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________________ एक प्राचीन पट-अभिलेख पं. गोपीलाल 'प्रमर' एम० ए० परिचय तीर्थकर की माता का स्वप्न-दर्शन, पति से उनका सागर जिले की बण्डा तहसील में एक 'पड़वार' नामक फल पूछना, सोलह स्वप्न, तीर्थकर का जन्माभिषेक, राज ग्राम है। यहाँ के एक जैन बन्धु के पास एक १७'x' दरबार, दीक्षा के लिए पालकी में वन को जाना, वन में का पट-अभिलेख प्राप्त हुआ है। अभिलेख के अक्षर दीक्षा ग्रहण करना, केवलज्ञान, समवशरण, सिद्धशिला, तो सुन्दर हैं ही, जिस कपड़े पर वह लिखा गया है वह पञ्च अनुत्तर विमान, नव अनुदिशविमान, सोलह स्वगों कपड़ा भी अच्छी किस्म का है। के पाठ पटल, चौबीस तीर्थकर और जैन मुनि द्वारा उपइस पट पर सुन्दर एवं रंगीन चित्रकारी है। चित्र- देश दान । कारी के नीचे संस्कृत भाषा में लेख है। पट की लम्बाई अभिलेख का विषय चौड़ाई से ही लेख के विस्तृत होने का अनुमान लगाया जा अभिलेख २६ पंक्तियो में हैं। प्रति पंक्ति में ४५ से सकता हैं। ४८ तक अक्षर है। अनुष्टुप, उपजाति, शार्दूलविक्रीड़ित चित्रों का विषय आदि २५ श्लोक और अठारहवें तथा चौवीसवें श्लोक के चित्र बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। उनकी संख्या लगभग बाद कुछ गद्यांश हैं। चौवीसवें श्लोक का उत्तरार्ध जीर्ण १५ है। शैली प्रौढ़ न होकर भी युगानुकल प्रतीत होती (अस्पष्ट) हो गया है। ततीय श्लोक प्रसिद्ध मङ्गलाष्टक है । सम्पूर्ण चित्रो का विषय तीर्थकर भगवान के पञ्च- से उद्धृत किया गया है। कल्याणकों से सम्बन्धित हैं। चित्रों के विषयों को हम प्रारम्भ के ग्यारह श्लोकों में मंगलाचरण और फिर मुख्यतः ये नाम दे सकते हैं तीन श्लोकों में, अपने धन का पुण्यकार्य में सदुपयोग करने यो कहि वनिक वृन्दावन पायौ, पसरि दंडवत करि सिर नायौ वाले गृहस्थों की प्रशंमा है। पन्द्रह से अठारहवे श्लोक अपनी सकल पिवस्था कही, तातें प्राइ शरण में गही ॥ तथा उसके बाद के गद्यांश में छुल्लक सुमतिदास का बंशा. सरत जिगमो तस्तरी या समधन नही भया। नुक्रम से परिचय है जिनके उपदेश से शान्तियज्ञ किया साठ बासनी मुहरन भरी, लै हित जू के आगे धरी॥ गया। गुमनि कही धन तुमही राखौ, हरि-हरिजन भजि के रस चाखौ। उन्नीसवें श्लोक मे लिखा है कि उन छुल्लक महाराज श्रद्धालखि कै नाम सुनायौ, रीति धर्म सब कहि समुझायो॥ के उपदेश मे 'वृषभूमि मंज्ञ पुरे' अर्थात् धर्मावनि नगर में वह धन हाथन हुँ नहि छियौ, यों कहि वनिक विदा कर दियो। जिन्होने शांतिक्रम नामक विधान कगया वे सुखी रहें। जन-पत्रों में भी ऐतिहामिक लेख बहुत ही कम प्रका- बीमवें और इक्कीसवें श्लोकों में शान्तियज्ञ के प्रारम्भ की शित होते है । कुछ वर्ष पहले ऐसी कई पत्रिकाएं प्रकाशित तिथि भाद्रपदकृष्णा तृतीया शुक्रवार वि० सं० १७१६ दी हुई थीं जिनमें जैन-माहित्य एवं इतिहास सम्बन्धी नई हुई है। बाईमवें से चौवीस तक श्लोकों में लिखा है कि जानकारी प्रकाशित होती रहती थी। जैन-सिद्धान्त भास्कर शूद्रवर्णी सुलतान राजा के राज्य में 'धर्मावनि', घामोनी अनेकान्त, जनयुग, जैन साहित्य-संशोधक, जैन सत्य- में चन्द्रप्रभजिन मन्दिर में महान् शान्तियन किया जा रहा प्रकाश, जन हितैषी आदि से सभी पत्र अब बन्द हो गए है। इसके पश्चात् एक लम्बा गद्य है जिसमें शान्तियज्ञ के हैं, अतः अनेकान्त और जैन-सिद्धान्त भास्कर को तो शीघ्र यजमानों का वंशानुक्रम से परिचय है। यह परिचय संक्षेप ही चालू करने का प्रयत्न करना चाहिए। में दिया जाता है।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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