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किरण २
छहढाला के पाठ भेब
जब किसी भाषा ग्रंथ का अधिक प्रचार होता है तो उसके पाठों में कुछ तबदीलियां घाजानी स्वाभाविक हैं। तत्त्वोपदेश छहढाला में कुछ तब्दीलियां भागई हैं, वे स्वयं कविकृत नहीं हैं, प्रपितु लेखकों और पाठकों की समझ का प्रतिफल जान पड़ती हैं। संस्कृत भाषा में तो अपने व्याकरण सम्बन्धी कठोर नियमों के कारण अशुद्धियां फौरन पकड़ में था जाती है। हिन्दी भाषा में विविध प्रान्तीय बोलियों का प्रभाव होने के कारण देश भेद से प्रतियों के पाठ भेद प्रायः बन जाते हैं । यहाँ में तत्वोपदेश के कुछ पाठांतरों की तालिका एक प्राचीन लिखित प्रतिके प्राधार से संकलित करके विद्वानों की जानकारी के लिए दे रहा है।
तालिका में क ख ग घ ये संकेत पद्यके प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पाद (चरण) के सम्बन्ध में समझना चाहिये । पहला पाठ प्रचलित है। दूसरा पाठ सुधार के लिए है । ढाल १ ली पद्य, दस ग, मेहसमान = मेरुप्रमाण, ढाल २ री पद्य १ घ, कहूँ = करूं, ८ घ, जेह = एह, ६ क, जे = जो, १३. एकान्तवाद दूषित एकान्ति बात दूषित १३ कपिलादि रचित और कुमतिन विरचित भुतको अभ्यास ये दो पाठ = रागी कुमतिन कृत श्रुत अभ्यास ढाल ३ री
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तस्योपदेश-डाला एक समालोचन
ढाल ५ वीं
१ गन्ध माई चिन्ती = माही चितवी, क, चपलाई = चलताई, ११ ग, खिपावे = नसावे १२ क, करौ = करें १४ ग सो ते १५ ग सुनिये सुनि ढाल ६ वीं
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डरत
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१ ग, मृण तृण, ४ ख, मृग गण = मृग गणि, ६ ख, टरत ६ घ, तीनघा = तीन भी १० ग, तसु फलनिर्त कर्म फल १० प पुनि कलनितं पुष्य कलते, १२ क, बसे बसे १२ ख, विनर्स लर्स: = विनसेलसे । अब स्व. बाबू ज्ञानचंद जंन नाहौर द्वारा सुझाये गये पाठान्तर दिये जाते हैं वे इस प्रकार हैं ।
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ढाल एक पद्य ६ ख उसे नहि तिसो उसे तन तिसो ढाल २-पद्य १४ ख धरि करन विविधविध = घरिकरत विविध विधि,
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ढाल ४—पद्यख फिर थाई थिर नाही, ढाल ५ - पद्य ४ क खगाधिप खगादिक, पद्य ११ घ सोई सिव सुख दरसावे सोही जिय सिवसुख पावे
इस प्रकार मैंने इस ग्रंथ का शब्द और अर्थ की दृष्टि से शुद्ध प्रचार हो; अत: यह प्रयास किया है । विद्वद्गण इस पर अपना अभिमत प्रकट करें। तत्त्वोपदेश छहढाला की अधिक प्रसिद्धि को देखकर कुछ गज्जनों ने इसी का रूपान्तर लिख डाला
१क, मुसो ५ क मागारी अनगारी, ६ च ५क, चलत, ग, शम - सम,
नित = निज, ७ ग, चलन
है।
११ दिन १२, शंका न पारिन धारि में आये हैं, परन्तु उनमें न
ग, अब,
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१६ क, पंढ नारी = सब नारी
ढाल ४ थी
५ घ, इह विधि गये। यह विधि गई, ७ क, जे जो ११ ग, काहूकी किसी निकाह के किसू बीतं ।
ऐसे दो रूपान्तर मेरे देखने तो छन्ददोष की परवाह गई है और है और न जैन न जैन सिद्धान्त की मान्यता का ही ख्याल रक्खा गया है; ऐसी प्रवृत्ति सच मुच अवाञ्छनीय है । अन्त में बहुश्रुत विद्वानोंसे निवेदन है कि तत्वोपदेश के पद्यों के साथ तुलनात्मक प्राचीन ग्रंथों के वाक्यों की योजना करके और पाठान्तर में से समुचित पाठ अपनाकर एक सर्वोपयोगी विशिष्ट संस्करण तैयार करें, और इस तरह श्रुतसेवा का परिचय दें । भलं बहु श्रुतेसु
१. श्री क्षुल्लक श्रद्धेय पं० सिद्धसागर जी की प्रेरणा से कन्हैयालाल जी चौधरी टोडा रायसिंह द्वाराप्रेषित जीर्ण पत्रों में से संकलित प्रति पर से उद्धृत कुछ पाठान्तर श्री सोनागिर क्षेत्र की कमेटी के मुनीमजी के दफ्तर से प्राप्त खरड़े पर से भी लिये गये है।
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भाज से ५३ वर्ष पूर्व लाहौर से प्रकाशित मूल छहढाला पर से उद्धृत ।