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________________ ४६] अनेकान्त [वर्ण १४ हैं-(वृषे) अहिंसा लक्षणधर्मकी (भांति) भी आदि धारण करनेवाले हैं । ऊपर जितने विशेषण ऋषभदेवके लिये प्रयुक्त किये हैं, उन सबको अजतिदेवके पक्षमें भी लगाना चाहिए । इसी तरह संभव आदि शेष. बाईस तीर्थकरोंकी स्तुति करते समय शेप सर्व जिशेषणोंका प्रयोग उनकी स्तुतिके रूपमें करना चाहिए । अनुसन्धानका स्वरूप (प्रो० गोकुलप्रसाद जैन, एम० ए० एल० एल० बी०) रिसर्च के लिये पाजकल अनुसंधान, अन्वेषण, शोध, हमारे भारतमें प्राचीनकालसे ही मनीषियोंकी प्रवृत्ति खोज आदि शब्दोंका प्रयोग होता है। संस्कृतमें यद्यपि अनुसन्धानकी ओर रही है जिसकी हमारी अपनी परम्पराएँ इनके अर्थोमें सूक्ष्म अन्तर है, तथापि हिन्दीमें ये शब्द हैं। हमारे देशमें ज्ञान और अनुसन्धानकी चिन्तन और प्रायः पर्याय ही माने जाते है। इनमें से अनुसंधानका अर्थ अनुभव-प्रणालियां जो वेदों और उपनिषदों में पाई जाती है समीक्षय, परिपृच्छा, परीक्षण प्रादि । अन्वेषणका प्रयोग हैं, खण्डन-मण्डन-प्रणालियां जिनका परिचय दर्शन व्यागवेषण या लुप्त तथा गुप्त सामग्रीको प्रकाशमें लानेके अर्थ- करण नीति काव्यशास्त्र आदिसे मिलता है, तथा मंथन में होता है। शोधमें प्राप्त सामग्रीका संस्कार, परिष्कार प्रणालियां जिसकी संस्कृत वाङ्गमयमें एक अविच्छिन्न धारा निविष्ट है। अतः ये सभी शब्द प्रायः समान अर्थ रखते प्राप्त होती हैं, भारत की अपनी प्रणालियां हैं। हुए अनुसन्धान कार्यके भित्र भिष रूपोंके द्योतक है। आज की विश्वविद्यालयीन कार्यशैली के अनुसार अनुफिर भी इस क्षेत्रमें अनुसन्धान तथा गवेषण शब्दोंका सन्धान के मुख्य तत्त्व ये हैं:व्यापक रूपसे प्रयोग होता है। अनुसन्धानका अपना व्यापक अर्थ होते हुए भी वर्त (1) अनुपलब्ध तथ्योंका अन्वेषण तथा निरूपण । मान कालमें इसका प्रयोग मुख्यतः वैज्ञानिक अन्वेषणके (२) ज्ञात तथ्यों तथा सिद्धातों का पुनराख्यान । लिये होता है। इसका उद्देश्य ज्ञानके क्षेत्रमें उठी हुई (३) मौलिक कार्य। शंकामोंका समाधान करना है। इसकी प्रक्रियाके अन्तर्गत (४) विषय-प्रतिपादनकी सुष्ट शैली। केवल वस्तुविषयक तात्विक चिन्तन या गवेषणा ही नहीं इन चारोंका सापेक्षिक महत्व अनुसन्धानके विषय पर पाती है प्रत्युत उसके सूक्ष्म निरीक्षण तथा विश्लेषणको भी निर्भर रहता है। वैसे अन्वेषणके अन्तर्गत अज्ञात लेखकों उचित स्थान मिला होता है। इसमें प्रत्येक अंशका अन्योन्य तथा ग्रन्थोंकी खोज, अप्राप्त सामग्रीका प्रकाशमें लाना, कार्यकारण सम्बन्ध स्थापित कर उसके विश्लेषण द्वारा इसी उपलब्ध सामग्रीका शोधन करना, विचारों या सिद्धान्तों. महत्वपूर्ण निष्कर्ष तक पहुँचनेका प्राधान्य रहता है । आज का अन्वेषण करना, शैली-विषयक अन्वेषण करना तथा के अनुसन्धानका प्रमुख उद्देश्य पूर्ण अनन्त एवं अखला पूर्वापर ग्रन्थों तथा ग्रन्थकारोंसे सम्बन्ध स्थापित करना है। बदज्ञानको प्रकाशमें जाना है। प्राजका अनुसन्धित पुनराख्यानकार्यमें नवीन उपलब्ध सामग्री तथा तथ्योंका अनुसन्धान कार्यमें केवल जिज्ञासाकी प्रेरयासे प्रवृत्त नहीं माख्यान करना और पूर्वोपलब्ध तथ्योंका पुनराख्यान होता, वह और भी व्यापक क्षेत्र में कार्य-निष्ठ रहता है। करना सन्निविष्ट हैं। मौलिकताके प्राधीन समीक्षात्मक तथा वह जिज्ञासाकी तृप्ति मात्रसे सन्तुष्ट नहीं। उसे विशाल आलोचनात्मक सामग्री पाती है जिसका महत्व मूलान्वेषणसे क्षेत्र चाहिये जहां वह निरन्तर शक्तिकी खोज कर वास्तविक कोई कम नहीं है। मौलिकतामें तथ्यान्वेषण, पाठशोध. और वायिक सत्यकी खोज कर सके। अनुसंधिसको पाठाध्ययन, निर्वाचन, नबाविष्करण भी सम्मिलित है। किसी वस्तु या तथ्य विशेषसे रागद्वेष नहीं । वह तो केवल अनुसंघित्सुघोंको अपने विषयकी इयसामों के प्राचीन सत्यान्वेषी और सत्यार्थी होता है। अन्वेषण एक तटस्थ रहते हुए उपरोक कतिपय अनुदेशोंका पालन करना अभीष्ट निरीक्षकका कार्य है। एवं हितकर होगा।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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