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________________ मादिकालीन 'वर्चरी रचनामों की परम्परा का उद्भव और विकास १८७ गान । नृत्य, ताल समन्वित फागुन की वासन्ती सुषमा का समा- हो हो गया हो, क्योंकि जिनदत्तसूरि ने चच्चरी का प्रयोग वेश होता है। किया है। शास्त्रीय दृष्टि से इस छन्द के लक्षणों का वर्णन ५. प्रानन्द प्रधान मनमोहक नगर के स्थानों पर मिलता है, जो विविध नामों के रूप में प्रचलित रहा होगा उत्पन्न होने वाली चर्चर ध्वनि । ___ परन्तु फिर भी चर्चरी को हम कोई निश्चित छन्द विशेष ६. वसंत में गाया जाने वाला विशुद्ध वसंत गीत। नहीं कह सकते। हाँ, लोक प्रचलित रूपों में भागरा पौर ७. मंगल पर्वो पर भानंदोत्पत्ति करने वाला मनोहारी उसके पास-पास यह लोक गान खूब गाया जाता रहा होगा, ऐसा प्रतीत होता है। यों कोई भी सहृदय इस बात का ८. चर्चरी एक प्रकार का खेल विशेष होता है। भी अनुमान लगा सकता है कि यह गीत कबीर के बीजक है. एक भाषा निबद्ध गान, जो नृत्य विशेष के साथ में चाँचर बन बैठा है, साथ ही जायसी में भी फागुन और गाया जाता है। होली के प्रसंग में चाचरि या चांचर का उल्लेख मिलता १०. यह एक प्रकार का छन्द विशेष है, जो विभिन्न है। कालिदास और हर्ष के नाटकों में इस गीत का शिल्प ग्रंथों में शास्त्रीय छन्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अधिक स्पष्ट तो नहीं है, परन्तु उनमें चर्चरी का वर्णन ११. यह एक लोक गीत का प्रकार विशेष था। अवश्य मिलता है । अतः इतने प्रसिद्ध गीत से यह निर्धान्त १२. चर्चरी एक प्रकार का राग था, जिसको परवर्ती रूप से कहा जा सकता है कि चर्चरी लोकप्रिय गेयता. साहित्य में चर्चरी राग नाम से अभिहित किया गया। प्रधान है। यह चांचर से भिन्न, किसी सामूहिक उत्सव तुलसीदास ने भी चर्चरी राग को अपनाया था। या क्रीड़ा या खेल नही होकर सरल सम्मोहन पूर्ण वसन्त ___इस प्रकार चर्चरी के शिल्प का अनुमान हो सकता है। में नाच-नाच कर उल्लास के द्वारा प्रकट की हुई आकर्षक वस्तुतः डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में चर्चरी में गीत शैली विशेष है। यह भी संभव है कि लोक साहित्य केवल गान का रूप नहीं लिया है। आध्यात्मिक उपदेश की सरल तथा मोहक लोकप्रिय गीत शैली या गान शैली में चर्चरी जैसे लोकप्रिय गान के प्रिय विषय शृङ्गार रस होने के कारण ही जैन कवि श्री जिनदत्तमूरि ने इसको का आभास देने का भी प्रयत्न है। बीजक से यह आभास अपने ग्रन्थों में अपनाया हो। एक विशिष्ट बात यह भी हो जाता है कि चांचर फगुना से सम्बद्ध है फिर बीजक' है कि जनरुचि का कण्ठहार बनने और लोकप्रिय होने के में दो पद चांचर के हैं दोनों के छन्द अलग-अलग हैं इमसे कारण इस चर्चरी गीत की ध्वन्यात्मकता ने सबका मन भी सूचित होता है कि इसके लिए कोई एक ही छंद नियत मुग्ध कर दिया हो और यह छन्द या गीत प्रत्येक मनुष्य नहीं था । अत: वह तो स्पष्ट है कि चर्चगे का प्रचलन का लोकप्रिय गीत या छन्द बन गया, यही बात इसके मूल लोकगीतों के विशिष्ट प्रकार के रूप में १२ वीं शताब्दी में नाया था। स्वयं तुलसी ने चर्चरी गग को अपनाया था। - १. जनपद-वर्ष १, अंक ३, पूष्ठ ५-८ देखिए-डा. जनपद : वर्ष १, अङ्क ३, पृ० ५-८ हजारी प्रसाद द्विवेदी का “लोक साहित्य का अध्ययन" दूसरी चांचर के कुछ शब्द इस प्रकार हैं :शीर्षक लेख। जारहु जग के नेहरा, मन बौरा हो। २. बीजक की दूसरी चांचर ठीक इस पद में तो नही जामें सोग संताप, समुझ मन बौरा हो। है पर मिलते-जुलते छंद में अवश्य है। जान पड़ता है कि तन धन सौं का गर्वसी, मन बौरा हो, चर्चरी या चांचर की दीर्घ परम्परा रही होगी। इन दो भसम किरिभि जाकी साज' समुझ मन बौरा हो। चार उदाहरणों से यह प्रमाणित हो जाता है कि बीजक में बिना नीव का देवधरा मन बोरा हो, जिन काव्य रूपों का प्रयोग किया गया है उनकी परंपरा बिनु कहगिल की इंट, समुझ मन बौरा हो । बहुत पुरानी है और पालोचना काल में विभिन्न संप्रदायों काल बंत की हस्तिनी, मन बौरा हो, के गुरुमों ने धर्म प्रचार के लिए इन काव्यरूपों को भप- चित्र रच्यो जगदीश समुझ मन बौरा हो।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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