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________________ किरण २ साहित्य-समीक्षा भण्डारों और उनमें पड़ी सामग्री में रसमयता हो सुरुचि और शालीनता का चित्र अंकित हो जाता है। यह सकती है, किन्तु उनकी सूची बनाने का काम रूक्षतम है, ही उसकी विशेषता है। कहीं रस के 'कण बराबर' भी दर्शन नहीं होते। उसे सम्पन्न मेरी दृष्टि में महावीर जयन्ती के अवसर पर अब करने के लिए धैर्य और साहस की आवश्यकता है। डा० तक निकलने वाले सभी विशेषांकों में यह उत्तम है। कस्तूरचन्द कासलीवाल और श्री अनूपचन्द जैन महावीर राजस्थान जनसभा जयपूर अपनी इस परम्परा को कायम भवन में केवल पार्ट टाइम काम करते हैं। उन्हें अपने रक्खेगी, ऐसी मुझे प्राशा है। ममय का दीर्य अंश राजस्थान गवर्नमेंट के एकाउन्ट डिपार्टमेंट में लगाना होता है । फिर भी उनकी रचि और छहढाला संलग्नता से यह कार्य पूरा हुआ है। यद्यपि उन्हें महावीर लेखक-पं० प्रबर दौलतराम जी, अनुवादक-श्री भवन से पैसे का प्राधार भी मिला है, किन्तु वह न कुछ के नेमीचन्द पटोरिया, सम्पादक-श्री नुपेन्द्रकुमार जैन, बराबर है। यह सच है कि ऐसे काम पैसे के बल पर नहीं, प्रकाशक-सिंघईबन्धू, देवरी (सागर) म०प्र०, पृ० १२७ अपितु कार्यकर्ताओं की लगन पर निर्भर करते हैं। दोनों मूल्य-एक रुपया। ही सम्पादक धन्यवाद के पात्र हैं। वे अवशिष्ट भण्डारो छहढाला पण्डितप्रवर दौलतराम जी की प्रसिद्ध कृति का काम भी इसी लगन से पूरा कर सकें, ऐसी हमारी है। पं. दौलतराम नाम के दो कवि हुए हैं। एक वह थे, कामना है। जिन्होंने 'अध्यात्म बारहखड़ी' का निर्माण किया था। महावीर जयन्ती स्मारिका उनका समय वि० सं० १७६७ माना जाता है । छहढाला के निर्माता पं० दौलतराम सासनी (मलीगढ़) के रहने वाले सम्पादक-५० चैनसुखदास न्यायतीर्थ, प्रकाशक थे । उनका जन्म वि० सं० १८५५ में और मृत्यु वि० सं० श्री रतनलाल छाबड़ा, मन्त्री, राजस्थान जैन समा, जयपुर १९२३ में हुई थी। उनके बनाए हुए अनेक पद भी प्राप्त पृष्ठ संख्या-२५३, मूल्य--२ रुपया। हुए हैं। उनकी माय कृतियाँ भी होंगी। शायद भण्डारों विगत महावीर जयन्ती के अवसर पर इस 'स्मारिका' की शोध खोज में उपलब्ध हो सकें। उनके भावों में भक्तिका प्रकाशन हुमा था। यह एक प्रकार का 'विशेषांक' विभोरता है तो भाषा में प्रसादगुण । दोनों के ममन्वय है। इसमें मंगलपाठ के अतिरिक्त ५७ निबन्ध और हैं। ने उन्हें ग्राकर्षण का केन्द्र बना दिया है। सभी शोध परक हैं और मान्य विद्वानों के द्वारा लिखे गये हैं । यदि हम प्रत्येक निबन्ध को एक उच्चकोटि का 'रिमर्च छहढाला मे छह ढाले (तर्जे) है। तर्ज का अर्थ है पेपर' कहे तो अत्युक्ति न होगी। दुग, अर्थ त् छन्द । उनमें चौपाई, पद्धड़ी, नरेन्द्र, रोला, छन्दचाल और हरिगीता का प्रयोग हमा है। इनमें संगीत निबन्धों के संकलन में त परता और योग्यता से काम की लय भी है। संगीत ने काव्य को अधिक रसात्मक बना लिया गया है। जैन और अजन दोनों ही विद्वानों के जन दिया है। यह ही कारण है कि ग्राम भी जनों के घर घर विषयों पर गंभीर लेख पाठकों को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। में पण्डित दौलतराम के छहढाला की प्रतिष्ठा है। जैन जहा तक सम्पादन का सम्बन्ध है पं० चनसुखदास बालक बचपन से ही उसे कण्ठस्थ कर लेता है। एक ख्यातिप्राप्त विद्वान और सम्पादक है। वे वर्षों से अब तक छहढाला के पचासों संस्करण विविध 'वीरवाणी' के सम्पादन में निरत है । उनकी उदारता और प्रकाशन संस्थानों से प्रकाशित हो चुके हैं । प्रस्तुत मंस्करण निर्भयता प्रसिद्ध है। प्रत्येक निबन्ध के प्रारम्भ में दिया श्री नृपेन्द्रकुमार जैन के सम्पादन में निकला है। इसकी हुमा उसका मारांश माधुनिक सम्पादन-कला का द्योतक सबसे बड़ी विशेषता है-प्रत्येक पद्य के भाव को प्रद्योतित है। पूरी पत्रिका को पढ़ने के उपरात पाठक के हृदय पर करने वाले चित्र का सन्निवेश । चित्र भाव का सही प्रतीक
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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