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________________ "रसिक अनन्य माल" में एक सरावगी जैनी का विवरण श्री प्रगरचन्द नाहटा जैन इतिहास की सामग्री बहुत ही बिखरी हुई है के अत्याचार एवं अपने स्वार्थवश कुछ जैनी अन्य धर्मावउसको एकत्रित करके प्रकाशित करने का प्रयत्न इधर बहुत लम्बी भी बनते रहे हैं। जिस प्रकार प्रोसवाल जाति या ही कम हो पा रहा है। अब से ३०-४० वर्ष पूर्व श्वे. जैन वंश मूलतः जैनी ही था पर कई मोसवाल जो राजामों के शिलालेखों, प्रशस्तियों और ऐतिहासिक रास, तीर्थ यात्रा अधिक सम्पर्क में रहे, वे राजमान्य-वैष्णव भादि धर्मप्रादि से ग्रन्थों का प्रकाशन जिस रूप में हुआ था, उससे सम्प्रदायों के अनुयायी बन गये। फलतः जोधपुर मादि में इन १०-१२ वर्षों में जैन ऐतिहासिक साधनों के संग्रह एवं सैकड़ों ऐसे पोसवाल कुटम्ब हैं जो अब वैष्णव धर्मानुयायी प्रकाशन का प्रयत्न पूर्वापेक्षा कम ही हुमा है। दिगम्बर हैं। इसी तरह अन्य जातियों में भी खोजने पर मिलेंगे। सम्प्रदाय के साहित्य और इतिहास के साधन इधर फिर वर्तमान में भी पत्रों में कभी-कभी ऐसे समाचार पढ़ने को भी कुछ ठीक रूप में प्रकाशित हो रहे है, पर ऐसे प्रका- मिलते हैं कि समाज से बहिष्कृत होने अथवा उचित स्थान शनों की विक्री अधिक नही हो पाती इसलिए काम आगे या सहायता न मिलने के कारण अमुक व्यक्ति या अमुक नही बढ़ता। यद्यपि डाक्टरेट के लिए शोध-प्रबन्ध लिखे कुटुम्ब अन्य धर्मावलम्बी हो गया है बीच में दो-चार बार जाने का प्रयत्न इधर काफी तेजी पर है पर ऐतिहासिक तो ऐसे भी समाचार छपे थे कि कोई जैनी मुसलमान हो साधन जहां तक अप्रकाशित अवस्था में रहेंगे, शोध-प्रबन्धों गया है। एक जन्मजात अहिंसक का इस प्रकार हिंसक में उतनी ही कमी रहेगी, वे ठोस नहीं हो पायेंगे। समाज में चला जाना, अवश्य ही उल्लेखनीय घटना है। जैन ग्रन्थों के अतिरिक्त जैनेतर ग्रन्थों में भी कभी- जैनेतर सम्प्रदायों के ग्रन्थों को पढ़ने से ऐसी कई कभी कुछ ऐसे महत्व के उल्लेख मिल जाते हैं यद्यपि अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है कि अमुक व्यक्ति पहले बार विरोधी दृष्टि के कारण उन ग्रन्थों में तथ्यों को तोड़- जैन था फिर उस सम्प्रदाय के धर्माचार्य के सम्पर्क में मरोड़ दिया जाता है फिर भी कुछ नई जानकारी मिलने पाकर जैनधर्म छोड़कर उनका अनुयायी बन गया । वल्लभ के कारण उनका भी अपना महत्व है। सम्प्रदाय के ८४ या २५२ वैष्णवन की वार्ता ग्रंथ में ऐसा उल्लेख देखने में माया था पर अभी उसे ढूढ़ने में जैन ग्रन्थों के अनुसार समय-समय पर जैनाचार्यों के समय लगेगा, इसलिए फिर उसे कभी प्रकाशित किया उपदेश से हजारो-लाखों जनेतर व्यक्ति जैनी बने। जैन जायेगा। इस लेख में तो "रसिक अनन्य माल" के एक ऐसे जातियों के इतिहास को देखने पर प्रापको यही प्रतीत प्रसंग का विवरण प्रकाशित किया जा रहा हैहोगा कि उस जाति की स्थापना से पूर्व उनके पूर्वज अन्य । धर्मावलम्बी थे और कई जैनाचार्यो ने अमुक समय में इतने गौडीय या चैतन्य सम्प्रदायके कवि भगवत् मुदित रचित हजार या लाख जैनी बनाये-उनको मांसाहार, पशु बलि "रसिक अनन्य माल" ग्रन्थ राधा वल्लभ सम्प्रदाय के ३६ आदि हिंसक प्रवृत्तियों से विरत करके अहिंसा धर्म का भक्तजनों के परिचयी के रूप में है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन अनुयायी बनाया । पर ऐमे उल्लेख प्रायः नहीं मिलते कि गत वसन्त पंचमी को वेणु प्रकाशन, वृन्दावन में हुआ है। अमुक समय में अमुक कारण से अमुक जैनी ने जैनधर्म गत २० अगस्त को मेरा लश्कर (ग्वालियर) जाना हुआ छोड़कर अन्य धर्म, सम्प्रदाय को अपनाया । यद्यपि यह तो तो इस ग्रन्थ के सम्पादक श्री ललिताप्रसाद पुरोहित ने निश्चित ही है कि संख्या में चाहे कम ही हों, पर ऐसी मुझे इसकी एक प्रति भेंट की। इसमें प्रथम परिचयी नरघटना भी हुई अवश्य है कि राजकीय कारणों से या समाज वाहन जी की है । नरवाहन, भोगांव निवासी लुटे था।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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