________________
७२)
अनेकान्त
[वष १४
-
दसणेण जसु दुरिउ विलाज्जा, पुरण-हेड जंजणि मरिणज्ज।
घत्ता
अमियगइ महामुणि, मुणिचूणामणि, भासितित्थु समसीख-घणु। विरहय-बहु-सस्थड, कित्ति-समस्थड, सगुणाबंदिय-णिवइ-मसु ॥६॥ गणि संतिसेणु तहो जाउ सीस, णिय-चरण-कमल-गामिय- महीसु । माहुर-संघाहिउ अमरसेणु तहो हुउ विणेउ पुणु हय-दुरेलु । सिरिसेणसूरि पंडिय-पहारा, तहो सीसु वाइ-काणण-किसाणु । पुणु दिक्खिड तहो तबसिरिणिवासु, अस्थिवण-संघ-बुह-पूरियासु। परवाइ-कुभ-दारण महंदु, सिरिचंदकित्ति जायट मुर्णिदु । तहो अणड सहोयरु सीसु जाउ, गहि अमरकित्ति णिहणिय पमाउ । थहणिसु सुकात विलोय लीणु, जामरछह बहु-विह-सुय-पवीणु । तामणहिं दिणि विहियायरेण, खायर-कुल-गया-दिणेसरेण । चच्चिणि गुणवालहंणंदणेण, भव दिण्यदाण पेरिय मणेण ।
धम्मोवएस-चूडामसिक्खु, । तहो माण-पईड जि माणसिम्खु । छक्कम्मुवएसें सहुँ पबंध, किय अट्ट संख सई सच्चसंध। साकय-पाहय ध्वय घणाई, अथराइं कियई रंजिय-जणाई। पई गुरुकुलु ताय हो कुलु पवितु, सुकइसे सासउ किउ महंतु । कहयण-वरणामउ जे पियंति, अजरामर होइ वि ते णियति । जिद्द राम-पमुह सुयकित्तिवंत, कहमुह-सुहाइ पेच्छहि जियंत कह तुटूउ अप्पापरु समणु, अक्खयतणु करइ पसिद्धगणु ।
भध्वयण पहाणे बुहगुण जाणे, थंधषेण अणुजायई । सो सूरि पवित्तड, बहु विण्यात्तड, भत्तिएँ अंब पसाई॥६॥
परमेसर पइयवरस-मरिठ, विरहवउ गमिणाहहोचरित। भएतु वि चरितु सब्वस्य-सहिड, पवडत्यु महावीरहो विहिड। सीयउ चरितु जसहर-णिवासु। पडिया- किड पयार। टिप्परगड धम्मचरिय हो पयड, तिद विरह जिह बुज्मेह जहु । सक्कप-सिलोय-विही-बधिपदिही, गुंफिबर सुहासिवनयव-बिही।
मंतोसाहि-देवह, किय चिरसेवई, धुय पहाउ गहु सोसइं। परकाय-पवेसणु, किय-सासयतणु तिहजिह काहिं पदीसह ॥
महु पाहासहि पणिय सम्मई, श्रइकाहरणे गिहि-छक्कम्मई । जाई करतड भवियन संच, दिणि दिणि सुहु दुक्कयहिं विमुच्चा । तेहि विवज्जिउ परभड भन्बई, छग्गा-गल-षण-समु गयनान्वहं (१) मई मइमूढे किं पिण चिंतड, पुण्णकम्मु इय कम्मु पवित्त । भव-काणणि भुजहो महुअक्खहि, सम्म-मग्गु सामिय मा वेक्खाह । अमरसूरि तब्बयणाणंतर, पयड गिहि छक्करमहं वित्यरु । सुणि काहपुर वंस-विजयद्धय, गियरूवोहिय-मयरद्धय । पूर्वय देवहं सुइ-गुरु वासणा, समय-सुख-सज्माय-पयासण।। संजम-तक-दाणहं संगुत्तइं,
जिससखि छक्कम्मइंवुत्तई। बल-स्प ष -शुवट, सरवाहि पत्तर,
गुणा-सील-तर-हणिय-मनु ।