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साहित्य-समीक्षा
राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की प्रन्य-सूची, परिशिष्ट चार शीर्षकों में विभक्त है-ग्रन्थानुक्रमणिका चतुर्थ भाग
ग्रंय एवं ग्रंथकार, शासकों की नामावली, ग्राम एवं नगरों
की नामावलि । सूची के अध्येता इनके सहारे ही सूची में सम्पादक - डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल एम० ए०,
अन्तनिहित अभीष्ट तथ्यों को अल्प समय में ही प्राप्त कर पी० एच०डी०, शास्त्री, पं० अनूपचन्द न्यायतीर्थ, साहित्य
सकते हैं। रत्न, भूमिका लेखक-डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, अध्यक्ष
राजस्थान में लगभग २०० ग्रंथभण्डार और २ लाख हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी,
ग्रंथ हैं । इससे वहां के जैनों का ग्रंथ प्रेम स्पष्ट ही है । प्रकाशक-केशरलाल बख्शी, मन्त्री-प्रबन्धकारिणी
र इन ग्रन्य भण्डारों में बैठ कर ही अनेक साधुओं और कमेटी, श्री दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र, श्री महावीर जी, बटालों ने साहित्य निर्माण का कार्य किया है। महावीर भवन जयपुर, पृष्ठ-६४३, मूल्य १५ रुपये।
यदि उनकी सब सामग्री प्रकाश में पा जाय तो इतिहास इसके पूर्व तीन भाग महावीर भवन, जयपुर से ही बदलना पड़े। पुरातत्व में राजामों और सामन्तों के द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। विद्वत्समाज में उनकी प्रशंसा हुई है लिखाई असत्य बातों का भण्डाफोड़ हो और साहित्य तथा और अनुसन्धित्सुमों ने पर्याप्त लाभ उठाया है। तीन भागों दर्शन में अनेक नये अध्याय जोड़ने पड़ें। यह सत्य है कि के अनुभव से इस भाग को निर्दोष बनाने में सहायता मिली महावीर भवन ने जो कदम उठाया है, वह पावनता के साथ
साथ भारतीय संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है। __इसके प्रारम्भ में प्रकाशकीय वक्तव्य के उपरान्त पिछली सूचियों की अपेक्षा इसमें विशेषता है कि काशी विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध विद्वान् डा. वासुदेवशरण सभी अज्ञात और नवीन ग्रन्थों की पूरी प्रशस्तियां दी गई अग्रवाल की लिखी हुई भूमिका है। उसमें उन्होंने शोध- हैं। उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है गुटकों का परिचय । संस्थान, महावीर भवन की ऐसे प्रयासों के लिए मुक्त कंठ अज्ञात कवियों को मौलिक कृतियां इन्हीं गुटकों में संकसे प्रशंसा की है। प्रस्तावना स्वयं डा० कसूरचन्द कासली. लित मिली हैं-विशेषतया हिन्दी का पद-साहित्य और बाल ने लिखी है। उसमें जयपुर के १२ जैन ग्रंथ भण्डारों अपभ्रंश का गीतिकाव्य । प्रारम्भ में ये गटके जैन व्यक्ति का परिचय है, जिनके दस सहस्र हस्त लिखित ग्रंथों को के दैनिक धार्मिक जीवन के प्रतीक थे । अर्थात् एक धार्मिक इस सूची में स्थान मिला है। भण्डारों के परिचय में प्राचीन- जन प्रात. उठकर जिन स्तोत्र, पद आदि को पड़ना आव. ग्रंथों की प्राचीन प्रतियाँ और नवीन ग्रन्थों की सूचना श्यक समझता था, उन्हें संकलित कर लेता था । मध्यकाल अनुसन्धित्सुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है । तदुपरान्त के अंतिम खेवे तक आते आते वह धर्मनिष्ठ व्यक्ति इन ही ४२ प्राचीन एवं प्रज्ञात रचनाओं का परिचय दिया गटकों में प्रायुर्वेद के नुस्खे, ज्योतिप से सम्बन्धित गणितगया है।
कुण्डलियां, मुस्लिम बादशानों नवाबो के राज्य में व्यापारी मूल सूची २६ विषयों में विभक्त है। सहस्रोंप्रन्थों का वर्ग की दशा, तीर्थयात्रा विवरण मादि अनेक साधारण यह वर्गीकरण परिश्रम साध्य था, जो बिना संलग्नता के जीवन से गथी बातें भी लिखने लगा। प्रत. ये नबीन सम्भव नहीं होता । प्रत्येक ग्रंथ का नाम, ग्रंथ कर्ता का नाम, साहित्य के संकलन की दृष्टि से ही नहीं, अपितु भारतीय ग्रंथ की भाषा, लेखन की तिथि, ग्रंथ पूर्ण है या अपूर्ण ।
संस्कृति के सही दर्शन के रूप में भी उपयोगी है। इनके इत्यादि सूचनायें सम्पादकों के धैर्य और कार्यक्षमता की
अध्ययन के बिना भारतीय संस्कृति पर की गई शोध अधूरी द्योतक हैं।
ही रह जायेगी।