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अनेकान्त
कि वे सर्वथा नवीन से प्रतीत होते हैं। अनायास अर्थावबोध के लिए कुछ शाकटायन के सूत्र भी थोड़े से परिवर्तन के साथ इन्होंने ले लिए हैं ।
१- शा० सू०
प्रादिर्ना प्रत्यये
कर्ण मनः श्रच्छेदे
नित्यं हस्ते पाणी स्वीकृती
ह्रस्वो वाऽपदे
प्रस्योढोये
एवेऽनियोगे
चादेरचोsनाङ:
सौ वेती
ग्रन्थ चोदन्यान्
१।१।२४
१।१।२८
१|१|३६
११११७४
PIRINK
११११८७
१|१|१०१
१।१।१०३
शरा
ferat
सू०
न प्रादिरप्रत्ययः
३|३|४
कणे मनस्तृप्ती
३।११६
३|१|१५
नित्य हस्ते पाणावुद्वाहे ह्रस्वोऽपदे वा
१२२२
प्रस्यैषष्योढोढ्यूहे स्वरेण
११२१४
अनियोगे लुगे
११२।१६
चादि: स्वरोज्नाक
१२/३६
सौन बेसी
११२३८
उदन्वानब्धौ च
२ १/६७
किन्तु अक्षर परिवर्तन या स्थान परिवर्तन से अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यही याचार्य का कौशल है।
क्रमशः
तक्षशिला के निकट मण्डन नामक एक जैन मुनि से सिकन्दर ने साक्षात्कार चाहा। मुनि ने उसके निमन्त्रण का तिरस्कार कर दिया, इस पर सम्राट् स्वयं मुनि के पास गया प्रश्न करने पर मुनि ने कहा कि यदि हम से कुछ पूंछना श्रौर लेना चाहता है तो पहले हमारी ही तरह अन्तर-बाह्य से नग्न हो जा । और फिर उन्होंने राज्यतृष्णा एवं भोगलिप्सा का त्याग करके ग्रात्मा की चिता करने का उसे उपदेश दिया। एक दूसरा साधु जिसका नाम कल्याण था सिकन्दर के साथ ही बाल चला गया। बाबुल में आकर उसने समाधिमरणपूर्वक चितारोहण किया । अपनी तथा स्वयं सिकन्दर की निकट मृत्यु की सूचना इस मुनि ने सम्राट् को पहले ही दे दी थी। उसकी मृत्यु के पश्चात् साम्राज्य की क्या दशा होगी, यह भी बता दिया था ।
- डा० ज्योतिप्रसाद जैन
रागविलावल
दूलह नारितु बड़ी बावरी, पिया जागे तूं सोवे । पिया बतुर हम निपट यानी न जानुं क्य होते ।। दुम || 'मानवन' पिया दरस पियारों, खोल घूंघट गुस जोने ॥ दुल० ॥
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- श्रानन्दघन