथा जिनदास का अपूर्ण ग्रन्थ हरि१०. प्रभयकोति वंश पुराण इन्होंने पूर्ण किया। प्रादित्यव्रत कथा इनकी ये मूलसंघ-बलात्कारगण के अजितकीति प्राचार्य के शिष्य थे। इन्होंने शक १५३५ में आदित्य व्रत १६. गुणनंदि १. जीवराज ग्रन्थ माला में १९५८ में प्रकाशित । ये भी सहावीं सदी के लेखक हैं। इन्होंने यशोधर२. जीवराज ग्रन्थमाला, १९६१ में प्रकाशित । चरित की रचना की है। ३. सन्मति वर्ष १८५६ में प्रकाशित । १. सन्मति १९५८ में प्रकाशित। ४. जसोधर रास के परिशिष्ट में प्रकाशित । २. ३. सन्मति वर्ष १९५६-६० में प्रकाशित।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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