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________________ कहा-'मां! मैं तुम्हारा भाई है। रानी का माथा ठनका उसने कहा इसका क्या मतलब ? 'मतलब यह कि हमारे तुम्हारे पिता एक ही हैं।' अब रानी से न सहा गया। उसे चक्कर मा गया । वह जमीन पर गिर पड़ी । लाज का जो पर्दा रानी ने बड़े यत्न से डाल रक्खा था, प्राज सहसा खुल गया। रानी की कुछ न चली। वह भी उसी प्रेम के प्रवाह में बह चली । वह माता बन गयी । उसे पुत्र, प्राणों से भी प्यारा मालूम होने लगा। लड़के को खिलाने हंसाने में उसका दिन बीतने लगा। लड़की को भी वह ऐसा ही चाहती थी परन्तु उसे देखते ही उसके हृदय में चिन्ता शोक और पश्चाताप का दौरा हो जाता था। उसे अपने बाल्यकाल की घटनाएं याद माने लगती थीं। पांखों से आंसू निकल पड़ते थे। अब यह कौन कहे कि उसका जी-वात्सल्य प्रांसुओं के रूप में ही बाहर निकलता था । पुत्री ज्यों ही चौदह वर्ष की हुई कि उसका विवाह कर दिया गया । अपनी निश्चिन्तता के लिए उसने इस बाल-विवाह की कुछ भी पर्वाह न की। सचमुच इससे रानी को बहुत निश्चन्तता हो गई । अब वह पुत्र प्रेम में अपनी अतीत घटनाएं भूलने लगी। वह पुत्र को जरा भी चितत और दुःखी न देखना चाहती थी। उसकी प्रसन्नता की एक एक अदा पर वह न्यौछावर होने को तैयार थी। उस दिन उसका लाल बड़ी देर तक न पाया। भोजन का समय हुआ, वह भी निकल गया, परन्तु रानी का लाल न पाया, रानी को खाना पीना हराम हो गया। दासियों से चिल्लाकर कहने लगी-'मेरे लाल को देखो !' बाहर भी खबर भेजी गई । परन्तु यहाँ से खबर पाई की बड़ी देर हुई कुंवर जी अन्दर पहुँचे हैं । रानी ने बिगड़कर कहाअरे तो कहां गया ? सभी दासियाँ भौंचक्की सी रह गई। इतने में एक दासी ने कहा-अभी तो उस तरफ जाते हुए हमने देखा था। रानी उसी तरफ झपटी। उस तरफ कई कमरे थे। सभी पर बाहर से साँकल चढ़ी थी। सिर्फ एक कमरा जिसकी तरफ लोगों का माना जाना बहुत कम होता था-लटका था । रानी ने जल्दी जाकर उसी को थपथपाया! जोर लगाने पर मालूम हुआ कि भीतर से बन्द है । रानी ने घबराई आवाज में कहा-'भीतर कौन है ?' परन्तु कुछ उत्तर न मिला। सब लोगों ने द्वार पर जोर लगाया। रानी ने कुछ रुंधे गले से कहा-'भैया कार्तिक' । अबकी बार मावाज आई 'भाई से क्या कहती हो मां मावाज के साथ ही द्वार खुल गया। कुंवर ने रानी से दासियों ने इस समय वहाँ खड़े रहना मुनासिब न समझा। कमरे में माँ और बेटे के सिवाय कोई न रहा। रानी होश में थी। रानी ने बड़े करुण स्वर में कहा-बेटा जो हुमा अब वह वापिस नहीं हो सकता। अब इस दुखिया मॉ को और क्यों दुखी करते हो ?' परन्तु कुंवर ने कुछ उत्तर न दिया । रानी न बड़ी दीनता से कहा-भूल जामो मेरे लाल ! पुरानी बातें भूल जामो ! मैं पापिनी हूँ तो तुम्हारी माँ हूँ और पिशाचिनी हूँ तो तुम्हारी मां हूँ। माता का नाता अमिट और अपरिवर्तनीय होता है।' कुंवर ने फिर भी मौन रखा । किसी अज्ञात भय से रानी का दिल दहल गया । उसे मालूम पड़ा कि कोई उसके लाल को छीन कर ले जाना चाहता है। उसने झपट कर कुवर को छाती से लगा लिया और अपनी कोमल भुजाओं से इतने जोर से जकड़ लिया मानों किसी छीनने वाले के हाथ से कुंवर की रक्षा कर रही हो। कुवर को जकड़ कर रानी खूब रोई। कुंवर भी रो रहा था। घृणा से उसका हृदय जल रहा था। साथ ही करुणा की वेदना मी असह्य थी। थोड़ी देर में जब दोनों के मांसू रुके तब रानी ने कहा-'बेटा !' 'मां!' 'तेरा क्या विचार है ? यह कहकर रानी फिर हिलक हिलककर रोने लगी। कुंबर ने कहा 'मां ! तुम रोमो मत ! मैं तुम्हारा रोना नहीं देख सकता। तुम कैसी भी रहो, तुम्हारे विषय में मालोचना करने का मैं अपने को अधिकारी नहीं समझता । तुम मेरी मां हो। फिर भी मैं इस घर में तो क्या, इस राज्य में भी नहीं रह सकता।' फिर मैं कैसे जीऊँगी? यह कहकर रानी फिर जोर
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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