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________________ आदिकालीन 'चर्चरी' रचनाओं की परंपरा का उद्भव और विकास लेखक-डाक्टर हरीश हिन्दी साहित्य को आदिकालीन रचनाओं का अध्ययन रंजन करती है। इन उल्लेखों से "चर्चरी" के प्राचीनकाल करते समय चर्चरी संज्ञक रचनात्रों को नहीं भुलाया जा में अभिहित शिल्प पर प्रकाश पड़ता है। कुछ महत्वपूर्ण सकता। "चर्चरी" शब्द इतना अधिक प्रयुक्त हुआ है कि उल्लेख इस प्रकार हैं : प्राचीन काल से लेकर प्रद्यावधि इसके विभिन्न अर्थ तथा १. भगक्या भणित सुण एत्थ चेवाणन्तर जम्मे रूप देखने को मिल जाते हैं। "चर्चरी" नाम से अभिहित की पवत्तं मयण महसवे निग्गयासु विचित्तवेसासु नयर गई रचनाओं का साहित्यिक मूल्यांकन करते समय चर्चरी चच्चरीसु तरुण जणविंद परिगएण वसंतकील मणुहवंतेन शब्द के विभिन्न अर्थ, उसके उद्भव और विकास पर दिट्ठा समासन्नचारिणी वत्थ सोहग चच्चरि त्ति । दळूण य प्रकाश डालना भी आवश्यक प्रतीत होता है। यह शब्द अन्नाण दोण जाइ-कुलाइ गम्विएणं कहनीय चच्चरी ऐतिहासिक होने के साथ साथ साँस्कृतिक और अनुभूति अम्हाण चच्चरीए समासेन्नं परिवयइ त्ति कयत्थि या प्रधान साहित्यिक शब्द है और इसीलिए इसका सम्यक् वत्य सोहगा'विश्लेषण चर्चरी शब्द की परम्परा के विशेष प्रकाश में (भगवान ने कहा-सुनो। यहाँ अवान्तर जन्म में किया जा सकता है। मदन महोत्सव करते हुए विचित्र वेश वाली नगर की गायक संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश और हिन्दी के कोश ग्रन्थों में टोलियों ने बाहर निकल कर तरुण जन समूहों से व्याप्त भी चर्चरी शब्द के विभिन्न अर्थ मिलते है। कुछ में एक हुई वसन्त क्रीड़ा देखकर पास में बैठी हुई भाग लेती दुई साम्य मिलता है तो कुछ में अर्थो मे पर्याप्त असाम्य । स्थिति घोबियों की गायक टोली को देखकर, अज्ञात दोष से,जातिइस शब्द के लिए मतैक्यवाली नही है। वास्तव में इस कुल आदि से गर्ववाणी में कहा कि किस लिए यह नीच शब्द की परम्परा का इसके विकाश के लिए विश्लेपण चर्चरी गायक टोली हमारी टोली के पास बैठकर फिरती आवश्यक प्रतीत होता है । इस सम्बन्ध में क्योंकि चच्चरी, है-और इन वचनों से धोबियों का अपमान किया). चर्चरी चर्चरिका, चांचरि, चांचरिका आदि शब्द एक ही उक्त उदाहरण से स्पष्ट होता है कि लेखक ने 'चर्चरी' साथ प्रयुक्त हुए मिलते है। अतः 'चच्चरी' शब्द का शब्द का जिस रूप में प्रयोग किया है वह निम्न श्रेणी-वर्ग सम्यक् परिशीलन करना और अधिक आवश्यक प्रतीत द्वारा गाये जाने वाले गीत के लिए या संगीत के किसी होता है । सच तो यह है कि पर्याप्त प्राचीन काल से चर्चरी घटिया प्रकार के लिए प्रयुक्त हुया प्रतीत होता हैं । परन्तु शब्द इतना प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुआ कि विभिन्न कालों इसी ग्रंथ मे यही शब्द अन्य अर्थों में भी प्रयुक्त किया गया में इसके विभिन्न अर्थ प्रचलित होने लगे और इस प्रकार है, उदाहरणार्थ :अकेला चर्चरी शब्द कई अर्थो का द्योतक बना रहा। २. तो तत्थेव चिट्ठमाणस्स प्रागो-वसन्तसमो विभिन्न प्रमाणों के आधार पर चर्चरिका शब्द का वियम्भो मलयमारुनो फुल्लियाई काणणुज्जाणाई विश्लेषण आगे किया जायगा। चचरी का जो प्राचीनतम उच्छलियो परहुयानो पयत्तानो नयरि चच्चरीमोउल्लेख है उसी से चर्चरी का उद्भव स्पष्ट हो सकता है। (फिर वहीं रहते वसन्त का समय आया मलयपवन चर्चरी का प्राचीनतम उल्लेख हरिभद्रसूरि की प्राकृत विस्तार को प्राप्त हुआ, कानन, अरण्यक, उद्यान तथा बाग कादंबरी नामक समराइच्चकहा (समरादित्यकथा) में प्रफुल्ल हुए, कोयल की आवाज उछलती और नगर की मिलता है। उसमे चर्चरी विषयक चार उल्लेख है जिनसे चर्चरियाँ प्रवर्ती। क्रमशः उसका अर्थ यह स्पष्ट होता है कि यह गायकों की टोली १. समराइच्च कहा : प्रो० हमने जेकोबी संपादित, है जो वसन्त के समय में खड़ी रहती है और चौक में वाद्य १० ५३ बजाती है, नाचती है, घोष करती है और लोगों का अनु- २. वही।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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