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साहित्य-समीक्षा
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ने इसके निर्माण में महाकाव्य की शास्त्रीय और पाश्चात्य की भाँति करुण रस को चित्रित न कर सका। इसी तरह दोनों ही प्रकार की परिभाषामों का सहारा लिया है। इससे गर्भ और जन्मोत्सव वात्सल्य रस को साक्षात् करने में महाकाव्य केवल परम्परा-पालन की घोषणा भर करके नहीं अधूरे रहे । नायिका त्रिशला और उमका दाम्पत्य-जीवन रह गया, अपितु उसमें सौंदर्य और रोचकता का भी पाठक के हृदय को छ नहीं पाते। वैसे अधिकांश स्थल समावेश हो सका । वह समय बीत गया जबकि काव्य-शास्त्र ऐसे भी हैं जहाँ कवि की प्रतिभा और हृदय रमे हैं। उनमें के नियमों का रत्ती-रत्ती पालन ही विद्वानों के मध्य गौरव विभोर बना देने की ताकत है । प्रतीत होता है कि प्रकृति का विषय बनता था, भले ही उसमें काव्यत्त्व नाम को भी के अवलोकन में कवि को रुचि विशेप है। 'बसन्त' और न हो । शायद इसी कारण गुप्त जी के साकेत और प्रसाद हेमन्त' का मौन्दर्य देखते ही बनता है। इसके अतिरिक्त के कामायनी जैसे काव्य शास्त्रीयत्त्व की परिधि से निकल महावीर के उदात्त-गुणों का चित्रांकन सात्विकता से भर आने पर भी महाकाव्य कहे जाते हैं। 'परम ज्योति महावीर देता है। भक्त हृदय उससे अभिभूत हुए बिना नहीं रह में भी महाकाव्योचित बाह्य और अन्तः प्रकृतियों को अंकित सकता । रानी मृगावती और चन्दना का विवेचन भी रसकिया गया है।
मय है। भगवान् महावीर के जीवन को लेकर सबसे पहला यद्यपि कवि ने "दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रन्थों का महाकाव्य हिन्दी भाषा में अनूप शर्मा ने 'वर्धमान' नाम गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया है और फिर उसे जो सत्से रचा था। उसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ से हुआ है शिव-सुन्दर प्राप्त हुमा उसे लिया है, किन्तु मेरी दृष्टि में उसमें १९६७ पद्य है । भले ही उसमें "महावीर सम्बन्धी भगवान महावीर से सम्बन्धित दिगम्बर और श्वेताम्बर घटनाओं का क्रमवार इतिहास" न हो और भले ही वह
परम्परागों के मूलस्वर में अन्तर नहीं है। एक कवि के "संस्कृत वृत्तों" में लिखा गया हो किन्नु जहाँ तक भाव,
लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि नीर्थकर की मां ने १६ विभाव और अनुभावों के चित्राङ्कन का सम्बन्ध है, वह एक
स्वप्न देखे या १८, अपितु यह विशेष है कि रवान अवलोकन अनूठी कृति है। काव्य की दृष्टि से इतिहास गौण होता के अनन्तर माँ की भावनाए कैमी बनी और जब उनका फल है और उसमें मन्निहित मार्मिक-स्थल मुख्य । मै यह भी।
विदित हुया कि तीर्थकर बालक उतान्न होगा तो मां की नहीं मानता कि संरकृत-वृत्तो मे लिखे जाने से ही किसी मयादित प्रफुल्लता किम दिशा में प्रभावित हुई। मुझे काव्य की प्रवाहमयता मर जाती है।
प्रसन्नता है कि कवि सुधेश ने कहावीर के विवाद ग्रस्त 'परमज्योति महावीर' की भाषा अपेक्षाकृत सरल है। पहनुमा
पहलुमों से काव्योचित स्थलों को तटम्ध होकर चुन लिया शब्दों का उपयुक्त स्थान पर चयन हुआ है और वाक्यो में है। उनका ५
में है। उनकी परख प्रशमनीय है। इससे उनके कवि-हृदय सरसता है। अर्थात् प्रसाद गुण की कहीं कमी नही है का उदात्त भावना प्रकट होता है। किन्तु साथ ही यह भी सच है कि महाकाव्य के कतिपय कवि की यह प्रतिज्ञा कि इस महाकाव्य को सर्वसाधामार्मिक स्थल भावुकता के साथ अकित न किये जा सके। रण पढ़ सकेंगे, समझ सकेंगे और रचि ले सकेंगे, पूरी हुई महावीर के गृह-त्याग का दृश्य 'यशोधरा' के बुद्ध-गृहत्याग है, इसके लिए बधाई के पात्र है।