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________________ वर्ष १४ ] चतुर्विशति-तीर्थकर-स्तुति [४५ अर्थ-प्रथम तीर्थकर श्री वृषभदेव आप सबकी रक्षा करें। कैसे हैं, वृषभदेव ? श्री धर्म हैंसंसार-समुद्रमें डूबते हुए प्राणियोंका उद्धार करके उन्हें इन्द्र, नरेन्द्र और मुनीन्द्रों से वन्दित अभ्युदय तथा निःश्रेयस-लक्ष्मी रूप उत्तम पदमें स्थापित करते हैं। पुनः कैसे हैं. वृषभदेव ? अभिनन्दन हैंअपने अतिशय युक्त रूप-गुणादिके द्वारा प्रजाको आनन्द उत्पन्न करते हैं; अथवा जिनके समवसरणमें अशोक, सप्तच्छद और चम्पक आदि वृक्षोंके वन प्रजाको भय-रहित एवं आनन्द-सहित करते हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? अर हैं-केवलज्ञानके द्वारा लोक और अलोकके जानने वाले हैं; अथवा अघाति कोका क्षय करके एक ही समयमें त्रैलोक्यके शिखर पर आरोहण कर मुक्तिको प्राप्त करने वाले हैं, अथवा मोक्षार्थी ज्ञानी जनोंके द्वारा ही गम्य हैं-जाने जाते हैं; अथवा संसार-विमोक्षणमें शीघ्रता करनेवाले हैं; अथवा धर्मरूप रथके संचालनार्थ चक्रांग-स्वरूप हैं; अथवा भव्य जीवोंको (अं) (र) दाता हैं, शिवके (र) अथवा काम तथा भयसे (अ) रहित हैं। पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? पद्मप्रभ हैं-चरणकमलोंकी उत्कृष्ट प्रभाके धारक हैं;अथवा पद्मनामक निधि-विशेषोंसे अत्यन्त शोभित हैं; अथवा विहारके समय देव-निर्मित म्वर्णमयी कमलों पर संचार करते हैं। पुन कैसे हैं ऋषभ देव ? शीतल हैं-छद्मस्थ अवस्था में जिन्होंने शीत उष्णादिको भारी परीषहोंको सहन किया है। यहाँ पर 'शीत' पदसे उष्णादि परीषह और वर्षादि योग भी उपलक्षित हैं); अथवा शान्तिकी मूर्ति हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? शान्ति हैं-सर्व कर्मोके शान्त-क्षय करनेवाले हैं पुनः कैसे हैं ऋपभदेव १ संभव है-समीचीन भव पर्यायके धारक हैं; अथवा शंभव हैं-(शं) सुखके (भव) जनक हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? वासुपूज्य हैं-(वासु) इन्द्रसे पूजित हैं; अथवा व-वरुण और तदुपलक्षित सोम, यमादि देव-वृन्दसे वन्दित हैं; अथवा वा पद मंत्रवाचक भी है, अतः भक्लजनके द्वारा 'ॐ ह्रीं श्रीवास पूज्याय नमः' इस मंत्रके द्वारा नित्य आराधना किये जाते हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभदेव १ अजित हैं-काम-क्रोधादि शत्रुओंके द्वारा अजेय हैं; अथवा (अं) सूर्यको अपने प्रभामण्डलके द्वारा जीतनेवाले हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभ देव ? चन्द्रप्रभ हैं-चन्द्रमाके समान जगन्-आल्हादिनी प्रभाके धारक हैं;-सुव्रत हैं-अहिंसादि सुन्दर व्रतोंके धारक हैं; श्रेवान हैं-अतिशय प्रशंसाके योग्य हैं।-कुन्थु हैं-(कुन्थति) समाचीन करनेवाले हैं। अनन्त हैं-अन्त-विनाश-से रहित हैं। पुनः कैसे हैं ऋषभ देव ? वीर हैं-शूर हैं। अथवा अपने भक्तोंको वि विशिष्ट (ई) लक्ष्मी-मोक्षलक्ष्मीके (र) दाता हैं । और विमल हैं-कर्म मलसे रहित हैं; अथवा (विमा) विशिष्ट ऐश्वर्यके धारक इन्द्रादि देव जिनके चरणोंकी नित्य वन्दना करते हैं: अथवा (विमा) सर्व परिग्रहसे रहित जो निम्रन्थ मुनियोंके द्वारा आराध्य हैं; अथवा मूत्र- पुरीषादि सर्व प्रकारके द्रव्य-मलोंसे रहित हैं; अथवा राग-द्वेषादि सर्व प्रकारके भावमलोंसे रहित हैं। पुन: कैसे हैं ऋषभ देव ? श्रीपुष्पदन्त हैं-कुन्द पुष्पके समान शोभायमान उज्ज्वल दन्तोंके धारक हैं; और नमि है-इन्द्र, चन्द्र और मुनीन्द्रादिकोंके द्वारा नित्य नमस्कृत हैं, और श्री नेमि हैं-(श्री) मोक्षलक्ष्मी रूप आत्मधर्मके प्राप्त करने वाले हैं। पुन: कैसे हैं ऋषभदेव ? सुमति हैंलोकालोककी प्रकाश करनेवाली सुन्दर मति-बुद्धिके धारक हैं । और सुपार्श्व है-सुन्दर वाम और दक्षिण पार्श्व भागोंके धारक हैं। और जिनराद हैं-विषय-कषायोंके जीतनेवाले गणधरादि-जिनोंके स्वामी हैं । पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? पार्श्व है-निज भक्तोंके सदा समीपवर्ती हैं-जब कोई भक्त जहां कहीं भी आपत्तिके समय उन्हें स्मरण करता है, तभी उसकी आपत्ति शीघ्रतासे दूर हो जाती है, जिससे भक्त यह अनुभव करता है कि भगवान मानो अदृश्य रूपसे मेरे समीपस्थ ही हैं। पुनः कैसे हैं ऋषभदेव ? मल्लि या मलि हैं-देवताओंके द्वारा (मल्यते) अपने शिरों पर धारण किये जाते हैं अथवा भव्यजीवों-को लोक शिखर पर मलते स्थापित करते हैं। इसी प्रकार द्वितीय तीर्थकर अजितदेव भी आप सबको रक्षा करें। कैसे हैं अजितदेव ? ऋषभ
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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