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________________ दशलक्षण-पर्वमें वीर-सेवा मंदिरके विद्वानों द्वारा धर्म-प्रभावना पर्यषण-पर्वमें वीर सेवा मन्दिरके विद्वानोंको बुलानेकी नहीं पाया। केकड़ीसे श्रीयुत पं. रतनलालजी कटारियाने वावत कितनेही स्थानोंसे तार पर तार पाए। न्यावरसे, तो सानुरोध वेकड़ी पानेके लिए लिखा । श्री मुख्तार सा. लगातार तीन तार विशेष प्रेरणाको लिए हुए थे। उसी और श्री पं० जयन्तीप्रसादजी शास्त्री केकड़ी गये। वहां बीचमें पं० श्रीहीरालालजी सिद्धान्त शास्त्रीकी स्वीकृति खुरई श्री पुज्य चुल्लक सिद्धसागरजीके पधारनेसे अच्छी धार्मिक और श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीकी स्थानीय नया जागृति होरही है। आप बहुत ही सरल स्वभावी मिलनसार, मन्दिर और लालमन्दिरको दी जा चुकी थी। श्रीमान् और प्रकाण्ड विद्वान् एवं त्यागी हैं, उनके दर्शन किये। आदरणीय पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार सा. विशेष कारण रातको श्री मुख्तार सा०का सार गर्मित भाषण हुआ जिससे वश फिरोजाबाद तथा कानपुर गए हुए थे। आप फिरोजा- प्रभावित होकर केकड़ीकी जैनसमाजने २५१) रुपये देकर वाद तथा कानपुरसे शनिवार ता. ६.५६को प्रातः देहली वीरसेवामन्दिरका आजीवन सदस्य बनना स्वीकार किया। पाए, संस्थांके समाचार ज्ञात किये, साथ ही ध्यावरसे आये साथ ही एक बहुत ही महत्त्वका 'प्रस्ताव, जिसमें यह हुए तारों की बात मालूम कर आपके एकदम विचार हुए, निर्णय किया गया कि विवाहादि कार्योंमें मन्दिरको दिये" कि व्यावरकी विशेष प्रेरणा है, जरूर चलना चाहिए। जिस जानेवाले दानमेंसे २१ प्रतिशत साहित्य प्रचारके लिए समय मैं अजमेरमें शास्त्र भण्डारकी खोज कर रहा था उस निकाला जाय" पास हुआ। जो इसी किरण में अन्यत्र समयसे उनका बुलानेका आग्रह बराबर बना हुआ है। हम दिया जारहा है वह सभी स्थानोंकी समाजके लिये अनुश्री मुख्तार सा के इस अदम्य उत्साह एवं लगनको देखकर -करणीय है। बादमें अजमेर आये वहां की समाजने श्री दंग रह गये और हृदयमें हर्ष एवं विशेष श्रद्धा पैदा हुई। मुख्तार सा को रोकनेका बहुत आग्रह किया, परन्तु समयाश्री मुख्तार सा०की प्रबल भावना देखकर व्याघरको तार दे भावके कारण न रुक सके । श्रीमात् पं० हीरालाजी सिद्धान्त दिया गया कि पा रहे हैं । श्रीमान् श्रादरणीय मुख्तार सा. शास्त्रीके प्रवचन और भाषण खुरईकी जैन समाजमे बहुत और श्री०६० जयन्ती प्रसादजी शास्त्रीको साथ लेकर व्यावर पसन्द किये और उनका अभिनन्दन किया । और २०१)रु. गये, इससे वहांकी जैन समाजमें अपार हर्ष हा. लोगोंने सौ. सहायताके प्रदान किये । श्री पं० परमानन्दजी शास्त्रीसे भाग्य माना । दिनमें प्रातः बजेसे १२बजे तक और शामको स्थानीय जैन समाजमें विशेष जागृति बनी रही। और नये ६॥ बजेसे १ बजे तक शास्त्र-प्रवचन श्री पं० जयन्ती मन्दिरको शास्त्रसभाकी ओरसे १०१)रु० भेंट स्वरूप प्राप्त प्रसादजी शास्त्रीका और भाषण श्री मुख्तार सा०का होता हए। तथा समस्त दि. जैन समाज कलकत्ताकी श्रोरसे था, व्यावरमें श्रीमान रा० ब० सेठ मोतीलाल तोतालालजी २१०) रु०की सहायता बाबू मिश्रलालजी कालाकी मारफत रानी वालोंके कारण सारे समाजमें धार्मिक-निष्ठा प्रशंसनीय प्राप्त हुई, इसके लिये वहांकी समाज विशेष धन्यवादकी है। सभी स्त्री-पुरुष, बड़े उत्साहके साथ पूजन तथा पात्र है । इस तरह वीरसेवामन्दिरको पयूषण पर्वमें ढाई शास्त्र-प्रवचनमें भाग लेते थे। श्री मुख्तार सा. तथा श्री हजारके लगभग सहायता प्राप्त होगई। पं० जयन्तीप्रसादजी शास्त्रीके भाषणोंसे प्रभावित होकर प्रेमचन्द जैन श्रीमान रा० ब० सेठ मोतीलालजी रानीवाले, श्रीमती सौ० , संयुक्त मंत्री-चीर सेवामन्दिर नर्वदादेवीजी ध. प. श्री रा. ब. सेठ तोतालालजी रानी दिल्ली वाले, श्रीमान सेठ धर्मचन्द्रजी सौगानी, श्रीमान सेठ शोक समाचार गुमानमलजी वाकलीवाल, श्रीमान सेठ मूलचन्दजी पहाव्या, तथा दि. जैन पंचायत,ने सहर्ष वीरसेवामन्दिरके रायसाहब बाबूज्योतिप्रसादजी म्युनिस्पल कमिश्नरकी आजीवन सदस्य २५१), २५१)रु०दे देकर बनाना स्वीकार पूजनीया माताजीका ८५ वर्षकी वृद्ध अवस्थामें ता.२. किया। इस बीचमें ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती. अक्टूबर सन् १९५६को दिनके १२बजे स्वर्गवास होगया। भवन व्यावरका निरीक्षण किया, वहां का शास्त्र संग्रह वीरसेवामन्दिर परिवार आपके इस इष्ट वियोग जन्य देखकर चित्त प्रसन्न हुआ । वहां का क्षमा-वाणी-पर्व तो दुखमें सम्वेदना प्रकट करता हुआ दिवंगत प्रात्माको देखते ही बनता था ऐसा दृश्य अब तक देखनेमें । परलोकमें सुख और शान्तिको कामना करता है।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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