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________________ [ वर्ण १४ इबसिरि सुकुमालसामि मयोहरचरिए सुंदरयर गुणरयत शिवरस भरिए विबुह सिरिसुकइ-सिरिहर विरहए साहु भन्वयण चिरु दुरि हरंते । कलवाए बुहेण भणिदे, पोमसेण गामेण मुबिंद । भासि संति यहूं सत्थई, जिया सासणे श्रवराह पसत्थई । पीथे पुस कुमरगांमंकिए श्रग्भूिह-वाभूह-सूरमित्त मेलावद वणो णाम पढमो परिच्छेद्यो समन्तो ॥ १ ॥ पर सुकमालसामिया मानहो, कररुद मुद्द विवरिय वरवालो raft महुँ परिहासह व्ह गोवर बुहयणमय हर वि जह। तं बिसु वि महियले विक्खाए, पयडसाहु पीथे व जाए, सलखण जगणी गन्भुप्पय, पउमा भचारेण स्वपर्णे । प्रतिमभागःधासि पुरा परमेट्ठिद्दि भतउ, विह चारु दाय अणुरतड । सिरिपुरवाढ - वसमंडण चंधड, यि गुण गियरादिय बंधउ । गुरु भत्तिय परणमिय मुखीसर, यो साहु जग्गु वणीसर, तहो गल्हा ग्रामेण पियारी, गेहिणि मग इच्छिय सुहयारी । विमल सीलाहरण विहूसिय, सुद सज्जण बुद्दया पसंसिय । सहरसेय कुबरेण पउत्तर, भो मुशिवर पहूं पभणिउ जुत्तढ । तं महु भ्रमा किरण समासहि, विवरेवणु मासु उल्लापहि । ता मुखि भाइ बम्प जद्द विसुखधि, पुन्व जम्म कय दुरिय विहुहि । धत्ता-धम्मस्थिवि सिरसिरुहरु, सुक् तच्चरित विरयावहि । 11 तारु पीथे जाउ, जण सुहयरु महियले विक्खायर । अवतु महिंदे बुच्च बीयर, बुहयण मणहरु तिकड तयउ । जल्हणु गायें भणिड चउत्थर, पुग्ण वि सलक्खणु दाय-समत्थउ । बहन सुउ संपुष्णु हु उ नह, इइ रति विकसित ताउ सुहु परस्यें धुड पावहि ॥ २ ता श्राहि दियि ते घइल्लें, जिराभयिागम सत्य रसहतें । कइ सिरिहरु विएण पडत्तड, तुहु परियाषिय जुचा जुतउ । पूहु बहु हियय सोक्स - विस्थारणु, भवियय मय वितिय सुहकारण । समुदपाल सत्तमड भगड तह । सुण्यपालु समासिड, विययाइय गुण गयहिं विहूसित । महो पिया मेण सलक्खण; लक्खा कलिय सरीर-वियक्खण । ताहे कुमरु यामेय तणूरुहु, । मायर मुद्द पह पहय सरोरुह । विय विसय भूसिउ कायउ, मय-मिच्छुत माय्य परिचत्तड बताया अवरु बीयर पवरु कुमरहो हुआ वर गेहिरिए । पडमा दिया सुनहिं गणिय जिय-मय-यर बहुगेहि यि ॥ सहे पाहणुयामेय पहूयठ, प्रडम पुतणं मया सरूवड । ब्रीड साल्हगु जो जिणु पुज्जइ, असु रूपेण ण मयहरु पुज्जइ । ६८ ] जर सुकमालसामि कह चक्खहि, विरविणु महु पुर या रक्खहि । ता महु मयाहु सुक्खु जाय लइ, तं सुवि भासह सिरिहरु कह X X X भो पुरवाड़ वंस सिरिभूषण, धरिय-विमल सम्मत विसा एक्कचित्त हो एवि श्रायण्णहि, अपर पुच्छिउ मा अवगाहि । 1 अनेकान्त
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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