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जैन ग्रंथ - प्रशस्ति-संग्रह
पणवंत हो भव्वयय कुपड जयहो सा सुह परंपर दाया पुज्ज दय-धम्म-रय सच्च सउच्च विचिस । भव्य जयंतु सया सुया बहुगुण परहिय चित्त ॥ जयउ गरवइ ग्राम गायन्त पयपालड धम्मुरउ । सय बंधु परिवारि सहियड गिरणासिय विउ जणु । जे यिययिकम्मि खिहियउ पच्चयउ मेहणि सई हवउ । वरिसउ देवसया वि कित्ति धम्मु
जो चरण कमल आयम पुराणु, उस बहु साइम-समाणु ॥ आइरिय महा-गुण-गया-समिद्ध, चच्छल्ल-महोबहि जय पसिद्ध । तो वीरइंदु मुखि पंच मासु, बूरुज्भिय-दुम्मइ, गुण-शिवासु ॥ सजण महामाणिक्क-खारिस, वय-सीलालंकि दिव्व-वाणि । सिरिच दु णाम सोहरा मुग्रीसु, संजायड पंडिय पढम सीसु ॥ तेणेउ श्रणेय छरिय-धामु, दंसण-कह-रयरण करंडु सामु । किड कg विहिय-रवणोह-धामु, लिक्खरु सुयण मणोहिरामु जो पढइ पढाइ एयचित,, संलिहइ लिहावह जो शिरुत्तु ॥ आयण्णइ मरणइ जो पसत्थु, परिभावड़ श्रह - सुि एउ सत्थु । प्पिइ कसायहिं इंदरहिं, तोलिय इह सो पासंडिएहिं ॥ तो दुक्किय कम्मु श्रसेसु जाइ,
रह जयउ जसु खंडण या कयाचि ॥ जाम मेहणि जाम महाइड कुल- पब्वय जाम ह । जाम दीव गह रिक्ख-या ह
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पालइ चायम सयल 1 जाम सग्गु सुरगियरु सुरवइ जाम रायणु चंदु-रवि । जं जिधम्मु पसत्थु ताम जगाउ
सुहुभव्वणि जयड एहु नइ सत्थु । जो सब्वणु तिलोयवसिद्ध सहावें भंडु ।
ताम जाउ सुहु भव्वणि दुसराकह रयणकरंड ॥ इति श्री पंडिताचार्य श्रीचन्द विरचिते रत्नकरण्डनाम
सो लहइ मोक्ख-सुक्ख भवाई ।
शास्त्र समाप्तम् ।
जिवणाह-चरण-जय भत्तएय, श्रमुते कव्वु करंतर ॥
सुकमाल चरिउ (सुकुमालचरित) रचना सं० १२०८
जं काई वि लक्खरा-छंद-हीरा, जह मत्त तुत्त ग्रह अहिय ही ।
विबुध श्रीधर आदिभाग :सिरि पंच गुरुहं पण पंकमइ पाविवि रंजिय समयहँ । सुकमालसामि कुमरहो चरिउ माहासमि अभ्ययाहँ ॥
धत्ता--वं खमउ सन्वु जरा गमिय, सुय देवय अण्णाण मह ॥ जमि पुज्जयिज्ज सिरिचंदमई, तह य भडारी विउ समह । एयारह तेवीसावाससया विक्कमस्स महिवइयो ।
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एक्कहिं दिखे भब्वया पियारए, वलड खामे गामे मगहारए । सिरि गोविंदचंद शिव पालिए,
जया गया हु तया समाणिए सुंदरं रइयं ॥
करणपरिंदो रज्जसुहि सिरि सिरिबालपुरम्मि जुइ । चालुपुर मह सिरियंदे एक कठ संदर कम्बु जयम्मि ॥ जयड जिणवरु जयउ जिणुधम्मु वि
जणव सुहयारयकर खालिए! दुर्गाणय बारह विश्वर मंदिर, पवण्णुद्धप्रयवद अवरु डिए । जिएमंदिरे वक्चा करतें,
जय जडू जबठ साहु संत "सुईकर ।