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________________ 180 भनेकान्त में रही हो और शिल्प अनेक बार सफलता से प्रयुक्त होने है कि इस शब्द के अर्थ में थोड़ा अन्तर परिलक्षित होता के कारण ही इसे विभिन्न प्रकार का विषय बनाया गया है। चांचर इन दिनों राजस्थान की नत्य, वाद्य प्रधान, होगा। उल्लासमय अभिव्यक्ति को तो कहते ही हैं, पर विवाह में इस प्रकार उक्त चर्चरी संज्ञक प्रमाणों शब्दों अर्थो नृत्य करती हैं। यह एक प्रकार का उल्लास प्रधान टोना तथा अन्य बातों के आधार पर चर्चरी की परम्परा तथा या क्रिया विशेष होती है, जिसे वे हाथों की उंगलियों के उसका शिल्प पर्याप्त स्पष्ट हो जाता है। चर्चरी की यह दूल्हे पर सिर.से लेकर पैर तक और पैर से सिर तक पूजा परम्परा संस्कृत प्राकृत और अपभ्रंश से अक्षण्य रूप से के सामान का प्रयोग करती हैं शेष स्त्रियां वाद्यों पर नृत्य चली आ रही है। जिसके प्रमुख स्थलों का विवेचन ऊपर करती तथा गाती रहती हैं। इस क्रिया को चांचर करना किया जा चुका है। कहते हैं। इसके मूल में क्या बात है? यह तो निश्चित वस्तुतः अद्यावधि प्राचीन प्राप्त साहित्य में चर्चरी नहीं कही जा सकता; क्योंकि पूछने पर वे बतलाती हैं, कि सम्बन्धी जितने उल्लेख तथा प्रमाण उपलब्ध हो सके हैं यह रूढ़ि है पुरातन नियम है, अतः अांख मींच कर इसे उनका परिचय यहां दिया गया है। चर्चरी का इस समय पूरा करना ही पड़ता है ऐसा उनका दृष्टिकोण है परन्तु मैं राजस्थान में जो स्वरूप है, वह अाज भी भली भांति देखने वर वधू के उल्लासपूर्ण सुखी जीवन और भविष्य की शुभको मिल जाता है। चर्चरी गान यहां उल्लास प्रधान लोक- कामना करने के लिए ही यह सब कुछ किया जाता होगा गीत के रूप में आज भी गाया जाता है। इसका सही व एसा लखक का अनुमान है। यथार्थ स्वरूप फाल्गुन के दिनों में गाए जाने वाले चंग-के जो भी हो, चर्चरी या चांचर के राजस्थान में प्रद्यागीतों में देखा जा सकता है / चंग के गीत जिस तरह आदि विधि जो भी रूप देखने को मिलते हैं, उन पर प्रकाश काल के साहित्य काव्य रूप (फाग) का प्रतिनिधित्व करते डालने का प्रयास किया गया है। बहुत संभव है कि लोक हैं ठीक इसी प्रकार इसमें चर्चरी का रूप भी देखा जा प्रथा या रिवाज होने से इस चर्चरी ने अब तक सबसे सकता है / चंग के गीत फागुन में ही गाये जाते हैं मधुमास अधिक लोकप्रियता पाई हो / चर्चरी के शिल्प पर विस्तार के उल्लास प्रधान वातावरण को मुखरित करने वाले ये में और भी विद्वानों के विचार मिलते हैं' जिनसे चर्चरी लोक गान शत शत रूपों में राशि राशि की संगीत मधुर के शिल्प को समझने में सहायता मिलती है। वस्तुतः इस ध्वनियों में फूट पड़ता है / ये चर्चरी गीत चंग बाजे पर सम्बन्ध में अवधि चर्चरी की जो भी परंपरा तथा स्वरूप गाये जाते हैं, जो वसन्त की शोभा कही जा सकती हैं। की स्थिति है, उसे स्पष्ट कर दिया है। यह भी बहुत प्राचीन काल की भांति चर्चरी गान की इन टोलियों में सम्भव है कि शोध होने पर इसके शिल्प पर और भी मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग की ही टोलियां रहती हैं जो नये ज्ञातव्य प्राप्त हों। नाच कर अपने दवे अथव अबोले उल्लास को वाणी प्रदान ---- करती हैं / अतः चंग के इन गीतों में इस समय चर्चरी का१. विशेष विस्तार के लिए देखिए जैन सत्यप्रकाश सम्यक तथा क्रमिक विकास देखा जा सकता है। वर्ष 12, अङ्क 6 में प्रकाशित श्री हीरालाल कापडिया का जहां तक चांचर शब्द का प्रश्न है यह कहा जा सकता 'चर्चरी' शीर्षक लेख / अकबर जैन धर्म से स्नेह करता था, इसका कारण उसकी भणिक उत्तेजना नहीं थी। उसके जीवन का अन्तिम भाग जन उपदेशकों के प्रभाव में उनको शिक्षानुसार ही बीता था। -एम. एस. रामस्वामी मापंगर
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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