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________________ २११ अनेकान्त वैश्य वर्ण गोलापूर्व जाति के सनकुटा गोत्र में संघपति (संघवई, संपई, सिंघई) प्रासकरण थे। उनकी पत्नी का नाम मोहनदे था । उनके दो पुत्र हुये। बड़े पुत्र का नाम संघपति रतनाई और उसकी पत्नी का नाम साहिबा था। उनके पाँच पुत्र हुये, नरोत्तम, मंडन, राघव, भागीरव भौर नन्दी घासकरण के द्वितीय पुत्र संघपति हीरामणि थे । उनकी दो स्त्रियां थीं, कमला और वसन्ती । उनके बलभद्र नाम का पुत्र था। गद्य के अन्त में इन सभी यजमानों को भाशीर्वाद दिया गया है । अन्तिम श्लोक में जिनेन्द्रदेव की पूजादि का महत्त्व बतलाया गया है । १४ विशेषता का द्योतक है। श्लोकों की भाषा भावपूर्ण एवं प्रौढ़ है। इस अभिलेख के रचनाकार कौन हैं यह ज्ञात नहीं होता बहुत कुछ सम्भव है कि स्वयं इल्लक सुमतिदास ने ही उसे रचा हो । । लेखक के हस्ताक्षर आदि जैसी कोई चीज भी इस अभिलेख में नहीं है। निवेदन इस पट के चित्र बड़े ही आकर्षक एवं प्रेरक हैं । विविध रंगों का प्रयोग अवश्य ही चित्रकार के चुनाव की इस अभिलेख का सम्पूर्ण पाठ वहां दिया जा रहा है। विद्वद्वगं से सादर निवेदन है कि वे इस पर से अन्य तथ्यों की भी खोज करें और यदि अनुचित न मानें तो मुझे भी सूचित करने की कृपा करें। विभिन्न स्थानों पर लिखे हुए इस अभिलेख वाले यजमानों के वंशजों से भी निवेदन है कि वे अपने इस गौरवपूर्ण इतिहास की विशेष खोज करें। और आज तक का अपना समूचा इतिहास तैयार करें । मूल पाठ महत्व इस पर अभिलेख का कई दृष्टियों से बड़ा महत्व है । धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और कला एवं साहित्य की दृष्टि से इस अभिलेख का विस्तृत अध्ययन किया जा कता है। अभिलेख का 'शान्तिक्रम नामक विधान' कौनसा विधान था, उसका समीकरण और अन्वेषण विद्वर्ग का कार्य है। ॥ श्रीं नमो जिनाय ॥ वि० सं० १७.६ में धामोनी पर किस सुलतान का शासन था और फिर यह नगर क्यों और कैसे भाजजैसा अजड़ हो गया, यह सब इतिहासवेत्ताओं के विशेष अध्ययन की वस्तु है। वर्तमान में इस नगर के अवशेष सागर शहर से लगभग ४० मील पर प्राप्त होते हैं । प्रवशेषों से इसके अतीत वैभव का स्पष्ट बोध होता है। शान्तियज्ञ के यजमानों के वंशज भाज बहुत बड़ी संख्या में पड़वार ग्राम तथा सागर शहर में विद्यमान हैं। कुछ लोग कुछ अन्य स्थानों पर भी जा बसे हैं। सागर में रहने वाले ये लोग पढ़वार से ही सभी के २०-२५ वर्षों में आये हैं। पड़वार में इन लोगों का बड़ा वैभव रहा है। वहां इनका मनवाया जैन मन्दिर दर्शनीय है। वहां लगभग ६५ वर्ष मानन्ददश्री रभिनन्दितेशः सतां समर्थः सुमतिः सुखान्धिः स्वस्ति श्री जिनमानम्य पंचकल्याण नायकम् । लिखामि टिप्पिकां रम्यां सर्वकल्याणसिद्धये ॥ १॥ अर्हन्तो मङ्गलं सन्तु तव सिद्धाश्च मङ्गलम् । मङ्गलं साधवः सर्वे मङ्गलं जिनशासनम् ॥२॥ नाभेयादिजिनाः प्रशस्तवदनाः ख्याताश्चतुविशतिः । श्रीमन्तो भरतेश्वरप्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश ॥ ये विष्णु प्रतिविष्णुलाङ्गलधराः सप्ताधिका विंशतिम् । वैलोक्याभयदास्त्रिषष्टिपुरुषाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ||३|| सप्रेरितां दर्शन कर्णधारे यंन्नामनावं परिरम्य भव्याः । भवाम्बुधिदुःखजलं तरन्ति स त्रायतां वो वृषभोजिनेन्द्रः ||४|| जिनोऽजितोयाज्जित दुःखराणि भंग्यान् सुखी संभवनाथ ईड्यः ॥ ॥५॥ पूर्व इन्होंने गजरथ भी चलवाये थे। भाज भी इस वंश में बहुत से उच्च कोटि के त्यागी विद्वान् श्रीमान् विद्य मान हैं। पद्मप्रभः पद्मदलाभनेत्रः शुभाय भूयाच्च सुपार्श्वदेवः । चन्द्रप्रभश्चन्द्रसमानकान्तिः सतां सुबुद्धिः सुविधिः प्रबुद्धः ॥ ६ ॥ श्री शीतलेशोऽवतु भव्यसंधं श्रेयोजिनश्चाक्षयसौख्यराशिः । श्रीवासुपूज्यः पुरुहूतपूज्यो मलापहारी विमलेश्वरश्च ||७
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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