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________________ १७२ अनेकान्त जोर से रोने लगी। उसने दोनों हाथों से कुंवर को पकड़ का भी स्वामी होगा। जिम राज्य में नारी जाति सम्पत्ति लिया कुंवर ने कहा मानी जाती हो उसका दान किया जाता हो, उस राज्य में 'मा ! इस राज्य में हमारा तुम्हारा पवित्र सम्बन्ध भी अन्धेर न हो वही थोड़ा है। मां! ऐसे अन्धेर राज्य में कायम नहीं रह सकता। कैसे रहूँ ?' 'क्यों ?' कुंवर की बात सुनकर रानी का हृदय तिलमिला क्योंकि इस राज्य में नारी-जाति सम्पत्ति समझी जाती गया। परन्तु कुंवर का कहना अप्रिय होने पर भी सत्य है। इस राज्य में पिता रक्षक नहीं स्वामी है। यहां पर था। उसने नारी जाति के पददलित हृदय को उत्तेजित पुरुष भोक्ता है, स्त्री भोज्य है । ऐसी हालत में पुरुष नारी किया था, उसे दासता की निद्रा से जगाया था। उसके के साथ जैसा चाहे बर्ताव कर सकता है, वह उसे दान में कठोर शब्द में महिलामों के महत्व का संगीत प्रवाहित हो दे सकता है, बेंच सकता है । इस राज्य में पुत्रियों का विवाह रहा था। नहीं होता, वे दान में दी जाती हैं। अगर दान देने के रानी को अपने ही ऊपर घृणा होने लगी। इसलिए भाव न हों तो वे काम में लाई जाती हैं । जहाँ कन्या-दान नहीं कि वह अपने ही पिता की पत्नी है, किन्तु इसलिए की प्रथा है, वहाँ ऐसा करना गैरकानूनी नहीं कहा जा कि वह पुरुषों की सम्पत्ति है। वह गाय, भैस, की तरह सकता। मां, तुम्हारे साथ जो व्यवहार हुआ सो हुमा इसके किसी एक पुरुष का धन है। अब उसे भी इस राज्य में पीछे मेरी बहिन का भी दान ही किया गया-उसका रहना पाप मालूम होने लगा। उसने कहा-बेटा, जो तुम विवाह नहीं हुआ। करोगे वही मैं करूंगी। यह राजमहल तो मुझ कारागार रानी ने कहा-विवाह क्यों नहीं हुमा? ही नहीं वरन् नरक मालूम होता है। कुंवर ने कहा-मां बिना इच्छा के चाहे जिसके साथ बांध देना क्या विवाह है ? जब कोई किसी को गोदान नदी से थोड़ी दूर एक छोटी-सी पहाड़ी थी। उसके करता है तब क्या गाय का विवाह कहलाता है ? ऊपर एक मैदान था । मैदान लम्बा-चौड़ा था परन्तु भूतल रानी इसका कुछ उत्तर न दे सकी । वह चुपचाप से बहुत ऊँचा न था। पहिले ये मैदान यों ही पड़ा रहता पैर के अंगूठे से जमीन खोदती रही। कुछ देर बाद कुंवर था, परन्तु अब इसकी हालत बदल गई थी। पहिले जो ने फिर कहा यहाँ पर एक कुंपा था वह बिल्कुल अव्यवस्थित-सा पड़ा ___'मैं गत वर्ष बहिन के यहां गया था । वह रानी है था। अब उसके चारों तरफ ऊँचा चबूतरा-सा बन गया परन्तु क्या भिखारिन के बराबर भी उसे सुख है ? क्या था। उस पर छोटी-छोटी शिलाएं बिछ गई थीं। उसके उसका जरा भी अधिकार है ? यह दुख चुपचाप इसीलिए चारों तरफ एक नाली बना दी गयी थी। कुएं से पानी सहना पड़ता है कि वह पिताजी की सम्पत्ति थी। उन्हें निकालते समय जो पानी इधर-उधर गिरता था वह इस अधिकार था कि वे चाहे जिसको सौंप दें। जब नारियां नाली में से बहकर पास के पौधों में चला जाता था। दान की जा सकती हैं अपने काम में लाई जा सकती हैं, लाइनवार कुछ पौधे लगे थे, जिससे वहाँ का दृश्य एक तब बेची और खरीदी भी जा सकती हैं, पर्थात् नारी एक वाटिका सरीखा हो गया था। उस वाटिका के किनारे एक पशु है। झोंपड़ी थी। झोंपड़ी में तीन कमरे थे। पहला कमरा रानी ने फिर भी कुछ उत्तर न दिया। कुंवर कहता रसोई घर मालूम होता था; क्योंकि उसमें एक तरफ चूल्हा ही गया-मां ! जब नारी सम्पत्ति है 'उसका कोई न रक्खा था, कुछ मिट्टी के बर्तन थे जिसमें शायद कुछ अनाज कोई स्वामी है तब जिस प्रकार पिता के मरने पर उसका होगा, मिट्टी के दो घड़ों में पानी भी था। कुछ धातु के पुत्र पिता की अन्य सम्पत्ति का स्वामी होता है उसी प्रकार बर्तन एक तरफ रक्खे थे। दूसरे कमरे में रानी रहती थी। पिता की सम्पत्ति रूप उनकी स्त्री का प्रति अपनी माता कमरे में एक तरफ दीवास से लगा हुमा एक मिट्टी का
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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