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________________ अहम विश्व तत्त्व-प्रकाशक वार्षिक मूल्य ६) एक किरण का मूल्य ॥) RA+ नीतिविरोषवसीलोकव्यवहारवर्तक सम्पत्। फरमागमस्य वीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः वर्ष १४ । वीरसेवामन्दिर, २१, दरियागंज, देहली [सितम्बर, किरण, २ । भाद्रपद, शुक्ला वीरनिर्वाण-संवत २४८३, विक्रम संवत २०१३ । १९५६ चतुर्विशति-तीर्थकर-स्तुतिः (चतुर्विंशतिसन्धानात्मिका) यह स्तुतिपय सबसे पहले जयपुरके लश्कर मन्दिर-शास्त्र-भंगर का अवलोकन करते हुए मुझे मार्च सन् १९५० को संस्कृत टीका-सहित उपलब्ध हुआ था । उसके बाद गत वर्षके भादों मासमें अजमेरके पंचायती मन्दिरशास्त्र-भंडारका अवलोकन करते हुए भी उसी संस्कृत टीकाके साथ प्राप्त हुआ है, जिसके प्रमन्तर 'एषा पंचवटी' प्रावि चार पद्य और भी सटीक है जो श्री रामचन्द्रजी आदिकी स्तुतिसे संबन्ध रखते हैं। इस स्तुतिपद्यके चौवीस तीर्थंकरों की स्तुतिको लेकर २४ अर्थ होते हैं। संस्कृत टीकामें वृषम जिनकी स्तुतिको स्पष्ट किया गया है और शेष जिवादि तीर्थकोंकी स्तुतिको उसी प्रकारसे सट कर लेनेकी प्रेरणा की गई है। इस स्तुतिमें २५ तीर्थकोंके नामोंका समावेश है । एक तीर्थकरकी स्तुतिमें शेष तीर्थंकरों के नाम उसके विशेषण रूपमें प्रयुक्त हुए हैं और वे स्तुति पदका काम देते हैं। प्रत्येक तीर्थकरका नाम किस किस अर्थको लिये हुए है यह टोकामें स्पष्ट किया गया है। इसीसे प्रस्तुत स्तुतिको उपयोगी समझ कर यहां टीका सहित दिया जाता है । साथ में पं० हीरालालजी शास्त्रीका वह अर्थ भी दिवा जाता है जो उन्होंने टीका परसे फलित करके लिखा है, जिससे हिन्दी पाठक भी इस स्तुतिके महत्वको समझ सकें। -जुगलकिशोर श्रीधर्मो वृषभोऽभिनन्दन परः पद्मप्रमः शीतला, शान्तिः संभव-वासुपूज्य-अजितश्चन्द्रप्रमः सुव्रतः। श्रेयान् कुन्थुरनन्त-वीर-विमलः श्रीपुष्पदन्तो नमिः श्रीनेमिः सुमतिः सुपार्श्व जिनराट् पार्यो मलिः पातु वः॥
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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