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________________ ऐहोले का शिलालेख लेखक-श्रो शिक्षाभूषण पं० के० भुजबली शास्त्री ऐहोले बीजापुर जिलांतर्गत हुनगुंद तालुक में एक असफल प्रयत्न किया । और उस प्रयत्न में विफल हो, अंत छोटा सा गाँव है । यह आज एक सामान्य गाँव है। फिर में प्राणत्याग किया । भी इतिहास की दृष्टि से यह ऐहोले एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ पर आज अनेक बहुमूल्य प्राचीन इस भयंकर राज्यविप्लव से राज्य में जब अपायकारी देवालय और शिलालेख जो मौजूद हैं. वे केवल कर्णाटक प्रनायकत्व फैला, तब महाप्रतापी द्वितीय पुलकेशी ने राज्यके इतिहास की दृष्टि से ही नहीं, अखण्ड भारतीय इतिहास शासन की बागडोर अपने समर्थ हाथों में ले ली। बल्कि की दृष्टि से भी विशिष्ट गौरव की वस्तु हैं । इस गाँव में इस राज्यक्रांति से लाभ उठाने के ख्याल से अप्पायक और मेगुटि नामक जिनालय में जो एक शिलालेख उपलब्ध है, गोविंद नामक दो वीर नायकों ने भीमरथी के उत्तर प्रदेश वह लेख अनेक दृष्टियों से कर्णाटक के प्राचीन लेखों में को जीतने के लिए जो श्रम उठाया था, अनीतिपूर्ण उस अग्र स्थान को प्राप्त है । यह लेख शक सं० ५५६', ई० श्रम को पुलकेशी ने सर्वथा विफल बनाया । अनन्तर सन् ६३४ का है । सातवीं शताब्दी का कन्नड़ लिपि में इम्मड़ि पुलकेशी ने अपनी अपरिमित सेना के बल से उत्कीर्ण है । लेख १६ पक्तियों में विविध छन्दों के ३२ कदंबों की राजधानी वनवासि को अधीन किया; गंग और पद्यों में समाप्त हुआ है। पालुप शासकों को पराजित किया और कोंकण के मौर्यों को सम्पूर्ण जीत लिया। इसी प्रतापी पुलकेशी ने पश्चिम शिलालेख 'जिन स्तुति' से प्रारम्भ होता है। अनन्तर समुद्र के लिए अलंकारभूत पुरीनगरी को मदगज घटाकार इसमें चालुक्य वंश की कीर्ति गाई गई है। इस राजवंश का सैकड़ों विशाल नावों से घेर कर लूट लिया। इतना ही मूल पुरुष सत्याश्रय था। बाद का कीर्तिशाली शासक नहीं, पुलकेशी के शौर्य के सामने असमर्थ लाट, मालव जयसिंह वल्लभ था। इसका पुत्र रणराग, रणराग का पुत्र और गुर्जर देश के अधिपतियों ने उसके एकाधिपाय को पुलकेशी । यह पुलकेशी वातावि अर्थात् वर्तमान बादामि सहर्ष रवीकार कर लिया । में शासन करता रहा । बल्कि इसने एक अश्वमेघ यज्ञ भी किया था। पुलकेशी का पुत्र कीर्तिवर्मा था। यह महा समय सामंतों की शिरोरत्नराजि से महाराजा हर्ष प्रतापी एवं विजयी शासक रहा । इसने नल, मौर्य और भी रणभूमि में अपने मदगज समूह को बलि चढ़ाकर भय कदम्बों को जीत लिया था। इसके बाद इसका छोटा भाई के कारण प्रहर्ष हुमा।' इस प्रकार पुलकेशी अपने गुणामंगलीश शासक हुमा । इसकी सेना पूर्व तथा पश्चिमी समुद्र तिशय से देवेंद्रतुल्य शासक कहलाता हुमा ५५ हजार गांवों तक पहुँच गई थी। इसकी सेना ने कलच्चुरियों की सम्पत्ति १. "प्रतापोपनता यस्य लाटमालवगूर्जराः । को छीन लिया था और रेवती द्वीप को भी ले लिया था। दण्डोपनतसामंतचर्या वर्या इवाभवन् ॥२२॥" बाद इस मंगलीश ने भ्रातपुत्र पुलकेशी के राज्य का अधिः ('जैन शिलालेख संग्रह' भा०२, पृष्ठ ६६.) कारी होने पर भी अपने लड़के को सिंहासन पर बैठाने का ___२. "अपरिमितविभूतिस्फीतसामन्तसेना, १. पञ्चाशत्सु कलौ काले, षट्सु पञ्चशतासु च । मुकुटमणिमयूखाक्रान्त पादारविन्दः । युधि पतितगजेन्द्रानीकबीभत्सभूतो, समासु समतीतासु, शकानामपि भूभुजाम् ॥३४॥ भयविगलितहों येन चाकारि हर्षः ॥२३॥"
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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