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________________ अनेकान्त से सम्मिलित विशाल तीन महाराष्ट्रों का स्वामी बना। के लिए वस्तु मानकर, कविताशक्ति में कालिदास और पौर देखिए-कलिंग एवं कोमल जनपद इसकी सेना के भारवि के तुल्य कीर्तिशाली यह विवक्षण बिकीति जयशील सामने न टिककर भयभीत हो गए। पुलकेशी की महती होकर जीते रहें। सेना के पदाघात से जर्जरित विशपुर आसानी से इसको यहाँ तक हुआ लेख का सार । अब देखिए लेख से हस्तगत हुमा' । पुलोशी के हाथियों के पदाघात को प्राप्त चरित्र का क्या उपकार हुआ । इस लेख से चरित्र का कुनाल सरोवर, रण में मन्यु को प्राप्त शत्रुओं के रक्त से जो उपकार हुआ है वह सीमातीत है। भारत के एक रंजित हुआ । इसने अपने उत्कर्ष के विरोधी पल्लव नरेश विख्यात राजवंश चालुक्यों के, इस वंश के प्रारम्भिक को अपनी सेना धूलि से पाच्छादित कांचीपुर की प्राकार- नरेशों के, खासकर इस वंश के नरेशों में दिगंतकीतिशाली भित्तियों की पाड़ में छिपने को बाध्य किया। चोल राजा- महाराज द्वितीय पुलकेशी के सम्बन्ध में अनेक चारित्रिक पों पर किए गए पाक्रमण में इसकी गजपक्तियों के पुल से बातों को सर्वप्रथम प्रकट करने का श्रेय एक मात्र इस लेख कावेरी नदी का प्रवाह ही रुक गया । पल्लव बल ध्वंसी को ही प्राप्त है । इम्मडि पुलकेशी की अद्भुत् जैनयात्रा इस पुलकेशी ने दक्षिण में चोल, केरल और पाण्डय नरेशों की बातों को विस्तार से वर्णन करने वाला लेख इसे छोड़को ऊजित बनाया। कर दूसरा नही है। सिह पराक्रमी राजसिंह पुलकेशीने अपने चचाके कुतंत्र को इस प्रकार सत्याधय पुलकेशी ने समस्त दिशाओं में समूल नाश कर चालुक्य सिंहासनाधिकार को स्वयं वहन कर समल: अपनी जनयात्रा को पूर्ण कर, मानशील नरेन्द्रों को सम्मान अविवेय सामंतों के उपद्रवों को मिटाकर गंग, कदंब एवं पूर्वक विदा कर, देव और द्विजों का सत्कार कर बातापि- पालुप नरेशों को अपने अधीन बनाया, पश्चिम की ओर पर में प्रवेश करके सागरवेष्टित भूवलय पर एक ही नगरी चलकर कोंकण के मोर्यों को पराजित किया, सागरवलके समान शासन करता रहा । इस कलियुग में भारतयुद्धो- यित पुरी नगरी को छीन लिया, मध्य भारत के मालव परांत ३७३५ संवत्सरों के बीतने पर, इस सत्याश्रय भू- तथा दक्षिणोत्तर के गर्जर नरेशों को जीता; नर्मदा तक वल्लभ के कृपापात्र विद्वान् रविकीति ने श्री जिनेन्द्र घसकर उत्तर भारत के चक्री कन्नौज के हर्षवर्धन को भगवान् के वैभवोपेत इस शिलामय प्रालय का निर्माण परास्त किया, पूर्वाभिमुख हो कलिंग, कोशलादि जनपदों किया। इस जिनालय के निर्माता एवं इस प्रशस्ति के को एक-एक करके पादाक्रांत किया। दक्षिण की ओर चल रचयिता रविकीति धन्य हैं। कर पल्लवों को प्रवीन बनाया और कावेरी प्रदेश में अपनी विनिर्माण को अपने काव्य निर्माण अव्याहत जय-भेरी को बजवाया। काव्यमय होने पर भी महत्वपूर्ण इन सब घटनाओं के चारित्रिक बलयुक्त चित्ता१. "पिष्ट पिष्टपुरं येन जातं दुर्गमदुर्गमम् । वर्षक शब्द चित्र को यहाँ पर हम स्पष्ट देख सकते हैं। चित्रं यस्य कलेक्त्तं जातं दुर्गमदुर्गमम् । २६॥" अन्त में यह लेख स्पष्ट शब्दों में भारतयुद्ध के बाद के कलि('जैन शिलालेख संग्रह' भा० २, पृष्ठ ६७.) युग के विगत वर्ष का संवत्सरों की निश्चित संख्या को बत२. "कावेरीदुतशफरी विलोलनेत्रा लाता है । गणनानुसार यह लेख ई० सन् ६३४ का सिद्ध चोलानां सपदि जयोद्यनस्तस्य (?)। - १. मेनायोजिनवेऽश्मस्थिरमर्थविधी विवेकिना जिनवेश्म । प्रश्च्योतन्मदगजसेतुरुद्धनीरा म विजयतां रविकीर्तिः कविताश्रितकालिदास भारविकीतिः ।। संस्पर्श परिहरति स्म रत्न राशेः ॥३०॥" ॥३७॥ ३. "चोलकेरलपाण्डयानां योऽभूत्तत्र महर्द्धये । २. "त्रिंशत्सु त्रिसहस्रेषु भारतादाहवादितः।। पल्लवानीकनीहारतुहिनेतरदीधिति. ॥३१॥" सप्ताब्दशतयुक्तेषु श (ग) तेष्वन्देषु पश्चमु (३७३५) ('जैनशिलालेख संग्रह भा० २, पृष्ठ ६७) [जैन शिलालेख संग्रह भा० २, ४४ ६८] ॥३३।।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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