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समन्तभद्रका समय-निर्णय
दिगम्बर जैनसमाजमें स्वामी समन्तभद्रका में मान्य किया है। और भी अनेक ऐतिहासिक समय आम तौरपर विक्रमकी दूसरी शताब्दी माना विद्वानोंने समन्तभद्रके इस समयको मान्यता प्रदान जाता है। एक 'पद्रावली'+ में शक सं०६०(वि० की है। अब देखना यह है कि इस समयका समर्थन सं० १६५ ) का जो उनके विषयमें उल्लेख है वह शिलालेखादि दूसरे कुछ साधनों या आधारोंसे भी किसी घटना-विशेषकी दृष्टिको लिये हुए जान पड़ता होता है या कि नहीं और ठीक समय क्या कुछ है। उनका जीवन-काल अधिकांशमें उससे पहले निश्चित होता है। नीचे इसी विषयको प्रदर्शित एवं तथा कुछ बादको भी रहा हो सकता है। श्वेताम्बर विवेचित किया जाता है। जैनसमाजने भी समन्तभद्रको अपनाया है और मिस्टर लेविस राइसने, समन्तभद्रको ईसाकी अपनी पट्टावलियोंमें उन्हें 'सामन्तभद्र' नामसे उल्ले- पहली या दूसरी शताब्दीका विद्वान अनुमान करते खित करते हुए उनके समयका पट्टाचार्य-रूपमें हुए जहाँ उसकी पुष्टि में उक्त पट्टावलीको देखनेकी प्रारम्भ वीरनिर्वाण-संवत् ६४३ (वि० सं० १७३) से प्रेरणा की है वहाँ श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं० ५४ हुआ बतलाया है। साथ ही, यह भी उल्लेखित किया (६७)को भी प्रमाणमें उपस्थित किया है, जिसमें है कि उनके पट्टशिष्यने वीरनि० सं०६६५(वि० सं० मल्लिषेण-प्रशस्तिको उत्कीर्ण करते हुए, समन्तभद्रका २२५) ४ में एक प्रतिष्ठा कराई है, जिससे उनके स्मरण सिंहनन्दीसे पहले किया गया है । शिलालेखसमयकी उत्तरावधि विक्रमकी तीसरी शताब्दीके की स्थितिको देखते हुए उन्होंने इस पूर्व-स्मरणको प्रथम चरण तक पहुंच जाती है। इससे समय- इस बातके लिये अत्यन्त स्वाभाविक अनुमान माना सम्बन्धी दोनों सम्प्रदायोंका कथन मिल जाता है है कि समन्तभद्र सिंहनन्दीसे अधिक या कम समय और प्रायः एक ही ठहरता है।
पहले हुए हैं। चूँकि उक्त सिंहनन्दी मुनि गंगराज्य ___ इस दिगम्बर पट्टावली-मान्य शक सं०६० (ई० (गंगवाड़ि) की स्थापनामें सविशेषरूपसे कारणीभूत सं० १३८) वाले समयको डाक्टर आर० जी० एवं सहायक थे, गंगवंशके प्रथम राजा कोंगणिवर्मा भाण्डारकरने अपनी 'अर्ली हिस्टरी आफ डेक्कन के गुरु थे, और इसलिए कोंगुदेशराजाक्कल में, मिस्टर लेविस राइसने, अपनी 'इंस्क्रिपशंस ऐट (तामिल क्रानिकल ) आदिसे कोंगणिवर्माका जो श्रवणवल्गोल' नामक पुस्तककी प्रस्तावना तथा समय ईसाकी दूसरी शताब्दीका अन्तिम भाग 'कर्णाटक-शब्दानुशासन' की भूमिकामें, मेसर्स (A. D. 188) पाया जाता है वही सिंहनन्दीका
आर० एण्ड एस. जी० नरसिंहाचार्यने अपने 'कर्ना- अस्तित्व-समय है ऐसा मानकर उनके द्वारा समन्तटक कविचरिते' ग्रन्थमें और मिस्टर एडवर्ड पी. भद्रका अस्तित्व-काल ईसाकी पहली या दूसरी राइसने अपनी 'हिस्टरी श्राफ कनडोज लिटरेचर शताब्दी अनुमान किया गया है। श्रवणबेल्गोलके
शिलालेखोंकी उक्त पुस्तकको सन् १८८६ में प्रकाशित + यह पहाबली हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों के अनुसं- करनेके बाद राइस साहबको कोंगुणिवर्माका एक धान-विषयक स० भण्डारकरको सन् १८८३-८४ की अंग्रेजी शिलालेख मिला, जो शक संवत् २५ ( वि. सं. रिपोर्टके पृष्ठ ३१० पर प्रकाशित हुई है।
१६०, ई० सन् १०३ ) का लिखा हुआ है और जिसे xकुछ पहाजियोंमें यह वीर नि.सं.१५ अर्थात् उन्होंने सन् १८६४ में, नंजनगुड़ ताल्लुके ( मैसूर वि०सं० १२५ दिया है जो किसी ग़लतीका परिणाम है और के शिलालेखोंमें नं०११. पर प्रकाशित कराया है। मुनिकल्याणविजयने अपने द्वारा सम्पादित 'तपागच्छ- इस शिलालेखका साथ अंश निम्न प्रकार हैपहावकी' में उसके सुधारकी सूचना भी की है। 'स्वस्ति श्रीमत्कोंगुणिवर्मधर्ममहाधिराजप्रथमगंगस्य दर्स
देखो, मुनिकल्याणविजय-द्वारा सम्पादित 'तपागच्छ सकवर्षगतेषु पचविंशति २५ नेय शुभक्रितुसंवत्सरसु फागुनपहावनी पृ. 1-51
रादपंचमी शनि रोहणि.........