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________________ अनेकान्त [वर्ष १४ तृतीय परिच्छेदके अन्तिम वाक्योंको देते हुए जो इससे मालूम होता है कि इस पत्रके पूर्व में 'अप्पपरिच्छेदका अन्तिम भाग दिया है, वह इस प्रकार संबोह-कव्व, (मात्म-संवोध-काव्य) के प्रायः तीन परिच्छेद रहे हुए हैं, जिनकी संख्या मागेके पत्रों पर दिये हुए अंकोंका हिसाब लगानेसे ११ पत्र जितनी पत्ता ॥ "सम्मत्तबलेण णाणु लहेवि परेवि चरणु। होती है। अपभ्रंश भाषाका यह काव्य रइधु कविका साहिज्जइ मोक्खु भव्यहि भव-दुह-मवहरणु ॥११॥ बनाया हुमाऔर वह तीन परिच्छेदको ही लिये इय अप्पसबोंहकव्वे सयलजणमण-सवरण-सुहयरे प्रबला- हुए है। इसीसे प्रस्तुत गुट के आगे परमात्मप्रकाशबालसुहबज्झ पयत्यै तइहमो संधि परिच्छेपो सम्मत्तो ॥" की टीकाको प्रारम्भ किया गया है। केकड़ीकी जैनसमाजका स्तुत्य कार्य गत मासोज वदी को केकडी जिला अजमेरकी सरसावा निवासीके समक्ष सम्पन्न हुई है। जैन पंचायत (समाज)ने मुख्तार श्री जुगलकिशोरजी १ प्रस्तावः-जो विवाहमें मोलह पानेके अवसर तथा क्षुल्लक सिद्धिसागरजीकी प्रेरणाको पाकर पर वर पक्षकी तरफसे चढ़ावा होना है उसकी भविष्य साहित्य प्रचारकी दृष्टिसे एक बड़ा ही उपयोगी प्रस्ताव में किस प्रकार व्यवस्था की जावे। पास किया है जो अन्य सभी स्थानोंकी पंचायतों सर्व सम्मतिसे यह तय हुमा कि सोलाणेमें जो अथवा समाजोंके द्वारा अनुकरणीय है। ऐसा होनेपर रकम घर पक्षकी तरफसे भेंट की जावेगी उसमें मे साहित्य-प्रचारका बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न हो सकेगा, रु० २१) चैत्यालयके ( जो पहिलेसे कटते आ रहे हैं। जिसकी आज अतीव आवश्यकता प्रतीत हो रही है। काटकर बाकी रकम जो रहे उसके चार हिस्मे किये इस प्रस्तावके अनुसार विवाह-शादियोंके अवसरों पर जाकर दो हिस्सेकी रकम तो उस मंदिरजीमें ही मन्दिरों में चढ़ाई जानेवाली रकममेंसे २५ प्रतिशत (जिसमें कि सोलाणा किया गया है ) रहने दी जावे साहित्यके प्रचारार्थ दिया जाना स्थिर हमा। और बाकी हिम्मेली सममें से एक हिम्मती बन साहित्यिक कार्य में लगानेको दी जावेदार एक माशा है दूसरे स्थानों की पंचायतें एवं समाज भी केकड़ीकी पंचायत के इस स्तुत्य कार्यका शीघ्र अनुकरण ge कमश्री दि०जैन संस्था केकड़ीको दी जाव । म तय हुआ है कि जहाँ तक हो सके सोलाणेमें करेंगी, जिससे साहित्य-प्रकाशन और समयकी भावश्यकतानुसार नव-साहित्यके निर्माण कार्यको अच्छा रकम ही चढ़ाई जानी चाहिए। उपकरणादि तो मंदिरके हिस्सेकी रकम जितने चढ़ाये जा प्रोत्साहन मिले। eader जयन्तीप्रसाद जैन नोट:-सोलाणेमें चढाये जानेवाली रकममेंसे प्रस्ताव इस प्रकार है कोई बाहर गाँवके मंदिरजीमें भेजना चाहे तो वह ॥ श्रीः॥ अधिकसे अधिक उसका दसवाँ हिस्सा भेज सकता आज शुभ मिदी आश्विन कृष्णा सं० २०१३ है। बाकी रकमका बटवारा ऊपर लिखे मुताबिक सोमवारको सर्व दिगम्बर जैन समाज केकड़ीकी मीटिंग हुई, उसमें निम्न लिखित कार्यवाही श्रीतुल्लक सकल दिगम्बर जैन समाज सिद्धिसागरजी और पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार केकड़ी
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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